Thursday, 23 August 2018

कृष्‍ण को वीर रस में प्रस्‍तुत करने वाले शायर थे हफीज़ जालंधरी

भारत पाकिस्‍तान के बीच रिश्तों में तल्ख़ी के साथ साथ अभी भी कहीं ना कहीं कोई ना कोई कड़ी जुड़ती हुई दिखाई दे ही जाती है, ऐसी ही एक कड़ी थे हफीज जालंधरी साहब। हालांकि आज ना तो उनका जन्‍म दिन है और ना ही पुण्‍यतिथि परंतु ''अभी तो मैं जवान हूं'' सुन रही थी तो सोचा क्‍यों ना हफीज साहब केे बारे में मैंने जो कुछ पढ़ा उसे साझाा करूं। खासकर उनका लिखा हुआ कृष्‍णगीत।

हफ़ीज़ जालंधरी का पूरा नाम अबू अल-असर हफ़ीज़ जालंधरी था, इनका जन्म 14 जनवरी 1900 में पंजाब के जालंधर में हुआ था। 1947 में भारत के विभाजन के बाद वह लाहौर, पाकिस्तान में जाकर रहने लगे। पाकिस्ताान का कौमी तराना लिखने वाले इस शायर की जड़ें भारत की माटी और संस्कृति से बहुत गहरे जुड़ी हैं। हफ़ीज़ ने लिखा है, "मेरा खानदान तक़रीबन 200 बरस पहले चौहान राजपूत कहलाता था। मेरे बुज़ुर्ग हिन्दू से मुसलमान हो गये और बदले में अपनी जायदाद वग़ैरह खो बैठे। हां, सूरजबंसी होने का ग़ुरूर मुसलमान होने के बावजूद साथ रहा, मेरी ज़ात तक पहुंचा और ख़त्म हो गया।" 

पाकिस्तान का राष्ट्रगान 'पाक सरज़मीं' लिखने वाले प्रख्यात शायर हफ़ीज़ जालंधरी ने लिखा और अगस्त 1954 में पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर इस गीत को अपना राष्ट्रगान घोषित कर दिया था। कौमी तराना लिखने वाले शायर हफ़ीज़ की चर्चा कॉमी तराना से अधिक ‘कृष्ण गीत' लिखने वाले शायर के रूप में अधिक होती आई है।
खालिस हिंदुस्तानी जुबां में लिखी गई ''कृष्ण कन्हैया'' नज्म भक्तिकाल के कवियों की याद दिलाती है लेकिन हफीज को कृष्ण में बस श्रृंगार रस नहीं दिखता था। हफीज को उम्मीद थी कि श्याम आएंगे और उबार लेंगे। सवाल उठता है किस चीज से उबारेंगे कृष्ण? इस सवाल का एक मुमकिन जवाब तो यही है कि हफीज ने कृष्ण की भक्ति को हिंदुस्तान के प्रति अपनी मुहब्बत का लॉन्चपैड बनाया। जिस दौर में हफीज ने ये कविता लिखी, तब पाकिस्तान नहीं बना था। हिंदुस्तान गुलाम था और हफीज ने इस कविता में उम्मीद जताई कि जिस तरह महाभारत में कृष्ण ने सत्य को जीत दिलाई, वैसा ही करिश्मा वो फिर से दोहराएंगे। हफीज को उम्मीद थी कि अंग्रेजों से आजादी हासिल करने की लड़ाई में भी कृष्ण मददगार साबित होंगे।

हफीज के कृष्ण श्रृंगार रस के नहीं बल्‍कि वीर रस के प्रतीक हैं। भगवान कृष्‍ण से हफीज कह रहे हैं-

‘बेकस की रहे लाज,
आ जा मेरे काले,
भारत के उजाले ,
दामन में छुपा ले’.

यूं तो किसी भी भक्त की आरजू भगवान से मिलने की ख्वाहिश पर खत्म होती है, उसके आगे और उससे बड़ी किसी मुराद की कल्पना भक्त नहीं कर पाता है। हफीज ने भी यही कहा- लिखते हैं,
‘लौ तुझ से लगी है,
हसरत ही यही है,
ऐ हिन्द के राजा,
इक बार फिर आ जा,
दुख दर्द मिटा जा’।

तो ऐसे हैं हफीज जालंधरी के बोल जो आज भी उतने ही मौजूं हैं जितने तब थे।

"अभी तो मैं जवान हूं" हफ़ीज़ जालंधरी की ये नज़्म Mallika Pukhraj की जादुई आवाज़ में आपने ज़रूर सुनी होगी। इस नज़्म को नूरजहाँ ने भी अपनी ख़ूबसूरत आवाज़ दी है।
आज़ादी से पहले के दौर में  ये गजल हफ़ीज़ जालंधरी ने लिखी थी, वे शायद सबसे अधिक लोकप्रिय शायर थे, जिनकी नज़्में और ग़ज़लें साहित्य-प्रेमियों की ज़ुबान पर चढ़ी हुई थी -


हवा भी ख़ुश-गवार है

गुलों पे भी निखार है

तरन्नुम-ए-हज़ार है

बहार पुर-बहार है

कहाँ चला है साक़िया

इधर तो लौट इधर तो आ

पिलाए जा पिलाए जा

अभी तो मैं जवान हूं ।



इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया

लख़्त-ए-जिगर को ख़ाक में दफ़ना के आ गया

हर हम-सफ़र पे ख़िज़्र का धोका हुआ मुझे

आब-ए-बक़ा की राह से कतरा के आ गया

अभी तो मैं जवान हूं ।

तो आप भी सुनिए ''अभी तो मैं जवान हूं'' मल्‍लिका पुखराज की आवाज़ में------

https://www.youtube.com/watch?v=CXlSUXBTDUs

- अलकनंदा सिंह


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