थके थके कदम चांदनी के
लम्हा लम्हा सरकी रात
बिसर गई वो बात, कहां बची
अब रिश्तों की गर्म सौगात
चिंदी चिंदी हुये पंख, फिर भी
कोटर में बैठे बच्चों से
कहती चिड़िया ना घबराना
कितनी ही बड़ी हो जाये बात
पलकें भारी होती हैं जब
ख़ुदगर्जी़ से लद लदकर
बिखर क्यों नहीं जाते वो हिस्से
जिनमें बस्ती हो जाती ख़ाक
- अलकनंदा सिंह
लम्हा लम्हा सरकी रात
बिसर गई वो बात, कहां बची
अब रिश्तों की गर्म सौगात
चिंदी चिंदी हुये पंख, फिर भी
कोटर में बैठे बच्चों से
कहती चिड़िया ना घबराना
कितनी ही बड़ी हो जाये बात
पलकें भारी होती हैं जब
ख़ुदगर्जी़ से लद लदकर
बिखर क्यों नहीं जाते वो हिस्से
जिनमें बस्ती हो जाती ख़ाक
- अलकनंदा सिंह
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