Monday, 14 April 2014

अतीत

वे सबदिन पता नहीं... कहां चले गये?
कितने ही प्रिय नाम ,चेहरे और कदम
और पलछिन अपने साथ ले गये
कौन ला पाया आजतक उन्‍हें वापस
फिर भी...
अतीत  तो अतीत  होता है
वर्तमान बनना उसे नहीं आता
वह तो बस जमा कर सकता है
अपनी उन सब स्‍मृतियों को
जो उसे अहसास दिलातीं हैं
होने का..रचने का..बसने का
और धीमे से हर शय में घुलते जाने का


- अलकनंदा सिंह

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