Wednesday, 5 June 2024

एक कहानी- फेसबुक वॉल से... जो बदल देगी आपका नज़र‍िया

 


जैसे ही खबर मिली कि रामाधीर चल बसा, मैं भागता हुआ उसके घर की ओर निकल पड़ा।

मुझे उस पर विश्वास ही नहीं करना चाहिए था। पैसे से तो गरीब ही था पर गांव में उसकी बहुत इज्जत थी। कुछ महीने पहले ही तो आया था वो

"विक्रम बाबू! पचास हजार रुपये चाहिए, वही दो प्रतिशत ब्याज पर, अगले साल फरवरी में दे दूंगा"

इससे पहले भी उसने मुझसे दो चार बार पैसे उधार लिए थे। और तय वक़्त पर सूद समेत लौटा भी दिए थे। 

किसान आदमी था..मेहनती भी था। उसकी ईमानदारी पर शक नहीं था। पर चिंता की बात ये है कि इस लेन देन का कोई हिसाब है नहीं मेरे पास। बेटे के एडमिशन में लाखों का खर्चा भी है, और फिर आज ये खबर मिली

मैं उसके घर पहुंचा तो गांव के कुछ लोग भी थे। 

रामाधीर अब रहा नहीं, मैं कहूँ भी तो कहूँ किससे। मुझे देख उसका बेटा, जो लगभग अठारह वर्ष का होगा, वो आया

"बैठिए..चाचा"

"हां.. कैसे..अचानक.."

"सीने में दर्द उठा..कल रात में.. हॉस्पिटल ले जाते वक़्त ..रास्ते में ही..."

"ओह"

इसके अलावा मेरे मुंह से उसे देख कुछ निकला ही नहीं। और उनकी गरीबी, और लाचारी देख शायद..कुछ महीने निकलेगा भी नहीं। कुछ देर बैठ..मैं निकलने ही वाला था कि एक वृद्ध व्यक्ति बगल के ही गांव से आया और आते ही, अपने गमछे से अपने आंसू पोंछता, मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा

"ये पचास हजार रुपये.. तुम्हारे बापू ने.. इसी विक्रम बाबू से लिये थे"

मैं आश्चर्य से उन्हें देखने लग गया

"बिटिया की शादी और घर मरम्मत के लिए जरूरत थी, हम गरीब को कौन इतनी बड़ी रकम देता..तो रामाधीर ने बड़ी मदद की थी उस समय" उसने लगभग रोते हुए वो पैसे उसके बेटे को दे दिए

उस वृद्ध व्यक्ति की आँखों में रामाधीर के लिए श्रद्धा भाव देख, मन मेरा भी भर आया और मैं सोचने लगा कि, हमसे सूद पर पैसे लेकर, उस महान व्यक्ति ने किसी गरीब की समय पर मदद की और उससे सूद भी नहीं लिया..

और..मैं..! मेरा मन मुझे धिक्कारने लग गया। 

तभी उसका बेटा मेरे करीब आया

"चाचा ये आपके पैसे" वो पैसे पकड़ा..अपने पिता के अंतिम संस्कार की तैयारी के लिए बढ़ा ही था

"सुनो बेटे..रामाधीर ने मुझसे चालीस ही लिए थे..ये दस उसी के थे"

मैं जानता हूँ, मैंने झूठ कहा था..पर ये मेरी ओर से उस गुरु को गुरुदक्षिणा थी..जो जाते जाते मुझे..मानवता का पाठ पढ़ा गया..!......आंख भिगो दी रामाधीर तुमने तो |


साभार- Pravin Agrawal  #कहानीवाला 

5 comments:

  1. रामाधीर ने मुझसे चालीस ही लिए थे
    सादर वंदन

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  2. मानवता के पाठ ही बचे रहें चाहे कहानियों में चाहे किताबों में | काफी है |

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  3. कहानियाँ कितने पाठ पढ़ा जाती हैं

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  4. बहुत सुन्दर

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