Thursday 31 October 2019

निरक्षर शायर रफीक शादानी की रचना है एक मिसाल

Illiterate shair Rafiq Shadani's indite is an example

अयोध्‍या में मुमताजनगर गांव के निवासी अजीम शायर रफीक शादानी की यह रचना गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है।
अपने क्षेत्र में कबीर माने जाने वाले शायर रफीक शादानी ने रामलला के मेक शिफ्ट स्ट्रक्चर को वर्ष 2005 में बम से उड़ाने आए आतंकवादियों पर मंच से पढ़ा था-
नोट की गड्डी पाई गये तो तन डोला मन डोला/रामलला पर फैंके आए कुछ लोगै हथगोला। उन्हीं के हाथे मा दगिगा हुइगे उडनखटोला/ और.. बड़े बहादुर बनत हौ बेटा, आई के देखौ फैजाबाद!
9 फरवरी 2010 को बहराइच में हुई वाहन दुर्घटना में इंतकाल से पहले मुशायरों की शान हुआ करते थे। उनके गांव में आज भी हिंदू-मुस्लिम मिलकर रामलीला करते हैं।
ऐसा ही समां अयोध्या की सोंधी मिट्टी सदियों रोशन करती आ रही है। उर्दू अदब के महान शायर मीर अनीस, मीर गुलाम हसन, ख़्वाजा हैदर अली आतिश, नवाब सैयद मोहम्मद खां हिंद, मोहम्मद रफी सौदा, पं. बृज नारायण चकबस्त, मिर्जा हातिम अली बेग महर, मजाज रुदौलवी, मेराज फैजाबादी, सैयद शमीम अहमद शमीम को जिसने भी पढ़ा व सुना, उसे सांप्रदायिकता की हवा कभी छू नहीं सकती।
भगवत गीता का उर्दू में अनुवाद करने वाले अनवर जलालपुरी का पिछले साल ही इंतकाल हुआ, उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।
फैजाबाद के मोतीबाग में 9 सितंबर 1927 पैदा हुए समकालीन हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष कुंवर नारायण को तो अयोध्या 1992 : हे राम, जीवन एक कटु यथार्थ है।
और तुम एक महाकाव्य! तुम्हारे बस की नहीं।
उस अविवेक पर विजय/ जिसके दस बीस नहीं अब लाखों सर।
लाखों हाथ हैं, और विभीषण भी अब न जाने किसके साथ है।
कविता लिखने पर धमकी दी गई थी। उनका निधन 15 नवंबर 2017 को 90 वर्ष की उम्र में हुआ। उन्‍हें ज्ञानपीठ मिलने के बाद 2009 में पद्मभूषण अवॉर्ड दिया गया, साहित्य अकादमी पुरस्कार उनको 1995 में ही मिल चुका था।
समाजसेवी सूर्यकांत पांडेय कहते हैं कि आध्यात्मिक गुरु संत पं. रामकृष्ण पांडेय आमिल की रचना-हकीरों में फकीरों में जरा मिल बैठ कर देखो, पता चल जाएगा आमिल मुझे कुछ भी नहीं आता..। हमेशा सौहार्द का संदेश देती है।
शहर के कसाबबाड़ा मोहल्ले में रहने वाले अजीम शायर सैयद शमीम अहमद शमीम अब हमारे बीच नहीं है मगर उनकी रचनाएं आज भी एकता का अटूट संदेश देती हैं, उन्होंने लिखा है कि सभ्यताओं का इसे शीश महल कहते हैं/कुछ तो ऐसे हैं जो जन्नत का बदल कहते हैं।
