उसके पैर बंधे थे, उसके हाथ बांध दिये गये थे,
सिर से पांव तक गहनों से ,
जैसे ठोक दिया गया हो कीला किसी पत्थर में
उसके तन को...नहीं, नहीं,
मन पर भी चिपका दिया गया था कीला
इसीलिए वह मौन थी हजारों वर्षों से,
आज जब समय को...उसकी आवाज सुनानी थी
कुछ नया करना था उत्तेजक सा...
दिखाना था उसके जीते-जागते होने का सबूत
इसीलिए अनेक राम आये, बन के उद्धारक उसके
दावा करते महान उद्धारक होने का...सो इसीलिए !
वह चुप थी किसी भी तरह बोलती ना थी,
उसके बिना बोले फिर....
उद्धारक होने का कौन देता लाइसेंस उनको,
सो उसके मौन का इलाज खोज लिया गया
बड़ा विध्वंसक था जो, उन्हीं की बुद्धि की तरह,
आग के बीच उस मौनमूर्ति को बिठाया,
बंधे हाथ, बंधे पैर और लंबे मौन के संग
वह...गुर्राई, आग के पास आते जाने पर ...
वो लेने लगी लंबी लंबी सांसें जोर से...
आंखें निकाल आग को डराने लगी
फूंक मार कर बुझाने लगी कभी...
पास पहुंचती आग, इससे पहले ही
वह जोर से चीखी...तेज आवाज के साथ
एक विस्फोट हुआ ,
अपनी ही आवाज को सुनने का विस्फोट...
मौन तो टूटा, मगर मौन ने ही उगल दिए
उद्धारकों के सभी षडयंत्र ,
उसे बंधनमुक्त कराने के स्वार्थ,
वो आग जो लगाई थी आजादी के नाम पर,
उद्धारकों के अपने चेहरे उसमें भुन रहे थे...
सच्चाई तप कर सोना बनती है मगर
षडयंत्र ....षडयंत्र तो भुनते हैं...स्याह होते हैं
इसीलिए दबे रहने दो स्त्री-स्वतंत्रता के शब्द
ये उखड़ेंगे तो स्याह होती तुम्हारी सूरतें
बहुत कुछ उगल देंगीं तुम्हारी सब हकीकतें।
- अलकनंदा सिंह
सिर से पांव तक गहनों से ,
जैसे ठोक दिया गया हो कीला किसी पत्थर में
उसके तन को...नहीं, नहीं,
मन पर भी चिपका दिया गया था कीला
इसीलिए वह मौन थी हजारों वर्षों से,
आज जब समय को...उसकी आवाज सुनानी थी
कुछ नया करना था उत्तेजक सा...
दिखाना था उसके जीते-जागते होने का सबूत
इसीलिए अनेक राम आये, बन के उद्धारक उसके
दावा करते महान उद्धारक होने का...सो इसीलिए !
वह चुप थी किसी भी तरह बोलती ना थी,
उसके बिना बोले फिर....
उद्धारक होने का कौन देता लाइसेंस उनको,
सो उसके मौन का इलाज खोज लिया गया
बड़ा विध्वंसक था जो, उन्हीं की बुद्धि की तरह,
आग के बीच उस मौनमूर्ति को बिठाया,
बंधे हाथ, बंधे पैर और लंबे मौन के संग
वह...गुर्राई, आग के पास आते जाने पर ...
वो लेने लगी लंबी लंबी सांसें जोर से...
आंखें निकाल आग को डराने लगी
फूंक मार कर बुझाने लगी कभी...
पास पहुंचती आग, इससे पहले ही
वह जोर से चीखी...तेज आवाज के साथ
एक विस्फोट हुआ ,
अपनी ही आवाज को सुनने का विस्फोट...
मौन तो टूटा, मगर मौन ने ही उगल दिए
उद्धारकों के सभी षडयंत्र ,
उसे बंधनमुक्त कराने के स्वार्थ,
वो आग जो लगाई थी आजादी के नाम पर,
उद्धारकों के अपने चेहरे उसमें भुन रहे थे...
सच्चाई तप कर सोना बनती है मगर
षडयंत्र ....षडयंत्र तो भुनते हैं...स्याह होते हैं
इसीलिए दबे रहने दो स्त्री-स्वतंत्रता के शब्द
ये उखड़ेंगे तो स्याह होती तुम्हारी सूरतें
बहुत कुछ उगल देंगीं तुम्हारी सब हकीकतें।
- अलकनंदा सिंह