भारत विद्याविद् डॉ. भगवतशरण उपाध्याय की आज पुण्यतिथि है। डॉ. भगवतशरण का जन्म जिला बलिया उप्र के एक गाँव उजियार में हुआ था। उनकी मृत्यु 12 अगस्त 1982 को मौरीशस में हुई।
वे अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान थे। भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व, संस्कृति और कला पर उपाध्याय जी ने अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रणयन किया है। साहित्य की हर विधा में उन्होंने अपनी लेखनी चलायी। इसके अलावा अनेक अनुवाद और कोशों का सम्पादन किया है। उनके कुल ग्रन्थों की संख्य सौ से भी ज्यादा है।
उपाध्याय जी ने छात्र-जीवन में असहयोग आन्दोलन से जुड़कर दो बार जेल यात्रा भी की। बाद में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। अपने शैक्षणिक काल में वे पुरातन विभाग प्रयाग तथा लखनऊ के अध्यक्ष, बिड़ला, कॉलेज, पिलानी के प्राध्यापक; इन्स्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़, हैदराबाद के निदेशक; विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष रहे। संयुक्त राज्य अमरीका और यूरोप के अनेक विश्वविद्यालयों के विजिटिंग प्रोफेसर होने के साथ देश-विदेश के कई सम्मेलनों की उन्होंने अध्यक्षता भी की नगरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हिन्दी विश्वकोश को उन्होंने सम्पादन किया है। सन् 1982 तक वे मारीशस में भारत के उच्चायुक्त पद पर रहे।
उनकी कृतियाँ: कालिदास का भारत, इतिहास साक्षी है, कुछ फीचर कुछ एकांकी, ठूंठा आम, सागर की लहरों पर, कालिदास के सुभाषित, पुरातत्त्व का रोमांस, सवेरा संघर्ष गर्जन, सांस्कृतिक निबन्ध, शेर बड़ा या मोर, बुद्धि का चमत्कार, भारत की मूर्तिकला की कहानी, भारत की संस्कृति की कहानी, भारतीय संगीत की कहानी, भारत के नगरों की कहानी, भारत के भवनों की कहानी, भारत की कहानी, भारत के पड़ोसी देश, भारत की नदियों की कहानी, भारत की चित्रकला की कहानी, भारत के साहित्यों की कहानी।
भगवतशरण उपाध्याय का व्यक्तित्व एक पुरातत्वज्ञ, इतिहासवेत्ता, संस्कृति मर्मज्ञ, विचारक, निबंधकार, आलोचक और कथाकार के रूप में जाना-माना जाता है। वे बहुज्ञ और विशेषज्ञ दोनों एक साथ थे। उनकी आलोचना सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के समन्वय की विशिष्टता के कारण महत्वपूर्ण मानी जाती है। संस्कृति की सामासिकता को उन्होंने अपने ऐतिहासिक ज्ञान द्वारा विशिष्ट अर्थ दिए हैं।
उन्होंने तीन खंडों में ‘भारतीय व्यक्तिकोश’ तैयार करने के अलावा नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दी विश्वकोश’ के चार खंडों का संपादन भी किया। भगवतशरण उपाध्याय का साहित्य-लेखन आलोचना से लेकर कहानी, रिपोर्ताज़, नाटक, निबंध, यात्रावृत्त, बाल-किशोर और प्रौढ़ साहित्य तक विस्तृत है।
वे अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान थे। भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व, संस्कृति और कला पर उपाध्याय जी ने अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रणयन किया है। साहित्य की हर विधा में उन्होंने अपनी लेखनी चलायी। इसके अलावा अनेक अनुवाद और कोशों का सम्पादन किया है। उनके कुल ग्रन्थों की संख्य सौ से भी ज्यादा है।
उपाध्याय जी ने छात्र-जीवन में असहयोग आन्दोलन से जुड़कर दो बार जेल यात्रा भी की। बाद में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। अपने शैक्षणिक काल में वे पुरातन विभाग प्रयाग तथा लखनऊ के अध्यक्ष, बिड़ला, कॉलेज, पिलानी के प्राध्यापक; इन्स्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़, हैदराबाद के निदेशक; विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष रहे। संयुक्त राज्य अमरीका और यूरोप के अनेक विश्वविद्यालयों के विजिटिंग प्रोफेसर होने के साथ देश-विदेश के कई सम्मेलनों की उन्होंने अध्यक्षता भी की नगरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हिन्दी विश्वकोश को उन्होंने सम्पादन किया है। सन् 1982 तक वे मारीशस में भारत के उच्चायुक्त पद पर रहे।
उनकी कृतियाँ: कालिदास का भारत, इतिहास साक्षी है, कुछ फीचर कुछ एकांकी, ठूंठा आम, सागर की लहरों पर, कालिदास के सुभाषित, पुरातत्त्व का रोमांस, सवेरा संघर्ष गर्जन, सांस्कृतिक निबन्ध, शेर बड़ा या मोर, बुद्धि का चमत्कार, भारत की मूर्तिकला की कहानी, भारत की संस्कृति की कहानी, भारतीय संगीत की कहानी, भारत के नगरों की कहानी, भारत के भवनों की कहानी, भारत की कहानी, भारत के पड़ोसी देश, भारत की नदियों की कहानी, भारत की चित्रकला की कहानी, भारत के साहित्यों की कहानी।
भगवतशरण उपाध्याय का व्यक्तित्व एक पुरातत्वज्ञ, इतिहासवेत्ता, संस्कृति मर्मज्ञ, विचारक, निबंधकार, आलोचक और कथाकार के रूप में जाना-माना जाता है। वे बहुज्ञ और विशेषज्ञ दोनों एक साथ थे। उनकी आलोचना सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के समन्वय की विशिष्टता के कारण महत्वपूर्ण मानी जाती है। संस्कृति की सामासिकता को उन्होंने अपने ऐतिहासिक ज्ञान द्वारा विशिष्ट अर्थ दिए हैं।
उन्होंने तीन खंडों में ‘भारतीय व्यक्तिकोश’ तैयार करने के अलावा नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दी विश्वकोश’ के चार खंडों का संपादन भी किया। भगवतशरण उपाध्याय का साहित्य-लेखन आलोचना से लेकर कहानी, रिपोर्ताज़, नाटक, निबंध, यात्रावृत्त, बाल-किशोर और प्रौढ़ साहित्य तक विस्तृत है।