Saturday, 19 September 2020

तीसरा सप्तक के प्रमुख कवियों में से एक रहे हैं कुँवर नारायण

 


नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर कुँवर नारायण तीसरा सप्तक (१९५९) के प्रमुख कवियों में रहे हैं, आज ही के द‍िन यान‍ि १९ सितंबर १९२७ को वे जन्मे थे।

कुंवर नारायण का रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं। उन्होंने अपनी मूल विधा कविता ही रखी परंतु उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज संप्रेषणीयता आई वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं-कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। ‘तनाव‘ पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया है। 2009 में कुँवर नारायण को वर्ष 2005 के लिए देश के साहित्य जगत के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

आज पढ़‍िये उनकी कुछ रचनायें

अयोध्या, 1992

हे राम,
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकाव्य !

तुम्हारे बस की नहीं
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सर – लाखों हाथ हैं,
और विभीषण भी अब
न जाने किसके साथ है.

इससे बड़ा क्या हो सकता है
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य

अयोध्या इस समय तुम्हारी अयोध्या नहीं
योद्धाओं की लंका है,
‘मानस’ तुम्हारा ‘चरित’ नहीं
चुनाव का डंका है !

हे राम, कहां यह समय
कहां तुम्हारा त्रेता युग,
कहां तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
कहां यह नेता-युग !

सविनय निवेदन है प्रभु कि लौट जाओ
किसी पुरान – किसी धर्मग्रन्थ में
सकुशल सपत्नीक….
अबके जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे वाल्मीक !

अबकी बार लौटा तो

अबकी बार लौटा तो
बृहत्तर लौटूंगा
चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं
कमर में बांधें लोहे की पूँछे नहीं
जगह दूंगा साथ चल रहे लोगों को
तरेर कर न देखूंगा उन्हें
भूखी शेर-आँखों से

अबकी बार लौटा तो
मनुष्यतर लौटूंगा
घर से निकलते
सड़को पर चलते
बसों पर चढ़ते
ट्रेनें पकड़ते
जगह बेजगह कुचला पड़ा
पिद्दी-सा जानवर नहीं

अगर बचा रहा तो
कृतज्ञतर लौटूंगा

अबकी बार लौटा तो
हताहत नहीं
सबके हिताहित को सोचता
पूर्णतर लौटूंगा

किसी पवित्र इच्छा की घड़ी में

व्यक्ति को
विकार की ही तरह पढ़ना
जीवन का अशुद्ध पाठ है।

वह एक नाज़ुक स्पन्द है
समाज की नसों में बन्द
जिसे हम किसी अच्छे विचार
या पवित्र इच्छा की घड़ी में भी
पढ़ सकते हैं ।

समाज के लक्षणों को
पहचानने की एक लय
व्यक्ति भी है,
अवमूल्यित नहीं
पूरा तरह सम्मानित
उसकी स्वयंता
अपने मनुष्य होने के सौभाग्य को
ईश्वर तक प्रमाणित हुई !

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...