मैंने आज मंटो की लघुकथाऐं पढ़कर ये जाना कि कहानी के नाम पर खर्रे के खर्रे भरना जरूरी नहीं, एक पूरी कथा एक छोटी सी लाइन में कही जा सकती है। हम हिंदू मुसलमान करते रहते हैं और इंसानियत इस बीच इन्हीं शब्दों के बीच उधेड़ दी जाती है और कोई उफ तक नहीं करता मगर मंटो ने ये कर दिखाया।
सआदत हसन मंटो भारतीय उपमहाद्वीप के महान उर्दू कहानीकार थे। उनकी कहानियां भारत-पाक विभाजन के दंश का प्रामाणिक दस्तावेज हैं। बंटवारे के दर्द को बेहद गहराई से समझने, उसके संवेदनात्मक व मानवीय पहलू को बेहतरीन रूप से प्रस्तुत करने का नाम है मंटो! मानवीय त्रासदी उनकी रचनाओं में बेहद शिद्दत से उपस्थित हुआ है, इसीलिए वे दोनों देशों में आज भी लोकप्रिय हैं।
मंटो की रचना यात्रा उनकी कहानियों की तरह ही बड़ी ही विचित्रता से भरी हुई है। एक ऐसा शख्स जो जालियांवाला बाग कांड से उद्वेलित होकर पहली बार अपनी कहानी लिखने बैठता है वो औरत-मर्द के रिश्तों की उन परतों को उघाड़ने लगता है जहाँ से पूरा समाज ही नंगा दिखने लगता है।
मंटो ने ताउम्र मजहबी कट्टरता के खिलाफ लिखा, मजहबी दंगे की वीभत्सता को अपनी कहानियों में एक जिंदा तस्वीर के रूप में प्रस्तुत किया। उनके लिए मजहब से ज्यादा कीमत इंसानियत की थी।
1 ) करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अँधेरे में बाहर फेंकने लगे; कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौका पाकर अपने से अलहदा कर दिया, कानूनी गिरफ्त से बचे रहें।
एक आदमी को बहुत दिक्कत पेश आई। उनके पास शक्कर की दो बोरियाँ थीं जो उसने पंसारी की दुकान से लूटी थीं। एक तो वह जूँ-तूँ रात के अँधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा तो खुद भी साथ चला गया।
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गए। कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं। जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया; लेकिन वह चंद घंटों के बाद मर गया।
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था।
उसी रात उस आदमी की कब्र पर दीए जल रहे थे ।
2 ) गलती का सुधार
"कौन हो तुम?"
"तुम कौन हो?"
"हर-हर महादेव…हर-हर महादेव!"
"हर-हर महादेव!"
"सुबूत क्या है?"
"सुबूत…? मेरा नाम धरमचंद है।"
"यह कोई सुबूत नहीं।"
"चार वेदों में से कोई भी बात मुझसे पूछ लो।"
"हम वेदों को नहीं जानते…सुबूत दो।"
"क्या?"
"पायजामा ढीला करो।"
पायजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया-"मार डालो…मार डालो…"
"ठहरो…ठहरो…मैं तुम्हारा भाई हूँ…भगवान की कसम, तुम्हारा भाई हूँ।"
"तो यह क्या सिलसिला है?"
"जिस इलाके से मैं आ रहा हूँ, वह हमारे दुश्मनों का है…इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा, सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए…एक यही चीज गलत हो गई है, बाकी मैं बिल्कुल ठीक हूँ…"
"उड़ा दो गलती को…"
गलती उड़ा दी गई…धरमचंद भी साथ ही उड़ गया।
3 ) घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे खरीद लिया।
रात गुजारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा-"तुम्हारा क्या नाम है?"
लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया-"हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मजहब की हो…"
लड़की ने जवाब दिया-"उसने झूठ बोला था।"
यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा-"उस हरामजादे ने हमारे साथ धोखा किया है…हमारे ही मजहब की लड़की थमा दी…चलो, वापस कर आएँ…।"
4 ) मिशटेक
छुरी पेट चाक करती (चीरती) हुई नाफ (नाभि) के नीचे तक चली गई।
इजारबंद (नाड़ा) कट गया।
छुरी मारने वाले के मुँह से पश्चात्ताप के साथ निकला-"च् च् च्…मिशटेक हो गया!"
5 ) रियायत
"मेरी आँखों के सामने मेरी बेटी को न मारो…"
"चलो, इसी की मान लो…कपड़े उतारकर हाँक दो एक तरफ…"।
- अलकनंदा सिंह
बंटवारे के वक्त जितनी नीचता हुई उसे मंटो जी की कलम ने जिस तरह से उधेड़ा है उसे पढ़कर खुद को इन्सान भी कहने में शर्म आती है। उनकी लिखी एक एक (कहानी नहीं कहूंगी) दास्तां आत्मा चीर देती है।एक बार फिर से इसे पढ़वाने के लिए हृदयतल से शुक्रिया अलकनंदा जी 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद कामिनी जी , आपकी टिप्पणी हमें ऐसा कलेक्शन करने को प्रेरित करती है
Deleteबहुत ही हृदयस्पर्शी लघकथाएं ।
ReplyDeleteसआदत हसन मंटो एवं उनकी रचनाओं से परिचय करवाने हेतु दिल से धन्यवाद अलकनंदा जी !
हार्दिक आभार सुधा जी इस प्रेरणात्मक टिप्प्णी के लिए
Deleteमंटो की कहानियाँ रोंगटे खड़े कर देती हैं । बँटवारे के समय होने वाली घटनाओं को ज्यों का त्यों लिख दिया है ।
ReplyDeleteयहाँ पढ़वाने के लिए आभार ।
मंटो मेरे पसंदीदा कहानीकार हैं जो अपनेशब्दों से मन तक सीधे पहुंच जाते हैं...आपका आभार संगीता जी, पोस्ट पर कमेंट करने के लिए धन्यवाद
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