Monday, 2 January 2023

पुण्‍यतिथ: पढ़िए जैनेन्द्र कुमार द्वारा अनूदित रूसी कहानीकार #LeoTolstoy की कहानी ''कितनी जमीन ?


 हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक जैनेन्द्र कुमार आज के ही दिन पैदा हुए थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिला अंतर्गत कौड़ियालगंज में 2 जनवरी 1905 को हुआ था जबकि निधन 24 दिसंबर 1988 को हुआ। 

वो हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कथाकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार थे। जैनेन्द्र अपने पात्रों की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त रूप से उभरती हैं। 
साहित्यिक परिचय
'फाँसी' इनका पहला कहानी संग्रह था, जिसने इनको प्रसिद्ध कहानीकार बना दिया। उपन्यास 'परख' से सन्‌ 1929 में पहचान बनी। 'सुनीता' का प्रकाशन 1935 में हुआ। 'त्यागपत्र' 1937 में और 'कल्याणी' 1939 में प्रकाशित हुए। इसके बाद 1930 में 'वातायन', 1933 में 'नीलम देश की राजकन्या', 1934 में 'एक रात', 1935 में 'दो चिड़ियाँ' और 1942 में 'पाजेब' का प्रकाशन हुआ। 'जैनेन्द्र की कहानियां' सात भागों उपलब्ध हैं। उनके अन्य महत्त्वपूर्ण उपन्यास हैं- 'विवर्त,' 'सुखदा', 'व्यतीत', 'जयवर्धन' और 'दशार्क'। 'प्रस्तुत प्रश्न', 'जड़ की बात', 'पूर्वोदय', 'साहित्य का श्रेय और प्रेय', 'मंथन', 'सोच-विचार', 'काम और परिवार', 'ये और वे' इनके निबंध संग्रह हैं। तालस्तोय की रचनाओं का इनके द्वारा किया गया अनुवाद उल्लेखनीय है। 'समय और हम' प्रश्नोत्तर शैली में जैनेन्द्र को समझने की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। 

पढ़िए जैनेन्द्र कुमार द्वारा अनूदित रूसी कहानीकार #LeoTolstoy की कहानी ''कितनी जमीन ?

दो बहनें थीं बड़ी बहन की शादी कस्बे में एक सौदागर से हुई थी जबकि छोटी बहन की शादी देहात में किसान के घर हुई थी बड़ी बहन छोटी बहन के घर आकर अपने शहर के जीवन की तारीफ़ करने लगी देखो कैसे आराम से हम रहते हैं फैंसी कपड़े पहनते हैं अच्छे-अच्छे पकवान खाते हैं और फिल्म देखने चाहते हैं और बाग-बगीचों में घूमते हैं.


छोटी बहन को बड़ी बहन की कही बातें बुरी लगी वह अपनी बहन से कहने लगी थी मैं तो तुम्हारे बाल बराबरी कभी नहीं करुंगी क्योंकि हम तो सीधे-साधे रहते हैं हम किसान हैं हमारी जिंदगी फूलों के समान है महकती रहती है हमें किसी से भी कोई जलन नहीं होती और हमारा शरीर मजबूत रहता है क्योंकि हम दिन भर काम करते हैं.

छोटी बहन का पति दीना बाहर बैठा दोनों की यह बातें सुन रहा था उसने सोचा कि बड़ी बहन की बातें तो खड़ी हैं बात आई गई हो गई एक दिन  टीना अपने घर के बरामदे में बैठा था कि एक सौदागर उधर से गुजरता हुआ उसके घर आया उसने बताया कि यह दरिया किनारे की बस्ती है बिना नहीं सोचा कि वहां की “जमीन” तो बहुत ही उपजाऊ है उसके मन में इच्छा हुई थी वह यहां क्यों पड़ा है.

जबकि दूसरी जगह मौका है यहां की जमीन बेचकर पैसे लेकर क्यों न नए सिरे से जीवन शुरू करके देखूं उसके अपने तैयारी शुरु कर दी बीवी से कहा कि घर की देखभाल करना और खुद एक को साथ लेकर निकल गया रास्ते में चाय के डिब्बे और उपहार की अन्य चीजें खरीदी, सातवें दिन में कॉल लोगों की बस्ती में पहुंच गए वहां पहुंचकर उसने देखा कि सौदागर ने जो बात बताई थी वह सच थी कॉल लोगों की जमीन बहुत ही अच्छी थी बीमा को देखते ही सब अपने तंबुओं से निकल आए और उसके चारों तरफ आकर खड़े हो गए उनमें से एक आदमी ऐसा था जो देना और उन लोगों की भाषा को समझता था.

