एक हथेली भर ज़िंदगी
एक मुट्ठीभर अहसास
नापने बैठी जब भी सुख
तिर गये वे सारे दुख
हर पल देता गया मुझे
तेरे होने का अहसास
तू है, तो फिर मुझे दिखना चाहिए
नहीं है, तो गायब होता क्यों नहीं
मेरी बेटी की हंसी और
मां की दुआ में मुझे
तू ही तू, अक्स दर अक्स
दिखता क्यूं है मेरे बरक्स
- अलकनंदा सिंह