Thursday, 27 March 2025

#ShortStory: ट्रेन टॉयलेट में ल‍िखा नंबर


जैसे ही मैंने नंबर देखा, मैंने उस फोन नंबर पर बात करने के लिए फोन उठाया...


फोन करते समय मुझे नहीं पता था कि वह लड़की है या महिला... लेकिन मुझे इतना जरूर पता था कि ट्रेनों में इस तरह लिखे गए फोन नंबर आमतौर पर महिलाओं के ही होते हैं, किसी लड़के या पुरुष के नहीं...


दूसरी तरफ से आवाज आई और पूछा- कौन है... आवाज बहुत घबराई हुई थी, दरअसल मैंने ट्रेन-टॉयलेट के दरवाजे के पीछे लिखे नंबर पर कॉल किया और पूछा- क्या आप रेणु जी बोल रही हैं.. 


उधर से डरी हुई आवाज में जवाब आया, "हाँ, लेकिन आप कौन हैं और आपको मेरा नंबर कहाँ से मिला?"


"दरअसल वो ट्रेन,,,,मेरा मतलब है क‍ि उस ट्रेन के डिब्बे में किसी ने तुम्हारा नंबर तुम्हारे नाम के साथ लिख दिया है, हो सकता है वो तुम्हारा अच्छा दुश्मन हो या बुरा दोस्त, जो भी हो, मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि हो सके तो ये नंबर बदलवा लो या फिर अच्छे जवाब के साथ तैयार रहो, वैसे अब तक जो भी कॉल आए हैं, आ गए हैं,,,, आज के बाद कोई नहीं आएगा क्योंकि मैंने ये नंबर ट्रेन के टॉयलेट से डिलीट कर दिया है।


रेणु जी, अब मैं फोन रखता हूँ, कृपया अपना ख्याल रखना।"


फिर उसने मुझसे कहा कि मैं नए अनजान नंबरों और उन पर गंदी और अश्लील बातों की वजह से बहुत परेशान थी, तुम जो भी हो, तुमने मेरी बहुत मदद की है क्योंकि मैं समझ नहीं पा रही थी कि ऐसे कॉल क्यों आ रहे हैं।


रेनू जी को फोन करने के उस कदम ने मुझे कुछ 'अच्छा' करने के ल‍िए 

नई दिशा दे दी और एक मुह‍िम मानकर मैंने सार्वजनिक जगहों पर लिखे ऐसे नंबर मिटाने शुरू कर दिए, ताकि कम से कम किसी की जान तो बच सके।


मैं मानता हूँ कि हम किसी बुराई की वजह नहीं हैं लेकिन हम किसी अच्छाई की वजह ज़रूर बन सकते हैं। मैं आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि अगर आपको कहीं भी ऐसे नंबर और नाम दिखें तो उन्हें तुरंत डिलीट कर दें ताकि आप किसी की बहन-बेटियों को अनजान खतरों से बचा सकें।


अगर लाखों लोग एक साथ मिलकर किसी एक व्यक्ति का साथ दें तो हालात जल्दी बदलने लगेंगे।


बाय- स्टूडेंट ऑफ सोशल कॉज


Saturday, 22 March 2025

हिंदी के प्रसिद्ध कवि विनोद कुमार शुक्ल को मिलेगा इस साल का ज्ञानपीठ पुरस्कार


 हिंदी के प्रसिद्ध कवि और लेखक विनोद कुमार शुक्ल को इस साल का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलेगा. इस बारे में आज नई दिल्ली में घोषणा की गई. बता दें कि विनोद कुमार शुक्ल रायपुर में रहते हैं और उनका जन्म 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में हुआ था. वे पिछले 50 सालों से लिख रहे हैं. उनका पहला कविता संग्रह "लगभग जयहिंद" 1971 में प्रकाशित हुआ था, और तभी से उनकी लेखनी ने साहित्य जगत में अपना स्थान बना लिया था.

उनके उपन्यास जैसे नौकर की कमीज,  खिलेगा तो देखेंगे और दीवार में एक खिड़की रहती थी हिंदी के सबसे बेहतरीन उपन्यासों में माने जाते हैं. साथ ही... उनकी कहानियों का संग्रह पेड़ पर कमरा  और महाविद्यालय  भी बहुत चर्चा में रहा है.

विनोद कुमार शुक्ल ने बच्चों के लिए भी किताबें लिखी हैं... जिनमें हरे पत्ते के रंग की पतरंगी और कहीं खो गया नाम का लड़का जैसी किताबें शामिल हैं, जिन्हें बच्चों ने बहुत पसंद किया है. उनकी किताबों का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है और उनका साहित्य दुनिया भर में पढ़ा जाता है.

विनोद कुमार शुक्ल को उनके लेखन के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं.... जैसे गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, और साहित्य अकादमी पुरस्कार (उनके उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी के लिए). इसके अलावा, उन्हें मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवार्ड और पेन अमरीका नाबोकॉव अवार्ड भी मिल चुका है. मालूम हो की वे एशिया के पहले साहित्यकार हैं जिन्हें ये पुरस्कार मिला. उनके उपन्यास नौकर की कमीज  पर मशहूर फिल्मकार मणिकौल ने एक फिल्म भी बनाई थी.

- अलकनंदा स‍िंंह 

Wednesday, 5 March 2025

होरी रे रस‍िया.... वृन्दावन सा कहीं आनन्द नहीं पाओगे।


 एक बार अयोध्या जाओ, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे। 

चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार-बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे॥


कोटि बार काशी, केदारनाथ, रामेश्वर, गया-जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे। 

होंगे प्रत्यक्ष जहाँ दर्शन श्याम-श्यामा के, वृन्दावन सा कहीं आनन्द नहीं पाओगे॥ 


प्रिया लाल राजे जहाँ, तहाँ वृन्दावन जान,

वृन्दावन तज एक पग, जाए ना रसिक सुजान ॥

जो सुख वृंदाविपिन में, अंत कहु सो नाय,

बैकुंठहु फीको पड्यो, ब्रज जुवती ललचाए ॥


वृंदावन रस भूमि में, रस सागर लहराए,

श्री हरिदासी लाड़ सो, बरसत रंग अघाय ॥


मोर जो बनाओ तो, बनाओ श्री वृंदावन को,

नाच नाच घूम घूम, तुम्ही को रिझाऊं मैं ।

बंदर बनाओ तो, बनाओ श्री निधिवन को,

कूद कूद फांद वृक्ष, जोरन दिखाऊं मैं  ॥


भिक्षुक बनाओ तो, बनाओ ब्रज मंडल को,

टूक हरि भक्तन सों, मांग मांग खाउँ मैं । 


भृंगी जो करो तो करो, कालिन्दी के तीर मोहे,

आठों याम श्यामा श्याम, श्यामा श्याम गाउं मैं ॥

।।जय जय श्रीवृंदावन धाम॥

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