Tuesday, 26 August 2025

एक कहानी जो बचपन में सुनी थी..आज... बस इतना ही


 एक समय की बात है, एक राजा ने निश्चय किया कि वह प्रतिदिन 100 अंधे लोगों को खीर खिलाएगा। एक दिन एक साँप ने खीर वाले दूध में मुँह डालकर उसमें ज़हर मिला दिया। ज़हरीली खीर खाने से सभी 100 अंधे मर गए। राजा को बहुत चिंता हुई कि कहीं उसे 100 लोगों की हत्या का पाप न लग जाए। चिंता में डूबा राजा अपना राज्य छोड़कर जंगलों में भक्ति करने चला गया ताकि उसे इस पाप की क्षमा मिल सके। रास्ते में एक गाँव पड़ा।

राजा ने सभा भवन में बैठे लोगों से पूछा कि क्या गाँव में कोई ऐसा परिवार है जो भक्ति भाव रखता हो, ताकि वह उनके घर रात बिता सके।

चौपाल में बैठे लोगों ने बताया कि इस गाँव में दो भाई-बहन रहते हैं जो बहुत पूजा-पाठ करते हैं। राजा उनके घर रात रुके।

जब राजा सुबह उठे तो लड़की पूजा के लिए बैठी थी। पहले लड़की की दिनचर्या यह थी कि वह पौ फटने से पहले ही पूजा से उठकर नाश्ता तैयार कर लेती थी।

लेकिन उस दिन लड़की पूजा में बहुत देर तक बैठी रही। जब लड़की उठी, तो उसके भाई ने कहा, बहन, तुम इतनी देर से उठी हो। हमारे घर एक मुसाफिर आया है और उसे नाश्ता करके बहुत दूर जाना है।

लड़की ने उत्तर दिया, भाई, ऊपर एक पेचीदा मामला था। धर्मराज को एक पेचीदा स्थिति पर निर्णय लेना था और मैं उस निर्णय को सुनने के लिए रुकी थी। इसलिए मैं बहुत देर तक ध्यान करती रही।

तो उसके भाई ने पूछा कि क्या बात है? तो लड़की ने बताया कि एक राज्य का राजा अंधे लोगों को खीर खिलाता था। लेकिन दूध में साँप के ज़हर डालने से 100 अंधे लोग मर गए। अब धर्मराज समझ नहीं पा रहे हैं कि अंधे लोगों की मृत्यु का पाप राजा पर हो, साँप पर या उस रसोइए पर जिसने दूध खुला छोड़ दिया।

राजा भी सुन रहा था। राजा को उससे जुड़ी कुछ बातें सुनकर दिलचस्पी हुई और उन्होंने लड़की से पूछा कि फिर क्या फैसला हुआ?

लड़की ने कहा कि अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। तो राजा ने पूछा, क्या मैं तुम्हारे घर एक रात और रुक सकता हूँ? दोनों भाई-बहन ने खुशी-खुशी हाँ कह दी।

राजा अगले दिन रुक गए, लेकिन चौपाल में बैठे लोग दिन भर यही चर्चा करते रहे कि जो व्यक्ति कल हमारे गाँव में एक रात रुकने आया था और भक्ति भाव से घर माँग रहा था, उसकी भक्ति का नाटक उजागर हो गया है।

वह रात बिताने के बाद इसलिए नहीं गया क्योंकि उस व्यक्ति की नीयत युवती को देखकर खराब हो गई थी। इसलिए अब वह उस सुंदर और युवती के घर ज़रूर रुकेगा, वरना वह युवती को लेकर भाग जाएगा।

सभा भवन में दिन भर राजा की आलोचना होती रही।

अगली सुबह युवती फिर ध्यान के लिए बैठी और नियमित समय पर उठी। तब राजा ने पूछा- "बेटी, अंधे लोगों की हत्या का पाप किसने लगाया था?"

तब लड़की बोली- "वह पाप हमारे गाँव की चौपाल में बैठे लोगों ने बाँटकर ले लिया।"

सारांश:~ दूसरों की आलोचना करने से कितना नुकसान होता है? आलोचक हमेशा दूसरों के पापों को अपने सिर पर ढोता है और दूसरों द्वारा किए गए उन पापों का फल भी भोगता है। इसलिए हमें हमेशा आलोचना करने से बचना चाहिए..!!

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