Tuesday, 31 December 2013

नव वर्ष में....

आओ !
एक एक करके खोल डालें तमाम परतें
जो जाने अनजाने मेरे और तुम्‍हारे बीच
बनती रहीं...चलती रहीं..घुनती रहीं..
हमारे प्रेम के रेशे रेशे पर चढ़ती रहीं..
अपना कर्कश जाल वो बुनती रहीं...

आओ !
    छील डालें माथे पर बनी उन आड़ी तिरछी
    रेखाओं के मकड़जाल को,हम और तुम
    मिलकर चलो कुरेद कर बदल डालें
    अपनी हथेलियों पर बने,
    त्रियक रेखाओं के वे सभी कोने...

आओ !
       छिन्‍न भिन्‍न कर दें उन
      तमाम प्रश्‍नों के चक्रव्‍यूह की तीलियां
       जो खुद सुलगकर छोड़ गईं कुछ
      राख और कुछ चिंगारी के उड़ते तिल्‍ले
      हमारे गाढ़े प्रेम के बिछोने में
      जो अपनी आंखों के गिर्द ...गड़ गईं थीं जाने कब
      चलो छोड़ो भी अब जाने दो ...हम फिर से..
      एक बार नये सिरे से.... नये वर्ष में....
      नये प्रेम के संग... नये जीवन को
      फिर से बोयें...उसी प्रेम को... उसी आस में..
      जो भीगते हुये काट देते थे तुम मेरे इंतज़ार में..

- अलकनंदा सिंह         

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...