उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर के गांव तिकवांपुर के निवासी भूषण की कुछ प्रमुख कृतियाँ और भी हैं जैसे कि -
शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक। शिवाजी तथा छत्रसाल के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन। भूषण (1613-1705) रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों बिहारी, केशव और भूषण में से एक हैं। रीति काल में जब सब कवि श्रृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर के भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार भूषण का जन्म संवत 1670 तदनुसार ईस्वी 1613 में हुआ। उनका जन्म स्थान कानपुर जिले में तिकवांपुर नाम का ग्राम बताया जाता है। उनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था। वे काव्यकुब्ज ब्राह्मण थे।
भूषण के वास्तविक नाम का ठीक पता नहीं चलता। शिवराज भूषण ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार भूषण उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी -
कुल सुलंकि चित्रकूट-पति साहस सील-समुद्र।
कवि भूषण पदवी दई, हृदय राम सुत रुद्र।।
तो पढ़िए ये कविता-
इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,
रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।
पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,
'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं,
तीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं॥
भूषन शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग,
बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं।
'भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास,
नगन जडातीं ते वे नगन जडाती हैं॥
छूटत कमान और तीर गोली बानन के,
मुसकिल होति मुरचान की ओट मैं।
ताही समय सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो,
दावा बांधि परा हल्ला बीर भट जोट मैं॥
'भूषन' भनत तेरी हिम्मति कहां लौं कहौं
किम्मति इहां लगि है जाकी भट झोट मैं।
ताव दै दै मूंछन, कंगूरन पै पांव दै दै,
अरि मुख घाव दै-दै, कूदि परैं कोट मैं॥
बेद राखे बिदित, पुरान राखे सारयुत,
रामनाम राख्यो अति रसना सुघर मैं।
हिंदुन की चोटी, रोटी राखी हैं सिपाहिन की,
कांधे मैं जनेऊ राख्यो, माला राखी गर मैं॥
मीडि राखे मुगल, मरोडि राखे पातसाह,
बैरी पीसि राखे, बरदान राख्यो कर मैं।
राजन की हद्द राखी, तेग-बल सिवराज,
देव राखे देवल, स्वधर्म राख्यो घर मैं॥
#कवि #भूषण
प्रस्तुति: अलकनंदा सिंंह
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
वाह ! वाह!! वाह!!!बहुत ही ज्ञानवर्धक और रोचक प्रस्तुति!!
ReplyDeleteधन्यवाद विश्वमोहन जी
Deleteउपयोगी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआज के रचनाधर्मियों के लिए प्रेरणा भी है।
धन्यवाद शास्त्री जी
Delete
ReplyDeleteकवि भूषण से परिचय करवाने के लिए आभार अलकनंदा जी,सादर नमन
धन्यवाद कामिनी जी
Deleteबढ़िया संकलन के लिए आभार ।
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी, बहुत दिनों बाद आपकी टिप्पणी देख कर मन हर्षित हुआ
Deleteकवि भूषण के परिचय के साथ उनकी एक सुंदर कृति ,ये बहुत सार्थक कार्य रहा ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
साधुवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति और भूषण के सारगर्भित रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कविता जी
Deleteऔर भी ....साजि चतुरंग संग अंग में उमंग भरि ....
ReplyDeleteभुज भुजगेश की बैसंगिनी भुजंगिनी सी ...वास्तव में भूषण की कविता ओजगुण से परिपूर्ण है .
आदरणीय गिरिजाा जी, प्रणाम, बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteकंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं,
ReplyDeleteतीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं॥
स्कूल में अलंकार पढ़ते समय भूषण की इन पंक्तियों का उपयोग करते थे, भूषण की कवित्व शक्ति अनुपम है
हां जी, स्कूल के दिनों में इन्हें खूब रटाया गया था...बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी
Deleteहिन्दी को जीवन्तता प्रदान करती अनुपम कृति..जैसे शब्द वैसे भाव वैसे हो जोश..सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी
Deleteबहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसुन्दर लेखन उपयोगी जानकारी, कवि भूषण से परिचय भी कराया आपने आभार, जय श्री राधे
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