Wednesday 21 December 2022

सआदत हसन मंटो की ये पांच लघुकथाएं...इंसानियत के परखच्‍चे उड़ा देती हैं


 मैंने आज मंटो की लघुकथाऐं पढ़कर ये जाना कि कहानी के नाम पर खर्रे के खर्रे भरना जरूरी नहीं, एक पूरी कथा एक छोटी सी लाइन में कही जा सकती है। हम हिंदू मुसलमान करते रहते हैं और इंसानियत इस बीच इन्‍हीं शब्‍दों के बीच उधेड़ दी जाती है और कोई  उफ तक नहीं करता मगर मंटो ने ये कर दिखाया।  

सआदत हसन मंटो भारतीय उपमहाद्वीप के महान उर्दू कहानीकार थे। उनकी कहानियां भारत-पाक विभाजन के दंश का प्रामाणिक दस्तावेज हैं। बंटवारे के दर्द को बेहद गहराई से समझने, उसके संवेदनात्मक व मानवीय पहलू को बेहतरीन रूप से प्रस्तुत करने का नाम है मंटो! मानवीय त्रासदी उनकी रचनाओं में बेहद शिद्दत से उपस्थित हुआ है, इसीलिए वे दोनों देशों में आज भी लोकप्रिय हैं।

मंटो की रचना यात्रा उनकी कहानियों की तरह ही बड़ी ही विचित्रता से भरी हुई है। एक ऐसा शख्स जो जालियांवाला बाग कांड से उद्वेलित होकर पहली बार अपनी कहानी लिखने बैठता है वो औरत-मर्द के रिश्तों की उन परतों को उघाड़ने लगता है जहाँ से पूरा समाज ही नंगा दिखने लगता है।

मंटो ने ताउम्र मजहबी कट्टरता के खिलाफ लिखा, मजहबी दंगे की वीभत्सता को अपनी कहानियों में एक जिंदा तस्वीर के रूप में प्रस्तुत किया। उनके लिए मजहब से ज्यादा कीमत इंसानियत की थी।

1 ) करामात

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।

लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अँधेरे में बाहर फेंकने लगे; कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौका पाकर अपने से अलहदा कर दिया, कानूनी गिरफ्त से बचे रहें।

एक आदमी को बहुत दिक्कत पेश आई। उनके पास शक्कर की दो बोरियाँ थीं जो उसने पंसारी की दुकान से लूटी थीं। एक तो वह जूँ-तूँ रात के अँधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा तो खुद भी साथ चला गया।

शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गए। कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं। जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया; लेकिन वह चंद घंटों के बाद मर गया।

दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था।

उसी रात उस आदमी की कब्र पर दीए जल रहे थे ।



2 ) गलती का सुधार

"कौन हो तुम?"

"तुम कौन हो?"

"हर-हर महादेव…हर-हर महादेव!"

"हर-हर महादेव!"

"सुबूत क्या है?"

"सुबूत…? मेरा नाम धरमचंद है।"

"यह कोई सुबूत नहीं।"

"चार वेदों में से कोई भी बात मुझसे पूछ लो।"

"हम वेदों को नहीं जानते…सुबूत दो।"

"क्या?"

"पायजामा ढीला करो।"

पायजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया-"मार डालो…मार डालो…"

"ठहरो…ठहरो…मैं तुम्हारा भाई हूँ…भगवान की कसम, तुम्हारा भाई हूँ।"

"तो यह क्या सिलसिला है?"

"जिस इलाके से मैं आ रहा हूँ, वह हमारे दुश्मनों का है…इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा, सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए…एक यही चीज गलत हो गई है, बाकी मैं बिल्कुल ठीक हूँ…"

"उड़ा दो गलती को…"

गलती उड़ा दी गई…धरमचंद भी साथ ही उड़ गया।



3 ) घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे खरीद लिया।

रात गुजारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा-"तुम्हारा क्या नाम है?"

लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया-"हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मजहब की हो…"

लड़की ने जवाब दिया-"उसने झूठ बोला था।"

यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा-"उस हरामजादे ने हमारे साथ धोखा किया है…हमारे ही मजहब की लड़की थमा दी…चलो, वापस कर आएँ…।"


4 ) मिशटेक

छुरी पेट चाक करती (चीरती) हुई नाफ (नाभि) के नीचे तक चली गई।

इजारबंद (नाड़ा) कट गया।

छुरी मारने वाले के मुँह से पश्चात्ताप के साथ निकला-"च् च् च्…मिशटेक हो गया!"