कोई कहता है अवध और कोई फैजाबाद/हम जुनूं वाले इसे शहर-ए-गजल कहते हैं। कैंसर की बीमारी से 71 वर्ष की उम्र में 30 नवंबर 2013 को लखनऊ में अंतिम सांस लेने वाले सोहावल के कोला गांव निवासी अजीम शायर मेराज फैजाबादी आपसी एकता व सौहार्द के साथ इंसानियत के मिसाल थे, वे लिखते हैं कि-किसको फिक्र है कि कबीले का क्या हुआ, सब इस बार लड़ रहे हैं कि सरदार कौन है। अंबेडकरनगर के प्रो. मलिकजादा मंजूर व श्रीराम सिंह शलभ न रहते हुए भी अपनी रचनाओं से आज भी लोगों के सांसों की डोर बांधे हुए हैं।
साकेत पीजी कॉलेज में वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष डॉ. मिर्जा साहेब शाह कहते हैं कि बृज नारायण चकबस्त (1882-1926) का राठ हवेली मोहल्ला में जन्म हुआ था, बाद में लखनऊ के काश्मीरी मोहल्ला में बस गये। उनकी गजलें व नज्में सुबह-ए-वतन, खाक़े हिंद, रामायण का एक सीन कभी नहीं भूलतीं। वे लिखते हैं कि-गुल सम-ए-अंजुमन है, गो अंजुमन वही है, हुब्बे वतन नहीं है, खाके वतन वही है..।
डॉ. मिर्जा कहते हैं कि रफीक साहब निरक्षर थे मगर उनकी रचनाओं में गहराई बहुत थी। सब उनको फैजाबाद का कबीर कहते थे। शत्रुघ्न सिंह कहते हैं कि फोर्ब्‍स इंटर कालेज में रफीक साहेब मुशायरे का संचालन कर रहे थे, 1992 के पहले की बात है जब राममंदिर के लिए चंदे जुटाया जा रहा था।
इस प्रहार करते हुए वे बोले-का करिहैं चंदा मंगिहैं, जनता से छल-बल का करिहैं। जब राम का मंदिर बनि जाए, तब जोसी सिंघल का करिहैं।.. इसे सुन लोगों ने खड़े होकर मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं ने दाद दी।
जिले के रुदौली के रहने वाले लखनऊ विवि में प्रो. शारिब रूदौलवी आज भी एकता का राग मंचों पर साझा करते हैं। बीकापुर में रहने वाले भारत भूषण से सम्मानित कवि जमुना उपाध्याय कहते हैं कि-नदी के घाट पर गर सियासी लोग बस जाएं, प्यासे होठ एक-एक बूंद को तरस जाएं..।
हमें आने वाले वक्त में भी अयोध्या के माहौल पर सावधान रहना चाहिए। शहर के जफ्ती मोहल्ले में रहने वाले शायर सलाम जाफरी सुनाते हैं कि-जब भी इंसान ने इंसान से नफरत की है, प्यार हारा है, तबाही ने हुकूमत की है…। वे कहते हैं कि अभी अयोध्या पर फैसले का इंतजार हो रहा है, फैसला आने के बाद का माहौल शहर में अमनोअमन का भविष्य तय करेगा। यहां के लोग तो 1992 में भी प्यार से थे, मगर तबाही तो बाहर के लोगों ने मचाई।

