13 जून 1865 को पैदा हुए विलियम बट्लर येट्स 20वीं शताब्दी के साहित्य के बड़े नामों में से एक थे। दिसम्बर 1923 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 28 जनवरी 1939 को उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी अनेक कविताओं का अनुवाद महाकवि हरिवंशराय बच्चन ने हिंदी में किया है।
ज़्यादा दिन मत नेह लगाना
प्राण-प्रियतमे, ज़्यादा दिन मत नेह लगाना,
ज़्यादा दिन तक नेह लगाकर मैंने सीखा है पछताना,
मैं ऐसा बे-फ़ैशन का माना जाता हूं
जैसे कोई गीत पुराना ।
ज़्यादा दिन मत नेह लगाना
प्राण-प्रियतमे, ज़्यादा दिन मत नेह लगाना,
ज़्यादा दिन तक नेह लगाकर मैंने सीखा है पछताना,
मैं ऐसा बे-फ़ैशन का माना जाता हूं
जैसे कोई गीत पुराना ।
एक इस तरह थे हम यौवन के वर्षों में
हाय, कहाँ वह गया ज़माना
क्या उसके मन, क्या मेरे मन,
इसे असम्भव था अलगाना।
हाय, कहाँ वह गया ज़माना
क्या उसके मन, क्या मेरे मन,
इसे असम्भव था अलगाना।
लेकिन पल में बदल गई वह
ज़्यादा दिन मत नेह लगाना,
वरना तुम भी हो जाओगे बे-फ़ैशन के,
जैसे कोई गीत पुराना ।
समय से ज्ञान होता है
तरु में अनगिन पत्ते होते,
मूल, मगर, होता है एक;
मैंने पत्ते-फूल दिखाए,
यौवन के सब दिन झुठलाए,
अब मुझको बूढ़ा होने दो
हाथों में ले मूल-विवेक
तरु में अगणित पत्ते होते,
मूल, मगर, होता है एक।
गिलहरी के प्रति
गिल्ली रानी, आओ, आओ
मुझसे खेलो,
मुझसे प्यार-दुआएं ले लो ।
ज़्यादा दिन मत नेह लगाना,
वरना तुम भी हो जाओगे बे-फ़ैशन के,
जैसे कोई गीत पुराना ।
समय से ज्ञान होता है
तरु में अनगिन पत्ते होते,
मूल, मगर, होता है एक;
मैंने पत्ते-फूल दिखाए,
यौवन के सब दिन झुठलाए,
अब मुझको बूढ़ा होने दो
हाथों में ले मूल-विवेक
तरु में अगणित पत्ते होते,
मूल, मगर, होता है एक।
गिलहरी के प्रति
गिल्ली रानी, आओ, आओ
मुझसे खेलो,
मुझसे प्यार-दुआएं ले लो ।
तुम तो ऐसे भाग रही हो
जैसे मेरे पास तमंचा,
जो कि चला दूंगा मैं तुम पर;
ग़लत समझतीं मेरी मंशा ।
जैसे मेरे पास तमंचा,
जो कि चला दूंगा मैं तुम पर;
ग़लत समझतीं मेरी मंशा ।
बस, इतना ही कर सकता हूं,
यही करूंगा,
ज़रा तुम्हारा सिर सहलाकर
जाने दूंगा
यही करूंगा,
ज़रा तुम्हारा सिर सहलाकर
जाने दूंगा
गिल्ली रानी, आओ, आओ
मुझसे खेलो,
मुझसे प्यार-दुआएं ले लो ।
हवा में नाचता हुआ बच्चा
नाचे जाओ सिन्धु-तीर पर
तुमको क्या परवाह
तरंगें और हवाएँ गरज रही हैं ?
खारी बून्दों से भीगी अलकें लहराओ
नाचे जाओ ।
मुझसे खेलो,
मुझसे प्यार-दुआएं ले लो ।
हवा में नाचता हुआ बच्चा
नाचे जाओ सिन्धु-तीर पर
तुमको क्या परवाह
तरंगें और हवाएँ गरज रही हैं ?
खारी बून्दों से भीगी अलकें लहराओ
नाचे जाओ ।
तुम छोटे हो,
अभी नहीं तुमने देखी है,
विजय मूर्ख की,
हार प्रेम की
अभी नहीं तुमने देखी है,
विजय मूर्ख की,
हार प्रेम की
ज्यों ही वह विजयी होता है,
कटी फ़सल गट्ठों में बन्धने को बाक़ी है
और खेतिहर मर जाता है।
कटी फ़सल गट्ठों में बन्धने को बाक़ी है
और खेतिहर मर जाता है।
तुमको क्या डर
अगर बवण्डर दानव-स्वर में चिल्लाता है ।
अगर बवण्डर दानव-स्वर में चिल्लाता है ।
बहुत सुंदर और ज्ञानप्रद रचना। उनकी मृत्यु के वर्ष में सुधार करें। आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद विश्वमोहन जी , गलती सुधार दी है, धन्यवाद
ReplyDelete. सत्य है ज्यादा दिन नेह नहीं लगाना चाहिए हर चीज जीवन में आनी जानी है नेह को पकड़ कर बैठ गए तो उसे जाने देना बहुत ही मुश्किल होता है बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
Deletehttps://youtu.be/uhZGTZguNiI
ReplyDeleteYour Video is good , Thanks तत्वमसि - वह तुम ही हो - know yourself.
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