Tuesday, 24 September 2013

अहिल्‍या - ना शबरी..

हे सखा...हे ईश्‍वर..क्षीर नीर करके
दुनिया को भरमाया तुमने
पर मुझे न यूं बहला पाओगे
सखी हूं तुम्‍हारी , कोई माटी का ढेर नहीं,
ना ही अहिल्‍या - ना शबरी मैं
जो पैरों पर आन गिरूंगी
मैं हूं - तुम्‍हारा आधा हिस्‍सा
ठीक ठीक समझ लो तुम, कि...
तुम्‍हारी आधी सांस में पूरी आस हूं
आधा तुम्‍हारे मन का पूरा संकल्‍प हूं,
संकल्‍प हूं जीवन का - स्‍व को सहेजने का
तुम्‍हारे कर्तव्‍य पर आधा अधिकार हूं
सपनों का समय नहीं बचा अब,
संग चलकर साथ कुछ बोना है,
बोनी हैं अस्‍तित्‍व की माटी में,
अपनी हकीकतें भी मुझको...
- अलकनंदा सिंह


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