Sunday 27 October 2019

दीपावली की शुभकामनाओं के साथ ....बुझे दीपक जला लूँ- महादेवी वर्मा

सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!

क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!

भीत तारक मूँदते दृग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता
छोड़ उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता,
उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूँ!

लय बनी मृदु वर्त्तिका
हर स्वर जला बन लौ सजीली,
फैलती आलोक-सी
झंकार मेरी स्नेह गीली,
इस मरण के पर्व को मैं आज दीपावली बना लूँ!

देख कर कोमल व्यथा को
आँसुओं के सजल रथ में,
मोम-सी साधें बिछा दी
थीं इसी अंगार-पथ में
स्वर्ण हैं वे मत हो अब क्षार में उन को सुला लूँ!

अब तरी पतवार ला कर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना !
ज्वार को तरणी बना मैं; इस प्रलय का पार पा लूँ!
आज दीपक राग गा लूँ !

Tuesday 22 October 2019

शताब्दियाँ जिनका इंतजार करती हैं, ऐसे कवि और शायर थे अदम गोंडवी

22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिला अंतर्गत आटा परसूपुर गाँव में जन्‍मे अदम गोंडवी की मृत्‍यु 18 दिसंबर 2011 को हुई। सामाजिक राजनीतिक आलोचना के प्रखर कवि और शायर अदम गोंडवी का असली नाम यूं तो रामनाथ सिंह था लेकिन सबने उन्हें ‘अदम गोंडवी’ के नाम से ही जाना।
उनकी रचनाओं में राजनीति और व्यवस्था पर किए गए कटाक्ष काफी तीखे हैं। उनकी शायरी में जनता की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य नजर आता है। लेखनी में सत्ता पर शब्दों के बाण चलाना अदम की रचनाओं की खासियत है। उनकी निपट गंवई अंदाज में महानगरीय चकाचौंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और विलक्षण है।
अदम की रचनाओं का अंदाज कुछ ऐसा था-
(1)
काजू भुने पलेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गई है यहां की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में
(2)
तुम्‍हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ’ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी खराबी है
तुम्‍हारी मेज चांदी की तुम्‍हारे ज़ाम सोने के
यहाँ जुम्‍मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
(3)
घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है
भटकती है हमारे गांव में गूंगी भिखारन-सी
सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में
मैं जब भी देखता हूं आंख बच्चों की पनीली है
सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास हो कैसे
मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है
(4)
आँख पर पट्टी रहे और अक़्ल पर ताला रहे
अपने शाहे-वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
तालिबे-शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे
एक जन सेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छह चमचे रहें माइक रहे माला रहे
वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित शायर मुनव्वर राना की किताब ‘ढलान से उतरते हुए’ में मुनव्वर लिखते हैं- ”अदम जी ठाकुर थे, राजपूत ठाकुर। ज़मींदार भी थे, छोटे-मोटे ही सही। ज़ुल्म और नाइंसाफ़ियों के ख़िलाफ़ बग़ावती तेवर और क़ागज़ क़लम उठाने के लिए किसी जाति विशेष का होना ज़रूरी नहीं होता। यह फूल तो किसी भी बाग़ में, किसी भी गमले में और कभी-कभी तो कीचड़ में भी खिल जाता है। समाजी नाइंसाफ़ियों और नहमवारियों के ख़िलाफ़ उठी आवाज को ग़ज़ल बना देना सबके बस की बात नहीं होती, इसके लिए शताब्दियाँ किसी अच्छे कवि का इंतज़ार करती हैं।”
-Legend News

Thursday 10 October 2019

Olga Tokarjuk को 2018, पीटर हैंडके को 2019 के लिए साहित्य का नोबेल

स्टॉकहोम/स्वीडन। नोबेल पुरस्कारों की सीरीज में गुरुवार को साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेताओं की घोषणा हो गई है। वर्ष 2018 के लिए पोलैंड की लेखिका Olga Tokarjuk को इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा जबकि साल 2019 का पुरस्कार आस्ट्रियाई लेखक पीटर हैंडके को दिया जाएगा।
साल 2018 और 2019 के लिए साहित्य के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार की घोषणा गुरुवार को की गई। पोलिश लेखिका Olga Tokarjuk को साल 2018 के लिए साहित्य नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। पिछले साल विवादों के कारण इसे स्थगित किया गया था।
लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता ओल्गा टोकारजुक को मौजूदा पीढ़ी के व्यावसायिक रूप से सफल लेखकों में से एक के रूप में जाना जाता है। 2018 में, उन्हें उपन्यास फ्लाइट्स (जेनिफर क्रॉफ्ट द्वारा अनुवादित) के लिए बुकर प्राइज से नवाजा गया था। यह पुरस्कार जीतने वाली वह पोलैंड की पहली लेखिका हैं।
उन्होंने वारसॉ विश्वविद्यालय से मनोवैज्ञानिक के तौर पर प्रशिक्षण लिया है और छोटी गद्य रचनाओं के साथ कविताओं, कई उपन्यासों, साथ ही अन्य पुस्तकों का संग्रह प्रकाशित किया। ‘फ्लाइट्स’ ने 2008 में, पोलैंड का शीर्ष साहित्यिक पुरस्कार नाइकी अवार्ड भी जीता।
मीटू के चलते पिछले साल नहीं दिया गया था साहित्य का नोबेल
पिछले साल नोबेल संस्थान की एक पूर्व सदस्या के पति फ्रांसीसी फोटोग्राफर ज्यां क्लाउड अर्नाल्ट पर यौन शोषण के आरोप लगे थे। इसके बाद स्वीडन की अकादमी को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इसी वजह से उसने 2018 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार नहीं देने की घोषणा की थी।
1936 में भी नहीं दिए गए थे पुरस्कार
हालांकि ये पहला मौका नहीं था। इससे पहले 1936 में भी पुरस्कार नहीं दिए गए थे। उस साल का पुरस्कार एक साल बाद इयुगेन ओ’नील को दिया गया था।


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