5 ) रियायत

"मेरी आँखों के सामने मेरी बेटी को न मारो…"

"चलो, इसी की मान लो…कपड़े उतारकर हाँक दो एक तरफ…"।

- अलकनंदा सिंह 



Sunday 18 December 2022

'अदम गोंडवी' ने लिखा था- मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको'' व उनकी 5 अन्‍य रचनायें


 दुष्यंत ने अपनी गजलों से शायरी की जिस नयी राजनीति की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की है, जहां से एक-एक चीज बगैर किसी धुंधलके के पहचानी जा सके। यह अजीब इत्तफ़ाक भी है कि दोनों ने अपने-अपने जज़्बातों के इजहार के लिए ग़ज़ल का रास्ता चुना।

जन-जन के कवि और शायर अदम गोंडवी की आज पुण्यतिथि है। 22 अक्टूबर 1947 को गोंडा (उत्तर प्रदेश) के अट्टा परसपुर गांव में पैदा हुए अदम गोंडवी की मृत्यु 18 दिसंबर 2011 को लखनऊ में हुई थी। घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मैला कुरता और गले में सफेद गमछा उनकी पहचान थी। अदम गोंडवी का वास्‍तविक नाम रामनाथ सिंह था। मंच पर मुशायरों के दौरान जब अदम गोंडवी ठेठ गंवई अंदाज़ में हुंकारते थे तो सुनने वालों का कलेजा चीर कर रख देते थे। जाहिर है कि जब शायरी में आम आवाम का दर्द बसता हो, शोषित-कमजोर लोगों को अपनी आवाज उसमें सुनाई देती हो तो ऐसी हुंकार कलेजा क्यों नहीं चीरेगी? अदम गोंडवी की पहचान जीवन भर आम आदमी के शायर के रूप में ही रही। उन्होंने हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में हिंदुस्तान के कोने-कोने में अपनी पहचान बनाई थी। 

अपनी जीवंत गजल व शायरी से आम जनमानस व समाज के दबे, कुचले लोगों के दर्द को समाज के पटल पर अपनी लेखनी से बयां करने वाले अजीम शायर अदम गोंडवी ने गोंडा जनपद को अपने साहित्य के माध्यम से जो पहचान दिलाई है, लोग आज भी उनके कायल हैं। 

पहली बड़ी कविता ''मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको'' मुझे उनकी बेबाकी बताती है जो कवियों में भी यदाकदा ही देखने को मिली है। 


मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको


आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को

मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको


जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर

मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर


है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी

आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी


चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा

मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा


कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई

लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई


कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है

जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है


थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को

सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को


डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से

घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से


आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में

क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में


होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी

मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी


चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई

छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई


दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया

वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया


और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में

होश में आई तो कृष्णा थी पिता की गोद में


जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था

जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था


बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है

पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है


कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं

कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं


कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें

और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें


बोला कृष्णा से बहन सो जा मेरे अनुरोध से

बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से


पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में

वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में


दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर

देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर


क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया

कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया


कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो

सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो


देखिए ना यह जो कृष्णा है चमारो के यहाँ

पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ


जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है

हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है


भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ

फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ


आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई

जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई


वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई

वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही


जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है

हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है


कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की

गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी


बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया

हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था


क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था

हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था


रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था

भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था


सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में

एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में


घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -

"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"


निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर

एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर


गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया

सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"


"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा

एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा


होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर

ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -


"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो

आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"


और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी

बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी


दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था

वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था


घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे

कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे


"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं

हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"

 

यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से

आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से


फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा

ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा


इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें

होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"


बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो

होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो


ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है

ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"


पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल

"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्णा का हाल"

 

उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को

सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को


धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को

प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को


मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में

तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में


गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही

या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही


हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए

बेचती है जिस्म कितनी कृष्‍ना रोटी के लिए!


अदम साहब की चार अन्‍य रचनाऐं जो हमें भीतर तक झाकझोरती है- 


वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है। 


तीसरी कविता 

जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है

जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है

एक पहेली-सी दुनिया ये गल्प भी है इतिहास भी है

चिंतन के सोपान पे चढ़ कर चाँद-सितारे छू आये

लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है

मानवमन के द्वन्द्व को आख़िर किस साँचे में ढालोगे

‘महारास’ की पृष्ट-भूमि में ओशो का सन्यास भी है

इन्द्र-धनुष के पुल से गुज़र कर इस बस्ती तक आए हैं

जहाँ भूख की धूप सलोनी चंचल है बिन्दास भी है

कंकरीट के इस जंगल में फूल खिले पर गंध नहीं

स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है.


