Tuesday, 28 January 2020

प्रसिद्ध आयरिश कवि विलियम बटलर येट्स की पुण्‍यतिथि आज

13 जून 1865 को पैदा हुए विलियम बट्लर येट्स 20वीं शताब्दी के साहित्य के बड़े नामों में से एक थे। दिसम्बर 1923 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 28 जनवरी 1939 को उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी अनेक कविताओं का अनुवाद महाकवि हरिवंशराय बच्चन ने हिंदी में किया है।
ज़्यादा दिन मत नेह लगाना
प्राण-प्रियतमे, ज़्यादा दिन मत नेह लगाना,
ज़्यादा दिन तक नेह लगाकर मैंने सीखा है पछताना,
मैं ऐसा बे-फ़ैशन का माना जाता हूं
जैसे कोई गीत पुराना ।
एक इस तरह थे हम यौवन के वर्षों में
हाय, कहाँ वह गया ज़माना
क्या उसके मन, क्या मेरे मन,
इसे असम्भव था अलगाना।
लेकिन पल में बदल गई वह
ज़्यादा दिन मत नेह लगाना,
वरना तुम भी हो जाओगे बे-फ़ैशन के,
जैसे कोई गीत पुराना ।
समय से ज्ञान होता है
तरु में अनगिन पत्ते होते,
मूल, मगर, होता है एक;
मैंने पत्ते-फूल दिखाए,
यौवन के सब दिन झुठलाए,
अब मुझको बूढ़ा होने दो
हाथों में ले मूल-विवेक
तरु में अगणित पत्ते होते,
मूल, मगर, होता है एक।
गिलहरी के प्रति
गिल्ली रानी, आओ, आओ
मुझसे खेलो,
मुझसे प्यार-दुआएं ले लो ।
तुम तो ऐसे भाग रही हो
जैसे मेरे पास तमंचा,
जो कि चला दूंगा मैं तुम पर;
ग़लत समझतीं मेरी मंशा ।
बस, इतना ही कर सकता हूं,
यही करूंगा,
ज़रा तुम्हारा सिर सहलाकर
जाने दूंगा
गिल्ली रानी, आओ, आओ
मुझसे खेलो,
मुझसे प्यार-दुआएं ले लो ।
हवा में नाचता हुआ बच्चा
नाचे जाओ सिन्धु-तीर पर
तुमको क्या परवाह
तरंगें और हवाएँ गरज रही हैं ?
खारी बून्दों से भीगी अलकें लहराओ
नाचे जाओ ।
तुम छोटे हो,
अभी नहीं तुमने देखी है,
विजय मूर्ख की,
हार प्रेम की
ज्यों ही वह विजयी होता है,
कटी फ़सल गट्ठों में बन्धने को बाक़ी है
और खेतिहर मर जाता है।
तुमको क्या डर
अगर बवण्डर दानव-स्वर में चिल्लाता है ।

Saturday, 18 January 2020

#MantoRemains: समाज की नफ़रत झेलने वाले सआदत हसन मंटो

उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। समाज के ज्वलंत मुद्दों पर उनकी बेबाक राय भी काफी अहम हैं। उनका निधन आज ही के दिन यानी 18 जनवरी 1955 को हुआ था।
कहानियों में अश्लीलता के आरोपों के कारण मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और तीन बार पाकिस्‍तान बनने के बाद, लेकिन एक भी बार मामला साबित नहीं हो पाया।
11 मई 1912 को लुधियाना के गाँव पपड़ौदी में जन्‍मे मंटो के पिता गुलाम हसन मंटो कश्मीरी थे।
मंटो के जन्म के ठीक बाद वह अमृतसर चले गए। मंटो की प्राथमिक पढ़ाई घर में ही हुई। 1931 में उन्होंने मैट्रिक पास की और उसके बाद हिंदुसभा कॉलेज में दाख़िला ले लिया।
उनकी शाहकार कहानियाँ हैं- टोबा टेक सिंह, बू, ठंडा गोश्त, खोल दो। मंटो के बाईस कहानी संग्रह, पाँच रेडियो नाटक संग्रह, एक उपन्यास, तीन निजी स्कैच संग्रह और तीन लेख संग्रह छपे हैं। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड की मंटो के मन पर गहरी छाप थी। इसको लेकर ही मंटो ने अपनी पहली कहानी ‘तमाशा’ लिखी थी।
उनकी रचनाएं हैं- आतिशपारे, मंटो के अफसाने, धुआँ, अफसाने और ड्रामे, लज्जत-ए-संग, सियाह हाशिए, बादशाहत का खात्मा, खाली बोतलें खाली डिब्बे, लाउडस्पीकर (सकैच), ठंडा गोश्त, सड़क के किनारे, यज़ीद, पर्दे के पीछे, बगैर उन्वान के, बगैर इजाजत, बुरके, शिकारी औरतें, सरकंडों के पीछे, शैतान, ‘रत्ती, माशा, तोला’, काली सलवार; नमरूद की ख़ुदायी, गंजे फ़रिशते (सकैच), मंटो के मज़ामीन, सड़क के किनारे मंटो की बेहतरीन कहानियाँ।
यह विडंबना है कि ज़िंदगी भर अपने लिखे हुए के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने वाला, मुफ़लिसी में जीने और समाज की नफ़रत झेलने वाला मंटो आज ख़ूब चर्चा में है. इसी मंटो ने लिखा था कि मैं ऐसे समाज पर हज़ार लानत भेजता हूं जहां यह उसूल हो कि मरने के बाद हर शख़्स के किरदार को लॉन्ड्री में भेज दिया जाए जहां से वो धुल-धुलाकर आए.
अक्सर लोग कहा करते हैं कि मंटो अपने वक्त से आगे के लेखक थे लेकिन सच पूछिए तो मंटो बिल्कुल अपने वक्त के ही कहानीकार थे. उनकी अहमियत को बस वाजिब तरीके से पहचाना और मान देना शुरू किया गया है पिछले एक दशक में.
यह उस वक्त की परेशानी थी जहां मंटो को समझा नहीं जा रहा था या फिर समझने की कोशिश नहीं की जा रही थी. लेकिन यह भी सच है कि उन्हें कभी नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सका.
सआदत हसन मंटो की रचना यात्रा उनकी कहानियों की तरह ही बड़ी ही विचित्रता से भरी हुई है. एक कहानीकार जो जालियांवाला बाग कांड से उद्वेलित होकर पहली बार अपनी कहानी लिखने बैठता है वो औरत-मर्द के रिश्तों की उन परतों को उघाड़ने लगता है जहां से पूरा समाज ही नंगा दिखने लगता है.
मंटो ने ताउम्र मजहबी कट्टरता के खिलाफ लिखा, मजहबी दंगे की वीभत्सता को अपनी कहानियों में यूं पेश किया कि आप सन्न रह जाए. उनके लिए मजहब से ज्यादा कीमत इंसानियत की थी.

