Monday, 18 August 2025

दीवारों पर लिखती हुई इन स्त्रियों ने बचा रखा है संसार

आज एक च‍ित्र देखा तो सोचा आपसे शेयर करूं। देख‍िए इस च‍ित्र को और इसमें रंग भरने वाली हमारी उस पीढ़ी को जो आज के बदलावों से बेखबर अपना कर्तव्य पूरा क‍िये जा रही है।  

इस पर एक कव‍िता भी है हालांक‍ि ये मेरी रचना नहीं है परंतु कहीं पढ़ी है, अच्छी लगी..  

सो-- आप भी पढ़‍िएगा--- 


गेरू से

भीत पर लिख देती है

बाँसबीट

हारिल सुग्गा

डोली कहार

कनिया वर

पान सुपारी

मछली पानी

साज सिंघोरा

पउती पेटारी


अँचरा में काढ़ लेती है

फुलवारी

राम सिया

सखी सलेहर

तोता मैना


तकिया पर

नमस्ते

चादर पर

पिया मिलन


परदे पर

खेत पथार

बाग बगइचा

चिरई चुनमुन

कुटिया पिसीआ

झुम्मर सोहर

बोनी कटनी

दऊनि ओसऊनि

हाथी घोड़ा

ऊँट बहेड़ा


गोबर से बनाती है

गौर गणेश

चान सुरुज

नाग नागिन

ओखरी मूसर

जांता चूल्हा

हर हरवाहा

बेढ़ी बखाड़ी


जब लिखती है स्त्री

गेरू या गोबर से

या

काढ़ रही होती है

बेलबूटे

वह

बचाती है प्रेम

बचाती है सपना

बचाती है गृहस्थी

बचाती है वन

बचाती है प्रकृति

बचाती है पृथ्वी


संस्कृतियों की

संवाहक हैं

रंग भरती स्त्रियाँ


लिखती स्त्री

बचाती है सपने

संस्कृति और प्रेम।


स्त्री के मनोभावों को बख़ूबी बयान करती ये सुंदर रचना ज‍िसने भी ल‍िखी है उसने पूरा यथार्थ उतार कर रख द‍िया। हमारी माताएं ऐसी ही थीं। जो शायद अब गुम हैं किसी फ्रेम में, किसी घर के कोने में शायद इन चीजों से मुक्त होती आज की स्त्री।दिखती हैं मॉल में, पार्क में, ऑफिस में और संघर्ष का रूप बदल गया।अब खुद के लिए आत्मनिर्भर होती स्त्री। ये परिवर्तन शायद ले गया सब। 

मगर ऐसी परंपराएं सदैव ही जीवित रहनी चाहिए, भूत वर्तमान और भविष्य सब-कुछ भीत पर उकेरकर स्त्रियां इन्हें बचाए रखती हैं।

आजकल सब शहर की तरफ भाग रहे वहीं रहना भी पसंद है उनको, ये सब चित्र टाइल्स और पत्थर लगी दीवारों में कैसे बनेंगे वो भी गोबर से अगर बन भी जाएं तो कोई बनाना बनवाना भी पसंद नहीं करता दीवार खराब लगेगी उसको, अपने गांव में सही था हरछठ व्रत में हमेशा बनती थी, धीमे ही सही लेकिन लोग अपनी संस्कृतियों को ही भूल रहे हैं।

मेरी सासु मां भी ऐसी ही माएं-देवता की आकृत‍ियां शाद‍ियों बनाती हैं , अब उन्होंने मेरी बेटी के पास एक कागज पर सारी आकृत‍ियां सुरक्ष‍ित उतरवा दी हैं ताक‍ि यह प्रथा उनके बाद भी जीव‍ित रहे। 

- Legend News 

14 comments:

  1. सचमुच बहुत सुंदर और सटीक लिखा है आपने....आपको पढ़ते पढ़ते मुझे मेरी रचना की कुछ पंक्तियाँ स्मरण हो आई
    ------
    खुशियाँ मनाती हैं
    नाचती,गाती पकवान बनाती हैं
    सजती हैं, सजाती है
    शुष्क जीवन को रंगों से भर देती हैं
    पुरातन काल से आधुनिक
    इतिहास की यात्रा में
    सूचीबद्ध स्त्रियोंं और पुरुषों की
    अनगिनत असहमतियों और असमानताओं की
    क्रूर और असभ्य कहानियों के बावजूद
    पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में
    संस्कृतियों से भरे संदूक की
    चाभियाँ सौंपती
    साधारण स्त्रियोंं ने जिलाए रखा है
    लोकपरंपराओं का अस्तित्व।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. अरे वाह श्वेता जी, ये तो बहुत शानदार रही

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  2. मनमोहक चित्र, और बेहतरीन रचना

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  3. मनमोहक चित्र ! संस्कृति को सहेजती नारियों को नमन

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  4. हमारी सांस्कृतिक विरासत का सजीव चित्र ।बहुत सुन्दर संग्रहणीय कविता ।सादर नमस्कार अलकनन्दा जी 🙏

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  5. सुन्दर चित्र व

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  6. सुन्दर चित्र व कविता

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