चौथी कविता - 


घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है


घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है।

बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है।।


भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारन-सी।

सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है।।


बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में।

मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है।।


सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास वो कैसे।

मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है।।


पांचवीं रचना- 


वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं 


वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं

वे अभागे आस्‍था विश्‍वास लेकर क्‍या करें


लोकरंजन हो जहां शम्‍बूक-वध की आड़ में

उस व्‍यवस्‍था का घृणित इतिहास लेकर क्‍या करें


कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास

त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्‍या करें


बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है

ठूंठ में भी सेक्‍स का एहसास लेकर क्‍या करें


गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे

पारलौकिक प्‍यार का मधुमास लेकर क्‍या करें।


- अलकनंदा सिंह

Monday 5 December 2022

‘जश्न-ए-रेख्ता’ में जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी किताब ‘जादूनामा’


 दिल्ली में चल रहे उर्दू के सबसे बड़े मेले ‘जश्न-ए-रेख्ता’ में उर्दू अदब की शख्सियत जावेद अख्तर जब एक किताब पलटा रहे थे तब उनकी जुबान से लेखक के लिए निकला, ‘आपने तो कमाल कर दिया, ये फोटो तो मेरे खुद के पास नहीं हैं, आपने कहां से जुटा लिए। मुझ जैसे व्यक्ति पर आपने इतनी मेहनत कर दी, किसी दूसरे पर करते तो पीएचडी मिल जाती।’

