Friday, 15 January 2021

तुर्की के क्रांतिकारी कवि नाज़िम हिकमत की 118वीं जन्मतिथि, उनकी कुछ कव‍ितायें (अनूद‍ित ) पढ़‍िए-


 तुर्की के महान क्रांतिकारी कवि नाज़िम हिकमत की आज 118वीं जन्मतिथि है. उनका जन्म 15 जनवरी 1902 को तत्कालीन ऑटोमन साम्राज्य के सालोनिका में हुआ था. 3 जून 1963 को मास्को में उनकी मृत्यु हुई. उन्होंने अपनी ज़िंदगी का लंबा अर्सा जेल में बिताया. जेल में रहते हुए उन्होंने कई कविताएं लिखी थीं. नाज़िम को रूमानी विद्रोही कहा जाता था क्योंकि वो कहीं रूमानी तो कहीं विद्रोही और कहीं दार्शनिक नज़र आते हैं. नाज़िम की कविताओं में ज़िंदगी और विद्रोह एक साथ दिखता है. यहां पेश है उनकी एक कविता जिसमें उनके तेवर और ज़िंदगी का फलसफा नज़र आता है-

जीने के लिए मरना

जीने के लिए मरना
ये कैसी स‍आदत है
मरने के लिए जीना
ये कैसी हिमाक़त है

अकेले जीओ
एक शमशाद तन की तरह
और मिलकर जीओ
एक बन की तरह। 

यह नाज़िम हिकमत की पहली कविता है, जो उन्होंने तुर्की की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक मुस्तफ़ा सुबही और उनके चौदह साथियों की स्मृति में 1921 में लिखी थी, जिन्हें 28 जनवरी 1921 को तुर्की के बन्दरगाह ’त्रापेजुन्द’ के क़रीब काले सागर में डुबकियाँ दे-देकर मार डाला गया था।


मेरी छाती पर लगे हैं पन्द्रह घाव

पन्द्रह चाकू

हत्थों तक घुसा दिए गए मेरी छाती में


पर धड़क रहा है

और धड़केगा दिल

 बन्द नहीं हो सकती उसकी धड़कन !


मेरी छाती पर हैं पन्द्रह घाव

और उनके चारों ओर घोर काला अन्धेरा

काले सागर का पानी

लिपटा है उनके चारों तरफ़

चिकने साँपों की तरह कुण्डलाकार


वे मेरा दम घोंट देंगे

मेरे ख़ून से रंग देंगे

काले जल को


मेरी छाती में आ घुसे हैं पन्द्रह छुरे

लेकिन फिर भी धड़क रहा है दिल

 मेरी छाती के भीतर !


मेरी छाती पर लगे हैं पन्द्रह घाव

पन्द्रह बार बेधा गया मेरा सीना

सोचते रहे वे कि छेद दिया दिल

लेकिन धड़कता रहा वह

बन्द नहीं होगी धड़कन !


मेरी छाती में जला दिए पन्द्रह अलाव

तोड़ दिए पन्द्रह चाकू मेरी छाती में

लेकिन दिल है कि धड़क रहा है

 लाल पताका की तरह

धड़केगा, धड़कता रहेगा

 बन्द नहीं होगी धड़कन !