Thursday, 16 January 2020

‘पूर्व छायावाद युग’ के कवि रामनरेश त्रिपाठी की पुण्‍यतिथि आज

‘पूर्व छायावाद युग’ के कवि रामनरेश त्रिपाठी की आज पुण्‍यतिथि है। 4 मार्च 1889 को सुल्‍तानपुर (उत्तर प्रदेश) में जन्‍मे रामनरेश त्रिपाठी की मृत्‍यु 16 जनवरी 1962 के दिन हुई थी।
कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे ‘कविता कौमुदी’ के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यंत प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम ‘लरिकाई को प्रेम’ है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। ‘बा और बापू’ उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है।
रामनरेश त्रिपाठी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व अत्यन्त प्रेरणादायी था।
भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर रहे पिता पंडित रामदत्त त्रिपाठी का रक्त पंडित रामनरेश त्रिपाठी की रगों में धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्रभक्ति की भावना के रूप में बहता था। दृढ़ता, निर्भीकता और आत्मविश्वास के गुण उन्हें अपने परिवार से ही मिले थे।
त्रिपाठी जी एक बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार माने जाते हैं। द्विवेदी युग के सभी प्रमुख प्रवृत्तियाँ उनकी कविताओं में मिलती हैं।
पंडित त्रिपाठी के निधन के बाद आज उनके गृह जनपद सुल्तानपुर जिले में एक मात्र सभागार “पंडित राम नरेश त्रिपाठी सभागार” स्थापित है जो उनकी स्मृतियों को ताजा करता है।
पढ़िए उनकी राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत कविताएं-
मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है।
सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है?
जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है?
नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है?
जिसके बड़े रसीले फल, कंद, नाज, मेवे।
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है?
जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन रात हँस रहे है वह देश कौन-सा है?
मैदान, गिरि, वनों में हरियालियाँ लहकती।
आनंदमय जहाँ है वह देश कौन-सा है?
जिसकी अनंत धन से धरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि वह देश कौन-सा है?
सब से प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी।
जगदीश का दुलारा वह देश कौन-सा है?
पृथ्वी-निवासियों को जिसने प्रथम जगाया।
शिक्षित किया सुधारा वह देश कौन-सा है?
जिसमें हुए अलौकिक तत्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी।
गौतम, कपिल, पतंजलि, वह देश कौन-सा है?
छोड़ा स्वराज तृणवत आदेश से पिता के।
वह राम थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?
निस्वार्थ शुद्ध प्रेमी भाई भले जहाँ थे।
लक्ष्मण-भरत सरीखे वह देश कौन-सा है?
देवी पतिव्रता श्री सीता जहाँ हुईं थीं।
माता पिता जगत का वह देश कौन-सा है?
आदर्श नर जहाँ पर थे बालब्रह्मचारी।
हनुमान, भीष्म, शंकर, वह देश कौन-सा है?
विद्वान, वीर, योगी, गुरु राजनीतिकों के।
श्रीकृष्ण थे जहाँ पर वह देश कौन-सा है?
विजयी, बली जहाँ के बेजोड़ शूरमा थे।
गुरु द्रोण, भीम, अर्जुन वह देश कौन-सा है?
जिसमें दधीचि दानी हरिचंद कर्ण से थे।
सब लोक का हितैषी वह देश कौन-सा है?
बाल्मीकि, व्यास ऐसे जिसमें महान कवि थे।
श्रीकालिदास वाला वह देश कौन-सा है?
निष्पक्ष न्यायकारी जन जो पढ़े लिखे हैं।
वे सब बता सकेंगे वह देश कौन-सा है?
छत्तीस कोटि भाई सेवक सपूत जिसके।
भारत सिवाय दूजा वह देश कौन-सा है?
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