Wednesday, 1 October 2014

पाइपलाइन में रिसाव ...

सुबह सुबह खबर मिली है कि...
कभी शहर की तरक्‍की के लिए अंग्रेजों ने
बिछाई थी जो पाइपलाइन पानी की-
आज वो फटकर रिस रही है...
खबर ये भी मिली है कि-
पानी के रिसाव से फट रहे हैं ,
मकान-दुकान-पुराने किले और दरी-दरवाजे।

मगर इस खबर के संग संग ही...
मेरी यादों में रिस रहा है वो समय भी,
कि जब शहर के बीचोंबीच बिछी इन्‍हीं पाइपलाइनों में,
बहते हुए तैरती थीं खुश्‍बुऐं मोहल्‍ले की- गलियों की,
प्‍यार की-  मनुहार की , बनते - बिगड़ते रिश्‍तों की
भरते हुए पानी के संग होती थी बहसें, चुहलबाजियां...
विस्‍मृत न होने वाली तैरती थीं कितनी  स्‍मृतियां भी।

आज फटते हुए मकानों में
जो बन  गई हैं खाइयां गहरी सी ,
रिसती आ रही हैं उनमें से वो सभी यादें,
वो बातें कि कैसे अधेड़ बाबा से ब्‍याही गई
दस साल की दादी, और दादी के
मुंह से ही सुनना उन्‍हीं की गौने की बातें,
गोदभराई, बच्‍चों की पैदाइश तक...सबकुछ।

रिसते पानी के संग वो सब भी रिस रहा है...
इन फटते पुराने मकानों से- बनती खाइयों से,
जर्जर होती यादों में आज फिर से 
वो ध्‍वनियां गूंज रही हैं कि कैसे-
गली-नुक्‍कड़ की दुकान के फड़ों पर बैठकर
उगाये जाते थे ठट्ठे कतई बेलौस होकर,
कभी गालों को दुखा देते थे जो... अपने इन्‍हीं ठट्ठों से,
आज वो सब यकायक मौन क्‍यों हैं,
चकाचौंध की धुंध चीर वो क्‍यों नहीं आगे आते...।

मन करता है धकेल दूं
फटी पाइपलाइन से परे, उन-
राज-मिस्‍त्रियों को... जो मरम्‍मत में जुटे हैं,
कह दूं कि रिसने दो इन्‍हें,
ये जर्जर हैं... बूढ़ी हैं...
मगर जीवित हैं... अब भी हमारी सांसों में,
सालों से बह रही हैं हमारा जीवन बनकर,
अरे, मिस्‍त्रियों !  ये पाइपलाइन सिर्फ पानी की नहीं है..
रिश्‍तों की, खुश्‍बू की, गलियों की, ठट्ठों की
न जाने कितनी पाइपलाइन हैं...वे भी सब फट रही हैं।

आज वो सब रिस रहा है ...इनके सहारे,
कि हम भूल गये हैं मन में झांकना, और
झांककर देखना कि आखिरी बार कब...
कब दबाये थे मां के सूखे ठूंठ होते पैर,
जिनकी बिवांइयों से झांक रही हैं,
पानी के रिसाव से फट चुके मकानों की पुरानी तस्‍वीर,
तस्‍वीरों में बहते रिश्‍तों का नमक-चीनी सब ।

- अलकनंदा सिंह
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...