Friday, 8 November 2013

वो नहीं चोखेरबाली..

तिनके ने उड़ते हुये, हवा से पूछा
क्‍या अपने साथ तुमने, मेरी चिरसाथी...
उस धूल को भी उठाया है
यदि नहीं..तो मुझे भी छोड़ो

रहने दो मुझे उसी के पहलू में
और कुछ पल थोड़ा सुकून से
न जाने फिर कब मिल पाऊं
मैं... अपनी इस चिर साथी से
यदि तुम ले जाओगी दूर मुझे
जीवित फिर ना पाओगी मुझे

तो ऐ हवा...! क्‍यूं ना ऐसा करो...
उसे भी संग ले लो अपने, या फिर...
छोड़ दो मुझे...उसके ही पास
तुम्‍हें तो मिलेंगे मुझसे और भी बड़े
तिनकों के सम्राट...

मेरा तो जीवन ही धूल ने सींचा है
उसी ने सालों से अपने पहलू में
बिछाकर मुझमें रोपा है प्रेम का अंकुर
ऐ हवा... तुम क्‍या जानो मेरी सहयात्री
धूल के उस आंचल का सुख
उसकी हथेलियों से मिलता अभयदान
अब बारी मेरी है देने की प्रतिदान

ताकि....कोई और हवा,
अकेला पाकर न बना दे...चोखेरबाली या
आंखों की किरकिरी उसको...
ऐ हवा.....! मुझे बताना है उसको
भिन्‍न रूप हैं पर एक है अस्‍तित्‍व अपना
मेरा भी और तेरा भी...
यह भी बताना है उसको कि...
तू धूल है रहेगी जीवित मेरे ही साथ
मैं तिनका हूं उड़ आऊंगा तेरे ही पास
यही इच्‍छा है यही नीयति अपनी
यही अंत है यही आरंभ अपना

सो ऐ हवा...! जीवन की प्राण...
मुझे तुम यूं निस्‍पंदित मत करना
प्राणदायी कहलाकर अपनी
गरिमा से मुझे अभिसिंचित करना

सो...ऐ हवा...तुम साक्षी बन दे देना
चोखेरबाली नहीं... उसे तुम
मां होने का देना वरदान
जिससे धरती के सारे तिनके...
फलें फूलें और..
बनें किसी के सर की छांव,
यही तुम्‍हारा अभिनंदन है...
हे प्राणदायी तुम्‍हें वंदन है...
- अलकनंदा सिंह


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