Wednesday, 5 November 2025

कार्त‍िक पूर्ण‍िमा पर व‍िशेष: स्वामी हर‍िदास जी ने इसतरह गाई प्रिया प्यारे के विवाहोत्सव की मंगल बधाई

 


दिन दुल्हिन दूलहु बलिहारी 

अधिक फबीं श्री वन की स्वामिनी , देखीं न सरि की कोऊ वधू वारी ।१।

अतलस अंगिया चोली राती , पैने कुच कंचुकी उकारी ।

सारी सुरंग जरी बुँटे मणिं  , जडीं अंचल सब कोर किनारी  ।२।

भूषण वसन हू शोभा पाई  , अद्भुत रूप अंग अंग धारी ।

मोतिन मौर माथे कछु टेढ़ी  , घूँघट अँखिंयाँ चलें कजरारी ।३।

दूल्हा रूप अनूप बन्यौ ,  जामा अचकन मणि जटित किबारी ।

पेचदार पगिया पर सेहरो , मोहत मन श्यामा सुकुमारी ।४।

साजि सँवारि नाहु वधू  ललिता , हस्त मिलाप रच्यौ सुखकारी ।

प्रथम समागम कौ सुख विलसत , कृष्णचन्द्र पिया  राधा  प्यारी ।५।


प्रथम मिलन पिया प्यारी कौ गाऊँ

श्री ललिता कृपा नित जुगल लड़ाऊं ।१।

श्री वृंदावन  संपत्ति पूंजत सुख , जुगल भाव मन ध्यावै ।

सुमिरि श्री राधा चरण दासि संग  ,गौर श्याम हिय आवै ।२।

छिन छिन रस विलसत नव दंपति , निरखि सतत सुख पाऊं ।

आनंद रस न समात उमंगि उर ,सोई सखी हरखि सुनाऊं ।३।

श्री जमुना नव अम्बुज फूले , अलि अवलि दल छाये ।

गूंजत तान संगीत मृदु पवन , नव तरु द्रुमि मन भाये ।४।

सुंदर खग निरतत मन मोहक ,  मधुर पिया जस गाये ।

विविध बरन रँग  फूले सुमन दल, रुचि रुचि हार बनाये ।५।

घाटन बाटन बीथी बागन , मनहर मधुर निकाई ।

कुँज महल शुभ मिलन की बेला , हर्षित सखी समुदाई ।६।

नव वधू सरस सँवारी श्यामा ,नहिं सरि कोऊ वधू वारी ।

तैसेई सुघड श्याम दूलहु फबे ,दंपति छबि अति न्यारी ।७।

लाड़ लड़ावत वर वधू रुख लै ,सखी सहचरी प्रवीना ।

सुखद सुरति सम्पति रुचि पूंजत ,विलसैं जुगल नवीना ।८।

नैंनन नैंन जोरि झपि पलकैं ,पुनि पुनि नैंन मिलावें ।

हाव भाव बिन बैंनन सैंनन ,हँसि लजि मुरि बतरावें ।९।

रूप माधुरी चुबत अंग अंग, पीबत दृग जिय प्यासे ।

करसत मन तन भेंट अँकौ भरि,सखीं जिय जानि हुलासे ।१०। 

पारिजात संग कल्प सुमन गुहि ,कौमल सेज सजाई ।

हस्त मिलाप कराय जुग सखी ,प्रेम प्रीति पुंजवाई ।११।

गावत विरदनि गीत मिलन सखीं , मदन मोद जुग लीने ।

नव नव रति रत रसिक शिरोमणि , मिलत हू मिलत नवीने ।१२।

नित ही प्रथम समागम कौ सुख ,काम केलि नित न्यारी ।

श्री हरिदासी सखीन संग सुख, विलसत नित्य बिहारी ।१३।

आस करत आशीष देत सखीं , उर वन बसौ जुग जिय मन ।

विलसौ कृष्णचन्द्र श्री राधा , चरणदासि वृंदावन ।१४।


नवल दोऊ जागैं सारी रतियां

सुरंग सेज  सुख परे प्रथम दिन ,कोक प्रेम रस मधुरी गतियां ।१।

कबहूं कटि कटि सौं जुरि भेंटें , कबहु टटोरैं अँगुरिन छतियां । 

अधरसधर रस पान अरत बिबि , पीबत कुच मधु करि छल घतियां ।२।

झाँकत नैंन परस्पर गहरे , नैंन सैंन जानत मन बतियां । 

नव जोरी सुकुमार सलौनी , विलसत सरस सुरति सम्पतियां।३।

गावत विरदनि सखी समूह मन , पूँजत रति सुख नव दम्पतियां ।

कृष्ण चंद्र राधा चरण दासि मृदु , काम प्रेम रस पागीं मतियां ।४।

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