उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। समाज के ज्वलंत मुद्दों पर उनकी बेबाक राय भी काफी अहम हैं। उनका निधन आज ही के दिन यानी 18 जनवरी 1955 को हुआ था।
कहानियों में अश्लीलता के आरोपों के कारण मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और तीन बार पाकिस्तान बनने के बाद, लेकिन एक भी बार मामला साबित नहीं हो पाया।
11 मई 1912 को लुधियाना के गाँव पपड़ौदी में जन्मे मंटो के पिता गुलाम हसन मंटो कश्मीरी थे।
मंटो के जन्म के ठीक बाद वह अमृतसर चले गए। मंटो की प्राथमिक पढ़ाई घर में ही हुई। 1931 में उन्होंने मैट्रिक पास की और उसके बाद हिंदुसभा कॉलेज में दाख़िला ले लिया।
उनकी शाहकार कहानियाँ हैं- टोबा टेक सिंह, बू, ठंडा गोश्त, खोल दो। मंटो के बाईस कहानी संग्रह, पाँच रेडियो नाटक संग्रह, एक उपन्यास, तीन निजी स्कैच संग्रह और तीन लेख संग्रह छपे हैं। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड की मंटो के मन पर गहरी छाप थी। इसको लेकर ही मंटो ने अपनी पहली कहानी ‘तमाशा’ लिखी थी।
उनकी रचनाएं हैं- आतिशपारे, मंटो के अफसाने, धुआँ, अफसाने और ड्रामे, लज्जत-ए-संग, सियाह हाशिए, बादशाहत का खात्मा, खाली बोतलें खाली डिब्बे, लाउडस्पीकर (सकैच), ठंडा गोश्त, सड़क के किनारे, यज़ीद, पर्दे के पीछे, बगैर उन्वान के, बगैर इजाजत, बुरके, शिकारी औरतें, सरकंडों के पीछे, शैतान, ‘रत्ती, माशा, तोला’, काली सलवार; नमरूद की ख़ुदायी, गंजे फ़रिशते (सकैच), मंटो के मज़ामीन, सड़क के किनारे मंटो की बेहतरीन कहानियाँ।
यह विडंबना है कि ज़िंदगी भर अपने लिखे हुए के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने वाला, मुफ़लिसी में जीने और समाज की नफ़रत झेलने वाला मंटो आज ख़ूब चर्चा में है. इसी मंटो ने लिखा था कि मैं ऐसे समाज पर हज़ार लानत भेजता हूं जहां यह उसूल हो कि मरने के बाद हर शख़्स के किरदार को लॉन्ड्री में भेज दिया जाए जहां से वो धुल-धुलाकर आए.
अक्सर लोग कहा करते हैं कि मंटो अपने वक्त से आगे के लेखक थे लेकिन सच पूछिए तो मंटो बिल्कुल अपने वक्त के ही कहानीकार थे. उनकी अहमियत को बस वाजिब तरीके से पहचाना और मान देना शुरू किया गया है पिछले एक दशक में.
यह उस वक्त की परेशानी थी जहां मंटो को समझा नहीं जा रहा था या फिर समझने की कोशिश नहीं की जा रही थी. लेकिन यह भी सच है कि उन्हें कभी नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सका.
सआदत हसन मंटो की रचना यात्रा उनकी कहानियों की तरह ही बड़ी ही विचित्रता से भरी हुई है. एक कहानीकार जो जालियांवाला बाग कांड से उद्वेलित होकर पहली बार अपनी कहानी लिखने बैठता है वो औरत-मर्द के रिश्तों की उन परतों को उघाड़ने लगता है जहां से पूरा समाज ही नंगा दिखने लगता है.
मंटो ने ताउम्र मजहबी कट्टरता के खिलाफ लिखा, मजहबी दंगे की वीभत्सता को अपनी कहानियों में यूं पेश किया कि आप सन्न रह जाए. उनके लिए मजहब से ज्यादा कीमत इंसानियत की थी.
कहानियों में अश्लीलता के आरोपों के कारण मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और तीन बार पाकिस्तान बनने के बाद, लेकिन एक भी बार मामला साबित नहीं हो पाया।
11 मई 1912 को लुधियाना के गाँव पपड़ौदी में जन्मे मंटो के पिता गुलाम हसन मंटो कश्मीरी थे।
मंटो के जन्म के ठीक बाद वह अमृतसर चले गए। मंटो की प्राथमिक पढ़ाई घर में ही हुई। 1931 में उन्होंने मैट्रिक पास की और उसके बाद हिंदुसभा कॉलेज में दाख़िला ले लिया।
उनकी शाहकार कहानियाँ हैं- टोबा टेक सिंह, बू, ठंडा गोश्त, खोल दो। मंटो के बाईस कहानी संग्रह, पाँच रेडियो नाटक संग्रह, एक उपन्यास, तीन निजी स्कैच संग्रह और तीन लेख संग्रह छपे हैं। जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड की मंटो के मन पर गहरी छाप थी। इसको लेकर ही मंटो ने अपनी पहली कहानी ‘तमाशा’ लिखी थी।
उनकी रचनाएं हैं- आतिशपारे, मंटो के अफसाने, धुआँ, अफसाने और ड्रामे, लज्जत-ए-संग, सियाह हाशिए, बादशाहत का खात्मा, खाली बोतलें खाली डिब्बे, लाउडस्पीकर (सकैच), ठंडा गोश्त, सड़क के किनारे, यज़ीद, पर्दे के पीछे, बगैर उन्वान के, बगैर इजाजत, बुरके, शिकारी औरतें, सरकंडों के पीछे, शैतान, ‘रत्ती, माशा, तोला’, काली सलवार; नमरूद की ख़ुदायी, गंजे फ़रिशते (सकैच), मंटो के मज़ामीन, सड़क के किनारे मंटो की बेहतरीन कहानियाँ।
यह विडंबना है कि ज़िंदगी भर अपने लिखे हुए के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने वाला, मुफ़लिसी में जीने और समाज की नफ़रत झेलने वाला मंटो आज ख़ूब चर्चा में है. इसी मंटो ने लिखा था कि मैं ऐसे समाज पर हज़ार लानत भेजता हूं जहां यह उसूल हो कि मरने के बाद हर शख़्स के किरदार को लॉन्ड्री में भेज दिया जाए जहां से वो धुल-धुलाकर आए.
अक्सर लोग कहा करते हैं कि मंटो अपने वक्त से आगे के लेखक थे लेकिन सच पूछिए तो मंटो बिल्कुल अपने वक्त के ही कहानीकार थे. उनकी अहमियत को बस वाजिब तरीके से पहचाना और मान देना शुरू किया गया है पिछले एक दशक में.
यह उस वक्त की परेशानी थी जहां मंटो को समझा नहीं जा रहा था या फिर समझने की कोशिश नहीं की जा रही थी. लेकिन यह भी सच है कि उन्हें कभी नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सका.
सआदत हसन मंटो की रचना यात्रा उनकी कहानियों की तरह ही बड़ी ही विचित्रता से भरी हुई है. एक कहानीकार जो जालियांवाला बाग कांड से उद्वेलित होकर पहली बार अपनी कहानी लिखने बैठता है वो औरत-मर्द के रिश्तों की उन परतों को उघाड़ने लगता है जहां से पूरा समाज ही नंगा दिखने लगता है.
मंटो ने ताउम्र मजहबी कट्टरता के खिलाफ लिखा, मजहबी दंगे की वीभत्सता को अपनी कहानियों में यूं पेश किया कि आप सन्न रह जाए. उनके लिए मजहब से ज्यादा कीमत इंसानियत की थी.