शिवा बावनी भूषण द्वारा रचित बावन (52) छन्दों का काव्य है जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। इसमें इस बात का वर्णन है कि किस प्रकार उन्होंने हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा की।
हिन्दू धर्म के बचे रहने के पीछे हिंदुस्तान के छोटे-छोटे राज्यों और विकेद्रीकृत शासन का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। इस्लामी आक्रांताओं ने हमला कर ईरान के केंद्रीकृत शासन को हराकर सब अपने कब्जे में कर लिया था, और फिर पूरे ईरान के लोगों को धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन भारत में ऐसा कभी नहीं हो पाया।
इतिहासकारों के अनुसार औरंगजेब के समय मुग़ल साम्राज्य सबसे अधिक विस्तृत था। औरंगजेब जिहादी कट्टरपंथी था और हिंदुओं को प्रताड़ित कर उनका धर्म परिवर्तन कराना उसकी शासकीय नीति थी। उसके चरमोत्कर्ष पर भी शिवाजी महाराज जैसे शासकों ने डट कर उसका मुक़ाबला किया। महाकवि भूषण ने शिवा बावनी में लिखा है:
साजि चतुरंग बीररंग में तुरंग चढ़ि।
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है॥
भूषन भनत नाद विहद नगारन के।
नदी नद मद गैबरन के रलत हैं॥
ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,
गाजन की ठेल-पेल सैल उसलत है।
तारा सों तरनि घूरि धरा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत है॥
पीरा पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत,
सिद्ध की सिधाई गई, रही बात रब की।
कासी हूँ की कला गई मथुरा मसीत भई
शिवाजी न होतो तो सुनति होती सबकी॥
कुम्करण असुर अवतारी औरंगजेब,
कशी प्रयाग में दुहाई फेरी रब की।
तोड़ डाले देवी देव शहर मुहल्लों के,
लाखो मुसलमाँ किये माला तोड़ी सब की॥
भूषण भणत भाग्यो काशीपति विश्वनाथ
और कौन गिनती में भुई गीत भव की।
काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती
शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सब की ॥
बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,
नाहीं ठहराने राव राने देस देस के।
नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि,
बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥
हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,
भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के।
दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे,
केरा के से पात बिगराने फन सेस के ॥
-अलकनंदा सिंह
No comments:
Post a Comment