राम तुम्हारे जन्मदिन पर बस वो ही कहना है
जो अनकहा रह जाए और अनकहा कह जाए
सुनो राम! सिया, शबरी, अहिल्या, सब तुम्हारी बाट जोहती हैं
आज भी ये सब कण कण में राम खोजती हैं।
गीध व्याध वानर को अब कौन गले लगाता है
करुणा, क्षमा, दया को बाजार में नित्य बेचा जाता है।
त्रेता से कलियुग की यात्रा बहुत कठिन रही होगी
अब बैठो राम किसी वन में छद्म भरा कलियुग देखो
नाम तुम्हारे बिकते , बाजारों में जोरशोर से
घर में मां-बाप-भाई के रिश्ते कैसे रिसते हैं देखो।
तुम्हारे नाम पर आज कितनों की रोजीरोटी ज़िंदा है
तुम्हारे नाम पर आज पूरे शहर-गांव-कस्बे में मेला है
सब पूजते हैं राम, कहां जानते हैं राम,नहीं मानते हैं राम
पाथर में ढूढ़कर तुम्हें पूजने वाले फिर भी कहां शर्मिदा हैं।
बस राम तुम्हारे जन्मदिन इतना ही कहना है
क्षमा शील बन इनके व्यापारों को इतना मत उगने देना
कल हो जायें पाथर राम, राम को पाथर मत होने देना
राम तुम्हारे जन्मदिन पर बस इतना ही अब कहना है।
बात अधूरी है मेरी फिर कभी बोलूंगी तुमसे
अभी जन्मदिन और मनाओ हे वनवासी राम
राजा रह कर मन में वन और वन में मन
व्याख्याओं से परे तुम्हें मुझे अपने मन में रखना है
बस राम तुम्हारे जन्मदिन इतना ही कहना है।
-अलकनंदा सिंह
जो अनकहा रह जाए और अनकहा कह जाए
सुनो राम! सिया, शबरी, अहिल्या, सब तुम्हारी बाट जोहती हैं
आज भी ये सब कण कण में राम खोजती हैं।
गीध व्याध वानर को अब कौन गले लगाता है
करुणा, क्षमा, दया को बाजार में नित्य बेचा जाता है।
त्रेता से कलियुग की यात्रा बहुत कठिन रही होगी
अब बैठो राम किसी वन में छद्म भरा कलियुग देखो
नाम तुम्हारे बिकते , बाजारों में जोरशोर से
घर में मां-बाप-भाई के रिश्ते कैसे रिसते हैं देखो।
तुम्हारे नाम पर आज कितनों की रोजीरोटी ज़िंदा है
तुम्हारे नाम पर आज पूरे शहर-गांव-कस्बे में मेला है
सब पूजते हैं राम, कहां जानते हैं राम,नहीं मानते हैं राम
पाथर में ढूढ़कर तुम्हें पूजने वाले फिर भी कहां शर्मिदा हैं।
बस राम तुम्हारे जन्मदिन इतना ही कहना है
क्षमा शील बन इनके व्यापारों को इतना मत उगने देना
कल हो जायें पाथर राम, राम को पाथर मत होने देना
राम तुम्हारे जन्मदिन पर बस इतना ही अब कहना है।
बात अधूरी है मेरी फिर कभी बोलूंगी तुमसे
अभी जन्मदिन और मनाओ हे वनवासी राम
राजा रह कर मन में वन और वन में मन
व्याख्याओं से परे तुम्हें मुझे अपने मन में रखना है
बस राम तुम्हारे जन्मदिन इतना ही कहना है।
-अलकनंदा सिंह