देना ने उसी के जरिए उन लोगों को बताया कि वह यहां “जमीन” के लिए आया है वह लोग बड़े खुश हुए बड़ी आओ भगत के साथ उसे अपने अच्छे अच्छे घरों में ले गए पीने को चाय दी देना ने भी अपने पास से कुछ उपहार की चीजें से निकाली और उन सबको दे दी वे लोग भी बड़े खुश हुए फिर उस आदमी ने कहा की मेहमान को सब समझा दो किस दे कहना चाहते हैं कि हम आपके आने से खुश हैं बताओ हमारे पास कौन सी चीज है जो आप को सबसे अधिक पसंद है.

ताकि हम उसे आपके लिए ला सकें बिना ने जवाब दिया की जिस चीज को देखकर मैं खुश हूं वह आप की “जमीन” है हमारे यहां “जमीन” कम है और इतनी अच्छी भी नहीं है उसमें कुछ भी खेती अच्छी तरह नहीं होती लेकिन यहां तो उसका कोई अंत नहीं है यहां की जमीन बहुत उपजाऊ है मैंने तो अपनी आंखों से यहां जैसी धरती कहीं और नहीं देखी.

बिना ने अपनी बात उन लोगों को समझा दी कुछ देर से आपस में सलाह करने लगे उन लोगों की आपस में बातचीत चल रही थी की बड़ी सी टोपी पहने उनका सरदार वहां आया सब चुप होकर उसके सम्मान में खड़े हो गए दीना को बताया कि यह हमारे सरदार हैं बिना ने फौरन अपने सामान में से एक बढ़िया सा तोहफा निकाला और उस को दे दिया सरदार ने भेंट ले ली और अपने आसन पर बैठ गया और बोला तुम्हें कितनी “जमीन” चाहिए ले लो हमारे यहां जमीन की कोई कमी नहीं है.

बिना ने सोचा कि मैं चाहे जितनी “जमीन” कैसे ले सकता हूं पक्का करने के लिए कागज भी तो चाहिए नहीं तो जैसे आज उन्होंने कह दिया है वैसे ही कल यह ले भी लेंगे टीना ने कहा कि मैं जमीन  लूंगा जब आप मुझे कागज पर पक्का करके देंगे सरदार बोला ठीक है यह तो आसानी से हो जाएगा हमारे यहां एक मुंशी है जो लिखा-पढ़ी पक्की कर लेगा दीना बोला तो कीमत क्या होगी सरदार ने कहा एक दिन के 1000 दी ना समझ नहीं पाया.

वह बोला यह हिसाब तो मुझे नहीं आता एकड़ का हिसाब बताएं सरदार ने कहा कि जितना चलोगे उतनी “जमीन” तुम्हारी हो जाएगी और उस दिन का 1000 लेंगे देना सोच में पड़ गया बोला इस से तो हो सारी “जमीन” गिरी जा सकती है सरदार हंसा बोला था क्यों नहीं पर शर्त यह है कि अगर तुम उसी दिन उसी जगह ना आ गए जहां से चले थे तो कीमत दोगुनी हो जाएगी दीना खुश हो गया और अगले दिन सवेरे ही चलना शुरु कर दिया फिर कुछ बातें हो खाना पीना हुआ ऐसे करते करते रात हो गई बिना बिस्तर पर लेटा तो रहा पर उसे नींद नहीं आई रह रह कर उसे वही “जमीन” दिखाई दे रही थी.

सवेरा हुआ और उसने अपने दोस्त को उठाया जो गाड़ी में सोते हुए जा रहा था बोला उठ जाओ गज जमीन नापने चलना है सब तैयार हुए और सब चल पड़े दीना ने फावड़ा खरीद लिया खुले मैदान में जब पहुंचे तब तक सूरज चढ़ चुका था बस एक ऊंची पहाड़ी थी और खुला मैदान सरदार ने इशारा करते हुए कहा जहां तक नजर जाती है हमारी जमीन है अब तुम देख लो तुम्हें “जमीन” जमीन लेनी है वीना ने रुपए निकाले और  गिन कर रख दिए फिर उसमें पहना हुआ अपना कोट उतार डाला और धोती को कस लिया कुर्ते की बाजू ऊपर की और पानी लेकर चल दिया.

