आज बिरज में होरी रे रसिया.....
बनारस एवं ब्रज, मथुरा और वृंदावन क्षेत्र में अधिक लोकप्रिय है। रसिया ‘रस की खान’ कहे जाते हैं। इसमें लोकमानस अपने जीवन के सुख-दुख, हर्ष-विषाद, उमंग और उल्लास की कथा का वर्णन अधिकतर रसिया शैली में ही व्यक्त किया जाता है। यह शैली लोकशैली के अंतर्गत मानी जाती है। रसिया शैली को होली के समय गाया जाता है। एक प्रचलित लोकगीत रसिया शैली में इस प्रकार से है:
“आज बिरज में होली रे रसिया।
होली रे रिसिया बरजोरी रे लिया।”
एक अन्य गीत में लोकमानस के भावों की अभिव्यक्ति हुई है जिसमें नायिका की सुंदर आँखों का बहुत ही सुंदर ढंग से रसिया लोकगीत शैली में प्रस्तुत किया है:
निराली कार्तिक, अंकिता जोशी की आवाज़ में सुनिए ये होली
मृगनयनी को यार नवल रसिया,
मृगनयनी को।।
बड़ी-बड़ी अँखिया नैंनन में सुरमा,
तेरी टेढ़ी चितवन मेरे मन बसिया ||1||
अतलस को याको लेंहगा सोहे,
झूमक सारी मेरो मन बसिया ||2||
छोटी अंगूरिन मुंदरी सोहे,
याके बीच आरसी मन बसिया. ||3||
याके बांह बड़ाे बाजूबन्द सोहे,
याके हियरे हार दिपत छतिया ||4||
रंगमहल में सेज बिछाई,
याके लाल पलंग पचरंग तकिया ||5||
पुरुषोत्तम प्रभु देख विवश भये,
सबे छोड़ ब्रज में बसिया.. ||6||
एक और #होली भजन...!! जिसे सुनकर आनंदित हुए बिना नहीं रह सकेंगे आप।
https://www.youtube.com/watch?v=bIytLwl4HIk
होली खेलन आयो श्याम
आज याहे रंग में घोलो री
रंग में घोलो री
आज याहे रंग में घोलो री
होली खेलन आयो श्याम
आज याहे रंग में घोलो री ….2
कोरे कोरे कलश मंगाओ री
रंग केसर का घोलो री
मुख पे केसर मालो करो
कालो से गोरो री
होली खेलन आयो श्याम
आज याहे रंग में घोलो री ….2
पड़ोसन पास बुलाये लायो जी
आँगन में थको घेरो री
पीताम्बर लियो चीयर याहे
पहनाये देव लहंगों री ….2
होली खेलन आयो श्याम
आज याहे रंग में घोलो री ….2
याकि बांस की बसुरिया
जाहे तुम तोड़ मरोड़ो री
ताली दे दे यह नचाओ
अपनी आओरो री ….2
होली खेलन आयो श्याम
आज याहे रंग में घोलो री ….2
चाँद सखी की यही विनती
करे तोसे मैं हारी री
आअहा हाय पड़े जब पाया
तब ही छोड़े री ….2
होली खेलन आयो श्याम
आज याहे रंग में घोलो री ….2
रंग में घोलो री
आज याहे रंग में घोलो री
होली है ………….
होली खेलन आयो श्याम
आज याहे रंग में घोलो री ….4
होली है …...
पुष्टिमार्ग के समाज संगीत में होली गायन सुनिए -
होली खेलन आयो श्याम
सोंवरो होरी खेलन आयो,
मैं दधि बेचन गयी री वृंदावन,
मारग आडो आयो.।।
महीं माट मेरो सघरो ढुलायो,
माखन लूंटी लूंटी खायो.
ऐ जशोदाजी को जायो सोंवरो।।१।।
वृंदावनकी कुंज गली में,
खेल भारी मचायो,
लाल गुलाल अबीर उडायो,
मुठी भरी भरी धायो
सावरे बादल छायो ।।२।।
सब सखीयन मिलि मोहन घेर्यो,
रंग दयी करने रिझायो।।
"सूरश्याम " प्रभु तिहारे मिलन कुं,
चरण कमल चित्त लायो,
सखी मैने महासुख पायो सावरो।।३।।
https://www.youtube.com/watch?v=bIytLwl4HIk
खेलन लागे होरी रसिक दोउ (बसंत होली धमार कीर्तन) पुष्टिमार्ग हवेली संगीत
- अलकनंदा सिंंह