Sunday 26 July 2020

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कारावास यात्रा करने वाली कवयित्री विद्यावती ‘कोकिल’ की कव‍िताऐं

प्रसिद्ध कवयित्रियों में स्थान रखने वाली विद्यावती ‘कोकिल’ का आज जन्‍मदिन है। विद्यावती का जन्‍म 26 जुलाई 1914 के दिन मुरादाबाद के हसनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
उनकी प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रणय, प्रगति एवं जीवनानुभूति के हृदयग्राही गीत संग्रह-रूप में प्रकाशित हुआ था। कोकिल जी मूलत: एक गीतकार थीं। गीति-तत्त्व की सहज तरलता उनकी कविताओं की आंतरिक विशेषता है।
विद्यावती ‘कोकिल’ के जीवन का अधिकांश समय प्रयागराज में बीता। इनका परिवार पुराना आर्य समाजी तथा देश-भक्त रहा है। स्कूल-कॉलेज काल से ही इनकी काव्य-साधना प्रारम्भ हो गई थी। अखिल भारत के काव्य-मंचों एवं आकाशवाणी केन्द्रों से फैलती हुई इनकी सहज-मधुर काव्य-स्वरलहरी इनके ‘कोकिल’ उपनाम को सार्थक करती रही है। ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ में इन्होंने कारावास यात्रा भी की। अनेक सेवा-संस्थाएँ तथा जनायोजन इनके सहयोग से सम्पन्न होते रहे। इन्होंने पाण्डीचेरी के ‘अरविन्द आश्रम’ में भी समय व्यतीत किया और अरविन्द दर्शन को कवि-सहज अनुभूतियों प्रदान कीं।
सन 1942 ई. में ‘माँ’ नाम से इनका द्वितीय काव्य-संग्रह सामने आया। सम्पूर्ण विश्व को प्रजनन की एक महाक्रिया मानकर मातृत्व की विकासोन्मुख अभिव्यक्ति एवं लोरियों के माध्यम द्वारा ‘माँ’ में जीव के एक सतत विकास की कथा का द्योतन इस रचना का लक्ष्य है।
सन 1952 में इनकी ‘सुहागिन’ नाम की तृतीय कृति प्रकाश में आयी। इस संकलन के ‘अब घर नहीं रहा, मन्दिर है’ और ‘तुझे देश-परदेश भला क्या?’ आदि गीत जहाँ एक ओर सुहाग का एक विशद एवं महान् रूप उपस्थित करते हैं, वहीं स्वर के आलोक में परम-तत्त्व के साथ तादात्म्य और अंतर्मिलन का मर्मस्पर्शी स्वरूप भी उद्धाटित करते हैं। इस कृति ने विद्यावती ‘कोकिल’ जी के गीतकार को महिमान्वित किया है।
अरविन्द के लोक-परलोक एवं भूत-अध्यात्म के समन्वयवादी अद्वैत से विद्यावती विशेष प्रभावित हैं। इनके काव्य में अरविन्द दर्शन को नारी-हृदय की अनुभूति का कोमल परिधान मिला है।
विद्यावती ‘कोकिल’ की कव‍िताएं-  
मुझको तेरी अस्ति छू गई है
अब न भार से विथकित होती हूँ
अब न ताप से विगलित होती हूँ
अब न शाप से विचलित होती हूँ
जैसे सब स्वीकार बन गया हो।
मुझको तेरी अस्ति छू गई है।
पर्वत का हित मुझको जड़ न बनाता
प्रकृति हृदय का तम न मुझको ढँक पाता
आज उदधि का ज्वार न मुझे डुबोता
जैसे सब शृंगार बन गया हो।
मुझको तेरी अस्ति छू गई है।
दरिद्रता का यह मतवाला नर्तन
पीड़ाओं का उसमें आशिष-वर्षन
तेरी चितवन का जो मूक प्रदर्शन
तेरी मुख-अनुहार बन गया हो।
मुझको तेरी अस्ति छू गई है।
……
निंदिया बहुत ललन को प्यारी
अपने प्राणों को दीपक कर, जीवन को कर बाती,
सिरहाने बैठी-बैठी हूं कब से उसे जगाती,
भभक उठी है छाती मेरी, आंखें हैं कुछ भारी।
निंदिया बहुत ललन को प्यारी।
कभी हंसाने से न हंसा वह ऐसा असमझ भोरा,
सोते-सोते हंसा नींद में, मेरा कौन निहोरा,
प्रतिदिन मन मारे रह जाती कितनी उत्सुकता री।
निंदिया बहुत ललन को प्यारी।
कौन कथा कहकर न जाने परियां उसे हंसातीं,
मेरी कथा लड़खड़ाती-सी चुंबन में रह जाती।
मैं रह जाती हूं कहने को मन ही मन कुछ हारी।
निंदिया बहुत ललन को प्यारी।
……
कौन गाता जा रहा है?
मौनता को शब्द देकर
शब्द में जीवन सँजोकर
कौन बन्दी भावना के
पर लगाता जा रहा है?
कौन गाता जा रहा है?
घोर तम में जी रहे जो
घाव पर भी घाव लेकर
कौन मति के इन अपंगों
को चलाता जा रहा है?
कौन गाता जा रहा है?
कौन बिछुड़े मन मिलाता
और उजड़े घर बसाता
संकुचित परिवार का
नाता बढ़ाता जा रहा है?
कौन गाता जा रहा है?
मृत्तिका में आज फिर
निर्माण का सन्देश भर कर
खंडहरों के गिरे साहस
को उठाता जा रहा है?
कौन गाता जा रहा है?
फटा बनकर ज्योति-स्रावक
जोकि हिमगिरी की शिखा-सा
कौन गंगाधर-सा
अविरोध बहता जा रहा है?
कौन गाता जा रहा है?

17 comments:

  1. बहुत आभार, विद्यावती 'कोकिलजी' की कविताओं से परिचित कराने के लिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद व‍िश्वमोहन जी

      Delete
  2. सराहनीय है विद्यावती कोकिलजी से परिचय करवाना।आभार आदरणीय दीदी आपने यह पढ़वाया।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनीता जी, अत्यंत खूबसूरत संबोधन के ल‍िए आभारी हूं

      Delete
  3. विद्यावती कोकिल जी की रचनाओं को पढ़वाने के लिए धन्यवाद।

    ReplyDelete
  4. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (२८-७-२०२०) को
    "माटी के लाल" (चर्चा अंक 3776)
    पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद काम‍िनी जी

      Delete
  5. विद्यावती कोकिल जी की रचनाओं से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ह‍िंदीगुरू जी

      Delete
  6. विद्यावती "कोकिल" के जीवन वृत्त और रचना संसार से परिचित करवाने के लिए हार्दिक आभार ! --ब्रजेन्द्र नाथ

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ब्रजेन्द्र नाथ जी

      Delete
  7. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  8. कवयित्री आदरणीया विद्यावती कोकिल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर ज्ञानवर्धक आलेख के लिए हार्दिक बधाई । इस आलेख में साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम में उनके ऐतिहासिक योगदान के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। हार्दिक आभार ।

    ReplyDelete
  9. विद्यावती कोकिल जी और उनकी रचनाओं से परिचय कराने के लिए आपका हार्दिक आभार।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनुराधा जी

      Delete
  10. आभार कवयित्री विद्यावती ‘कोकिल’ और उनकी की लाजवाब कव‍िताओं से परिचय करवाने के लिये अलकनन्दा जी।

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...