Sunday, 17 November 2019

कवयित्री रश्मिरेखा की दो कव‍ितायें

प्रख्यात कवयित्री डॉ. रश्मिरेखा का शुक्रवार देर रात ब‍िहार में मुजफ्फरपुर के रामबाग स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। उक्त रक्तचाप के कारण ब्रेन हेमरेज हुआ और उन्होंने तुरंत दम तोड़ दिया। 64 वर्षीया डॉ. रश्मिरेखा के निधन की खबर मिलते ही साहित्यकारों व कवियों में शोक की लहर दौड़ गई। 28 नवंबर को रश्मिरेखा के पुत्र की शादी थी। घर में उत्सवी माहौल था। वह अपने पीछे पति डॉ. अवधेश कुमार, पुत्र डॉ. संकेत व पुत्री डॉ. प्राची समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गई हैं। समकालीन कविता की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर डॉ. रश्मिरेखा आलोचना के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय स्तर पर जानी जाती थीं।
आज पढ़‍िए उनकी ये दो रचनायें-
झोला
नहीं जानती किन छोटी-मोटी जरूरतों के तहत
आविष्कार हुआ होगा झोले का
पहिये के बाद सृष्टि का सबसे बड़ा आविष्कार
समय की फिसलन से कुछ चीज़े बचा लेने की
इच्छाओं ने मिल -जुल कर रची होगी शक्ल झोले की
पर इससे पहले बनी होगी गठरियौ
कुछ सौगात अपनों के लिए
बांध लेने की ख्वाहिश में
उम्र के बहाव में पीछा करते एहसास
मुश्किलें आसन करने के कुछ आसन नुस्ख़े
अपनों के लिए बचाने की खातिर ही
बनी होगी तह-दर-तह
चेहरे पर झुर्रियो की झोली
जिसे बाँट देना चाहता होगा हर शख्स
जाने से पहले
कि बची रह सके उसके छाप और परछाईं
कुछ लेने के लिए भी तो चाहिए झोले
घर में एक के बाद एक आते है दूसरे नए-नए झोले
कभी-कभी सिर्फ़ अपने लिए बनते है ये
दिल की भीतरी तहों में
हर झोले में होते है चीज़ो के अलग महीन अर्थ
लिपि बनने को आतुर रेखाऍ
शिल्प में ढलने को मचलती आकृतियाँ
जागते हुए सपने देखने की कला
दरअसल इसी में फंसा होता है हमारा चेहरा।
…………..
मां
अंत:सलिला हो तुम मेरी माँ
ऊपर-ऊपर रेत
भीतर-भीतर शीतल जल
रेत भी कैसी स्वर्ण मिली
जिन्हें अलग करना संभव नहीं
अक्सर जब चाहा है
उसे कुरेदने पर
पाया हैं वह सब कुछ
जिसकी ज़रूरत होती है
अपनी जड़ों से कट कर जीने को विवश
तुम्हारी बेटी को
पिता से सीखा था सपनों में रंग भरना
पर जाना तुमसे
कैसे चलना है खुरदुरी जमींन पर
तुम संतुलित करती रहीं लगातार
दुनिया के अपने तीखे अनुभवों और
तपती रेत के इतिहास द्वारा
बहुत कुछ पाकर
बहुत कुछ खोकार
आधी-अधूरी बनी रह कर भी माँ
इंगित करती रही दिशाओं की ओर
सिखाती रही जूझना
समय ने वैसा नहीं बनने दिया
जैसा चाहती थी तुम हमें गढ़ना
पर अनंत जिजीविषा से भरी मेरी माँ
तुम्हारी आँखें तो भविष्य पर रहती हैं
शायद इसीलिये
तुम्हारी सोच में अब
हम नहीं हमारे आकार लेते बच्चे हैं।
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...