1921

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय 

कचोटती स्वतन्त्रता 

तुम खर्च करते हो अपनी आँखों का शऊर,

अपने हाथों की जगमगाती मेहनत,

और गूँधते हो आटा दर्जनों रोटियों के लिए काफ़ी

मगर ख़ुद एक भी कौर नहीं चख पाते,

तुम स्वतन्त्र हो दूसरों के वास्ते खटने के लिए

अमीरों को और अमीर बनाने के लिए

तुम स्वतन्त्र हो ।


जन्म लेते ही तुम्हारे चारों ओर

वे गाड़ देते हैं झूठ कातने वाली तकलियाँ

जो जीवनभर के लिए लपेट देती हैं

तुम्हें झूठ के जाल में ।

अपनी महान स्वतन्त्रता के साथ

सिर पर हाथ धरे सोचते हो तुम

ज़मीर की आज़ादी के लिए तुम स्वतन्त्र हो ।


तुम्हारा सिर झुका हुआ मानो आधा कटा हो

गर्दन से,

लुंज-पुंज लटकती हैं बाँहें,

यहाँ-वहाँ भटकते हो तुम

अपनी महान स्वतन्त्रता में,

बेरोज़गार रहने की आज़ादी के साथ

तुम स्वतन्त्र हो ।


तुम प्यार करते हो देश को

सबसे क़रीबी, सबसे क़ीमती चीज़ के समान ।

लेकिन एक दिन, वे उसे बेच देंगे,

उदाहरण के लिए अमेरिका को

साथ में तुम्हें भी, तुम्हारी महान आज़ादी समेत

सैनिक अड्डा बन जाने के लिए तुम स्वतन्त्र हो ।

तुम दावा कर सकते हो कि तुम नहीं हो

महज़ एक औज़ार, एक संख्या या एक कड़ी

बल्कि एक जीता-जागते इन्सान

वे फौरन हथकड़ियाँ जड़ देंगे

तुम्हारी कलाइयों पर ।

गिरफ़्तार होने, जेल जाने

या फिर फाँसी चढ़ जाने के लिए

तुम स्वतन्त्र हो ।


नहीं है तुम्हारे जीवन में लोहे, काठ

या टाट का भी परदा,

स्वतन्त्रता का वरण करने की कोई ज़रूरत नहीं :

तुम तो हो ही स्वतन्त्र ।

मगर तारों की छाँह के नीचे

इस क़िस्म की स्वतन्त्रता कचोटती है ।

जीने के लिए मरना (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा अनूद‍ित) 


जीने के लिए मरना

ये कैसी स‍आदत है

मरने के लिए जीना

ये कैसी हिमाक़त है


अकेले जीओ

एक शमशाद तन की तरह

अओर मिलकर जीओ

एक बन की तरह

हमने उम्मीद के सहारे

टूटकर यूँ ही ज़िन्दगी जी है

जिस तरह तुमसे आशिक़ी की है।

- Alaknand singh 


16 comments:

  1. वाह!सुंदर जानकारी का आभार और नाज़िम हिकमत जी की स्मृति को सादर नमन!!!

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    1. धन्यवाद व‍िश्वमाेहन जी

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  2. Replies
    1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (17-01-2021) को   "सीधी करता मार जो, वो होता है वीर"  (चर्चा अंक-3949)    पर भी होगी। 
      -- 
      सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
      --
      हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-    
      --
      सादर...! 
      डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
      --

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  3. अर्थपूर्ण कविताओं का सुंदर संकलन..

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    1. धन्यवाद ज‍िज्ञासा जी

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  4. बहुत ही नई जानकारी है मेरे लिए अलकनंदा जी।कवि आदरणीय नाज़िम हिकमत जी की रचनाओं से परिचित हो बहुत अच्छा लगा। सभी रचनाओं में देश की आज़ादी के प्रति प्रचंड इच्छा शक्ति और देशद्रोही शक्तियों के प्रति आक्रोश नज़र आता है। यूँ ही नहीं कलम की ताकत को तलवार से बढ़कर कहा गया है। सस्नेह आभार इस सार्थक प्रस्तुति के लिए 🙏🙏

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    1. हार्द‍िक धन्यवाद रेणु जी इस हौसलाअफजाई के ल‍िए

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  5. बहुत सुंदर ऐतिहासिक जानकारी मिली, सराहनीय प्रस्तुति

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  6. तुर्की के क्रांतिकारी कवि नाज़िम हिकमत की शानदार रचनाएँ पढ़वाने के लिए शुक्रिया अलकनन्दा जी !

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  7. गहरी रचनाएं ... समाज और जीवन के अनबूझ पहलुओं को लिखती रचनाएं ...

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  8. बेहद गहन भाव लिए सशक्त रचनाओं को आपके माध्यम से पढ़ने का अवसर मिला ...हार्दिक आभार

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