Sunday, 5 July 2020

साह‍ित्यकार ज्योति खरे के जन्मद‍िन पर आज पढ़‍िए उनकी ये कुछ कव‍ितायें

आज साह‍ित्यकार ज्योति खरे का जन्मद‍िन है,  5 जुलाई, 1956 को जन्मे श्री खरे अपने बारे में बताते हुए ल‍िखते हैं – “...अम्मा ने सिखाया कि भोग रहे यथार्थ को सहना पड़ता है। सम्मान और अपमान होते क्षणों में मौन रहकर समय को परखना पड़ता है...आदमी के भीतर पल रहे आदमी का यही सच है। और आदमी होने का सुख भी यही है।”

आज इतने वर्षों बाद वो सोशल मीडिया के सबसे ज़्यादा फ़ॉलो किए जाने वाले शीर्ष कवियों में से एक हैं, और विगत तीस-एक वर्षों से भारत के लगभग सभी प्रिन्ट मीडिया में छप चुके हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी पर भी वो पिछले तीन दशकों से अनवरत प्रसारित हो रहे हैं।

पढ़‍िए उनकी ये कव‍ितायें 

1.
जीवन के खेल में साँस रखी दाँव
दहशत की
धुन्ध से घबराया गाँव
भगदड़ में भागी धूप
और छाँव

अपहरण
गुण्डागिरी, खेत की सुपारी
दरकी ज़मीन पर मुरझी फुलवारी
मिट्टी को पूर रहे छिले
हुऐ पाँव

कटा फटा
जीवन खूँटी पर लटका
रोटी की खातिर गली-गली भटका
जीवन के खेल में साँस
रखी दाँव

प्यासों का
सूखा इकलौता कुआँ
उड़ रहा लाशों का मटमैला धुआँ
चुल्लू भर झील में डूब
रही नाँव।


2. उँगलियाँ सी लें

सूख गई सदियों की
भरी हुई झीलें
भूमिगत गिनते हैं
खपरीली कीलें

दीमकों को खा रहा
भूखा कबूतर
छेदता आकाश
पालतू तीतर
पर कटे कैसे उड़ें
पली हुई चीलें

कौन देखे बार-बार
बिके हुए जिराफ़
गोंद से चिपका नहीं
छिदा हुआ लिहाफ़
खिन्नियों की सोचकर
नीम छीलें

आवरण छोटा पड़ेगा
एक तरफ़ा ढाँकने में
छिपकली सफल है
दृष्टियों को आँकने में
बढ़ न पाएँ पोर सीमित
उँगलियाँ सी लें।

3. टपकी नीम जेठ मास में

अनजाने ही मिले अचानक
एक दोपहरी जेठ मास में
खड़े रहे हम नीम के नीचे
तपती गरमी जेठ मास में

प्यास प्यार की लगी हुई
होंठ माँगते पीना
सरकी चुनरी ने पोंछा
बहता हुआ पसीना
रूप साँवला हवा छू रही
महकी नीम जेठ मास में

बोली अनबोली आंखें
पता माँगती घर का
लिखा धूप में उँगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोलतार की सड़क ढूँढ़ती
पिघली नीम जेठ मास में

स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग़ खिले जब
टपकी नीम जेठ मास में।

प्रस्तुत‍ि - अलकनंदा स‍िंंह 

16 comments:

  1. माननीय ज्योति खरे जी को उनके जन्मदिन की बधाई और साहित्य सृजन के पथ पर निरंतर अग्रसर रहने की अशेष शुभकामनायें!!!

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    1. धन्यवाद व‍िश्वमोहन जी

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  2. आदरणीय ज्योति खरे सर को जन्मदिवस की हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएं.बहुत ही सुंदर रचनाएँ .
    सादर

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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  3. सुन्दर कवितायें।
    ज्योति खरे जी को जन्मदिन की शुभकामनायएँ।

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी

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  4. धन्यवाद रवींद्र जी

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  5. आदरणीय ज्योति सर से परिचय मेरे लिए गर्व का परिचायक है | इतना नहीं जानती थी उनके बारे में | आपने बहुत सारी जानकारी दी | ज्योति सर को उनके जन्म दिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं | आज के अंक में उनकी चयनित कवितायेँ लाजवाब हैं |सादर

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  6. स्मृतियों के उजले वादे
    सुबह-सुबह ही आते
    भरे जलाशय शाम तलक
    मन के सूखे जाते
    आशाओं के बाग़ खिले जब
    टपकी नीम जेठ मास में।
    शानदार !!!!!!!

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    1. धन्यवाद रेणु जी , ज्योत‍ि खरे का लेखन सचमुच बेहद शानदार रहा है...

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  7. ज्योति खरे की कविताए मुझे बहुत पसंद आई आगे भी और पोस्ट करते रह।
    Maurya Vansh

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    1. धन्यवाद राहुल जी

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  8. आपका यह ब्लॉग साहित्यिक रूचि रखने वालों के लिए अत्यंत उपयोगी है, प्रणाम।

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  9. जितनी प्यारी उनकी रचनाएं हैं , ज्योति भाई का व्यक्तित्व भी उतना ही प्यारा है !

    आजकल के समय में जब एक दूसरे को ध्यान से पढ़ना तक नहीं चाहते तब आप लोगों के जन्मदिन पर उनकी रचनाएं लगाकर सम्मान कर रही हो ! इस व्यक्तित्व को प्रणाम !

    शुभकामनाएं आप दोनों को !

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  10. वाह। एक लाजवाब पोस्ट कैसे छुट गयी? ज्योति खरे जी अदभुद लिखते हैं। शुभकामनाएं उनके लिये देर से ही सही।

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  11. ये कविताएँ बहुत ही बेहतरीन हैं। कवि वास्तव में दूर की सोच रखने वाला लगता है। यह विज्ञान की कविता भी कुछ उस तरह की ही है, पढ़िये फिर बताइए।

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