फिर देखने लगा कि मैं किस तरफ चलूं क्योंकि उसे “जमीन” का बहुत बड़ा लालच था उसने फावड़ा लिया और चलना शुरु किया 2 3 4 चल के पैर फिर एक गड्ढा खोदा और उसमें ऊंची घास चिंदी फिर वह आगे बढ़ा और फुर्ती से चलने लगा तथा जहां रखता ही गड्ढा खोद दे ता ता के सरदार को पता चल जाए कि वह कितनी दूर चला है उसने अपने जूते उतार दिए और धोती ऊपर कर ली अब चलना आसान हो गया वह दो तीन मिल चला और उसने सोचा और चलता हूं ताकि और जमीन ले सकूं वह इतनी दूर चल चुका था कि जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो वह पहाड़ी बहुत दूर दिख रही थी जहां से उसने चलना शुरु किया था.

वहां धूप में जाने क्या कुछ चलता हुआ था दिखाई पड़ रहा था वीना ने सोचा मैं तो बहुत दूर आ गया हूं अब लौटना चाहिए उसे पसीना भी आ रहा था और प्यास लग रही थी पर फिर सोचा थोड़ी “जमीन” को ले लूं फिर वापस लौट लूंगा क्योंकि थोड़ा सा काम कर लूं फिर तो जिंदगी भर आराम ही आराम हो जाएगा, एक तरफ उसने काफी लंबी जमीन नाप ली थी वहीं दूसरी तरफ मुड़ कर देखा तो उसे वह जगह ही नहीं मिल रही थी.

जहां उसने गड्ढा बनाया और जहां से चलना शुरु किया था टीना ने सोचा आज मैंने ज्यादा “जमीन” नाप ली वह तेज कदमों से तीसरी तरफ बढ़ा उसने सूरज को देखा सूरज अब तिहाई पर था अब वह वापस उस पार्टी की तरफ मुड़ने लगा जहां से उसने चलना शुरु किया था उसके पैरों में छाले पड़ चुके थे और सुरक्षित नाही वाला था सूरज जैसे जैसे नीचे भंगा था उसके मन में सोच होने लगी कि मुझे तो बड़ी भूल हो गई थी.

मैंने इतने पैर क्यों पसार लिए जब मैं वापस नहीं पूछूंगा तो सरदार  भी जमीन भी नहीं देगा पैसे दुगने कर देगा आप जीना डेट एंड भागने लगा उसकी सांस फूलने लगी और उसे बहुत दुख हो दर्द होने लगा रहते तेज भागने लगा उसने अपने कंधे से धोती अलग के जूते फेंक दिए और बस वह उस पहाड़ी की तरफ दौड़ने लगा बोला क्या करूं मेरा काम तो बिगड़ने ही वाला है इस सोच में डर के कारण मैं तेज तेज हाफ ने लगा पसीना हो गया उसका सारा मुंह लाल हो गया था आगे जाकर उसे उन लोगों की आवाज सुनाई दी.

जिनके पास वह “जमीन” लेने आया वह उसे जोर जोर से बुला रहे थे सूरज धरती से लगा जा रहा था अंधेरा होने ही वाला था अब उसे वह सरदार और वो लोग दिखाई दे रहे थे उसके पैरों ने उसका साथ छोड़ दिया था उसकी सास लंबी-लंबी चल रही थी लेकिन फिर भी वह दौड़ आ जा रहा था क्योंकि जहां वह लोग खड़े थे वहां से तो सूरज चमक रहा था पर देना को नहीं जीना खूब भाग भाग के सरदार के पास आया, सरदार जोर-जोर से हंसने लगा और आकर गिर गया जैसे ही गिरा देना का नौकर उसे पकड़ने आया तो देखा और दीना के मुंह से खून निकल रहा था वह मर चुका था नौकर ने उसको उठाया और वहीं पर दफना दिया.

कहानी का सार: 
हम पूरी जिंदगी इसी उलझन में रहते हैं कि हमें यह मिल जाए हमें वह मिल जाए और हमारी इच्छाएं कभी भी पूरी नहीं होती जीवन खुशियों से भरा है लेकिन हम उसे इसी दुख में बिता देते हैं कि हमें यह नहीं मिला वह नहीं मिला हमारा मोह इस संसार में भरा है जब तक हमारा लालच रहेगा हम ना तो जी पाएंगे और ना ही दूसरों को जीने देंगे.
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