कभी देखा है तुमने-
विश्वास को,
सांसों से घात करते हुये
उन्हें ठगते हुये ? मैंने देखा है,
विश्वास की असली रंगत को,
जिससे भयाक्रांत हैं सांसें कि-
विश्वास पर विश्वास कभी
न करना,वरना------
यही तो बनाता है---
दोस्तों को द़श्मन,
अपनों को पराया
खून को पानी
अल्हढ़ को संजीदा
समय की सार्थकता
यही सिद्ध करता है
यही परिभाषित करता है प्रेम
यही पालता है स्वार्थ के जंगल
जीवन के सारे युद्धों का
यही है सूत्रधार
फिर भी जीवन जीने की
पहली जरूरत है विश्वास
पहली शर्त है विश्वास
जीवन का विराम है विश्वास
तो आओ नकारा विश्वास को
कर दें पदावनत अपने विश्वास से
और बो दें नये विश्वास का अंकुर
जिसकी फसल से लहलहा जाये
ये पीढ़ी और इसकी रग रग
उसके मन की कोरों में भी
फिर जम जाये अपना विश्वास
- अलकनंदा सिंह
विश्वास को,
सांसों से घात करते हुये
उन्हें ठगते हुये ? मैंने देखा है,
विश्वास की असली रंगत को,
जिससे भयाक्रांत हैं सांसें कि-
विश्वास पर विश्वास कभी
न करना,वरना------
यही तो बनाता है---
दोस्तों को द़श्मन,
अपनों को पराया
खून को पानी
अल्हढ़ को संजीदा
समय की सार्थकता
यही सिद्ध करता है
यही परिभाषित करता है प्रेम
यही पालता है स्वार्थ के जंगल
जीवन के सारे युद्धों का
यही है सूत्रधार
फिर भी जीवन जीने की
पहली जरूरत है विश्वास
पहली शर्त है विश्वास
जीवन का विराम है विश्वास
तो आओ नकारा विश्वास को
कर दें पदावनत अपने विश्वास से
और बो दें नये विश्वास का अंकुर
जिसकी फसल से लहलहा जाये
ये पीढ़ी और इसकी रग रग
उसके मन की कोरों में भी
फिर जम जाये अपना विश्वास
- अलकनंदा सिंह