ये किताब थी जावेद अख्तर की जिंदगी पर लिखी ‘जादूनामा’। इसके लेखक अरविंद मण्डलोई हैं और इसका प्रकाशन मंजुल पब्लिकेशंस ने किया है। ये किताब जादू से जावेद बनने के किस्सों और दास्तानों को समेटे हुए है। जादू जावेद अख्तर का निकनेम है। करीब 450 पन्ने की इस किताब के कई ऐसे पहलू हैं, जो अमूमन लोगों को पता नहीं हैं। जब जावेद साहब ने पहली बार किताब देखी तो उनका चेहरा खिल उठा।
इस किताब की लॉन्चिंग के मौके पर जैसे ही जावेद अख्तर का नाम लिया गया हजारों की जनता का शोर गूंजने लगा। जावेद साहब हमेशा की तरह कुर्ता पायजामा पहने, आदाब-आदाब करते हुए चले आए। विमोचन कार्यक्रम की शुरुआत में जावेद अख्तर की शख्सियत और किताब की विशेषताओं के बारे में बताया गया। 
56 साल पहले किया इन्वेस्टमेंट अब काम आया 
भोपाल में 56 साल पहले जिस जगह से अंग्रेजी की ख्वाजा अहमद अब्बास की किताब ‘इंकलाब’ खरीदी थी, उसी लॉयल बुक डिपो के मंजुल प्रकाशन ने आज मुझ पर किताब छापी है। हंसते हुए बोले ‘पुराना इन्वेस्टमेंट आज काम आया।’
इस दौरान किताब पर चर्चा और अपने अतीत को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ‘वो एक बार जब मुंबई में कोहिनूर मिल्स के सामने से बेटी जोया के साथ गुजरे तो उससे उन्होंने कहा कि संघर्ष के दिनों में एक बार उन्होंने यहां से 20 पैसे के चने खरीदे थे और 8 मील पैदल चलकर यहां से गुजरे थे। उन्हें उम्मीद थी कि बेटी शायद इमोशनल हो जाएगी, लेकिन जोया ने कहा, ‘तब तो 20 पैसे में बहुत चने आ जाते होंगे।’ ये किस्सा पूरा होते ही मजमा ठहाके लगाने लगा। फिर वो बोले कि मेरी बेटी जोया का सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का है। 
जावेद साहब ने सेंस ऑफ ह्यूमर से मजमा लूट लिया 
माहौल संजीदा होने पर जावेद साहब ने कहा कि दुनिया में भूख से बड़ी कोई तकलीफ नहीं होती, इसके आगे सब बेमानी है। जब वो ये कह रहे थे तो मजमे में से एक लड़की ने खड़े होकर ‘वक्त’ गजल की फरमाइश कर दी। तो वो बोले ‘कोई इन्हें बता दो कि क्या टाइम हुआ है।’ जावेद साहब के सटीक सेंस ऑफ ह्यूमर ने भीड़ को कायल कर दिया। इस मौके पर जावेद अख्तर मंजुल पब्लिकेशन के विकास रखेजा को मुबारकबाद देना नहीं भूले। 
शायरी संजीदगी और तसल्ली से होती है 
‘तरकश’ और ‘लावा’ नाम की दो किताबों के बाद कोई नई किताब नहीं आने के सवाल पर जावेद अख्तर बोले कि कमर्शियल फिल्में तो ऑडियंस की पसंद को ध्यान में रखकर बनती है, जबकि शायरी संजीदगी और तसल्ली से होती है। कोई ख्याल ऐसा हो जो पूरा और अनोखा हो, तभी मैं लिख पाता हूं, वर्ना नहीं लिखता।
लेखक मण्डलोई ने बताया सलीम-जावेद की जोड़ी का राज
‘जादूनामा’ के लेखक मण्डलोई ने बताया कि किताब के दौरान जब उन्होंने जीपी सिप्पी से बात की तो उन्होंने सलीम-जावेद की जोड़ी का एक राज खोला। उन्होंने कहा, ‘शोले के डायलॉग जावेद अख्तर साहब ने लिखे थे, बाकी फिल्मों में भी उन्होंने ही डॉयलॉग लिखे।’ जादूनामा शीर्षक को लेकर उन्होंने बताया कि जावेद साहब का निकनेम जादू है, इसलिए जिंदगी के हिस्से समेटने वाली किताब का नाम ‘जादूनामा’ रखना तय किया।
जादूनामा के जादुई किस्से, जादू नाम पड़ने का राज सुनिए...
जावेद अख्तर पर लिखी गई किताब में जावेद साहब का जादू नाम पड़ने का राज खोला गया है। उनके पिता जां निसार अख्तर की जब शादी हुई थी, तब उन्होंने जादू नाम से एक नज्म कही थी। जिसकी लाइन थी, ‘लम्हा-लम्हा किसी जादू का फसाना होगा’। जावेद के जन्म के समय जां निसार को यह नज्म याद दिलाते हुए कहा कि क्यों न बच्चे का नाम जादू रखा जाए। इस तरह उनका निकनेम जादू पड़ गया। जावेद का मतलब है ‘अमर’ और अख्तर का मतलब है ‘सितारा’ दोनों शब्दों को मिलाकर हुआ ‘अमर सितारा’।
सैफिया कॉलेज का वो खाली कमरा
भोपाल के सैफिया कॉलेज का जिक्र किताब में है। वे कहते हैं कि मैं इस कॉलेज का ऐसा स्टूडेंट था, जिससे कभी फीस नहीं ली गई। यह शायद भोपाल में ही संभव था। क्लास खत्म होने के बाद मैं खाली कमरे में अपना बिस्तर जमा लेता, होटलों में उधार खाता, कॉलेज के कुछ दोस्त मेरे लिए टिफिन लाते। उन्हें एहसास ही नहीं होता था कि उनके जाने के बाद मैं बहुत रोता हूं कि ये मेरा कितना ख्याल रखने वाले दोस्त हैं। उन्होंने भोपाल की यादों में वहाजुद्दीन अंसारी, एजाज अंसारी, फतेउल्लाह, एहसान मुल्ला, मन्नान भाई का जिक्र किया है। किताब में भोपाल के सफर पर बकायदा एक पूरा चैप्टर है।
मुंबई आने पर जेब में 27 पैसे थे तो मैं खुश था
4 अक्टूबर 1964 को भोपाल छोड़कर मुंबई पहुंच गया। यहां 6 दिन बाद ही वालिद का घर छोड़ना पड़ा, तब जेब में 27 पैसे थे। मैं खुश था कि जिंदगी में कभी 28 पैसे भी जेब में आएंगे तो मैं फायदे में रहूंगा। यहां फिल्मी दुनिया में कदम जमाने के लिए एक लंबा किस्सा शुरू हुआ। ​​​​​​
फिल्म के सेट पर हुई थी हनी ईरानी से मुलाकात
सीता-गीता के फिल्म के सेट पर मुलाकात हनी ईरानी से हुई। बाद में शादी कर ली। कुछ अरसे बाद तलाक हो गया, लेकिन हमारी दोस्ती कोई नहीं बिगाड़ सका, ना ही हमारा रिश्ता टूटना बच्चों में कड़वाहट ला सका। इस कमाल का श्रेय हनी ईरानी को जाता है।
एंग्री यंग मैन का कैरेक्टर बिरजू से निकला था
मदर इंडिया के बिरजू से प्रेरित होकर एंग्री यंग मैन कैरेक्टर के बारे में सोचा। इसे बाद में फिल्मों में खूब इस्तेमाल किया गया और सक्सेसफुल फिल्म का फॉर्मूला बन गया।
निहार सिंह से आया था सूरमा भोपाली कैरेक्टेर का आइडिया
किताब में बताया गया है कि शोले फिल्म के लिए सूरमा भोपाली का किरदार निहार सिंह से प्रेरित था। निहार सिंह खुद को बहुत बड़ा दादा समझते थे। उनके दोस्त भी उन्हें हमेशा यही एहसास कराते रहते थे। किसी ने कहा कि तुम्हारे नाम से जावेद मुंबई में बहुत पैसे कमा रहा है। इसे लेकर उन्होंने कानूनी कार्रवाई तक शुरू कर दी। अखबार में विज्ञापन दिया। इसी बीच फिल्म दीवार रिलीज हो गई। निहार यह फिल्म सिर्फ इसलिए देखने गए कि कहीं इसमें उनका नाम तो नहीं है।

- Alaknanda Singh
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