Monday, 23 November 2020

मेरी कव‍िता: शेष रह गया बिंदु

यह चक्रवृत्‍त सी है एक पहेली कि
पहले आदमी बना या इंसान
शून्‍य की ही भांति एकटक
समय हमें घूर रहा है निरंतर ,
पूछ रहा है वह कि- शून्‍य, जो है पूर्ण,
वह कैसे रह पाया है पूर्ण
यही शून्‍यता है उसकी
कि शून्‍य में से शून्‍य के जाने पर भी
उसका शून्‍य ही बना रह जाना

यह ब्रह्म ही तो है
जो पूर्ण है - अकाट्य है,
जो अनादि है- अनंत भी ,
रेखा- त्रिभुज- चतुर्भुज के अनेक कोणों से मुक्‍त
इसी वृत्‍त- में समाये ब्रह्म- ब्रह्मांड में से,
खोजना है वह शेष-बिंदु अभी , कि जहां से
शुरू होता है इस धरती पर-
आदमी का इंसान में और
इंसान का आदमी में बदलते जाना।

- अलकनंदा सिंह

13 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा सोमवार ( 07-12-2020) को "वसुधा के अंचल पर" (चर्चा अंक- 3908) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनुराधा जी, आपका लेखन भी जबरदस्त होता है , बहुत अच्छा लगता है

      Delete
  3. सुंदर और सारगर्भित कृति..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ज‍िज्ञासा जी

      Delete
  4. पहले आदमी बना या इंसान
    शून्‍य की ही भांति एकटक
    समय हमें घूर रहा...वाह!सराहनीय सृजन दी।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद बह‍िन अनीता, आपका संबोधन बहुत अच्छा लगा

      Delete
  5. खोजना है वह शेष-बिंदु अभी , कि जहां से
    शुरू होता है इस धरती पर-
    आदमी का इंसान में और
    इंसान का आदमी में बदलते जाना। प्रभावशाली लेखन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद शांतनु जी

      Delete
  6. धन्यवाद ओंकार जी

    ReplyDelete
  7. रेखा- त्रिभुज- चतुर्भुज के अनेक कोणों से मुक्‍त
    इसी वृत्‍त- में समाये ब्रह्म- ब्रह्मांड में से,
    खोजना है वह शेष-बिंदु अभी
    सुन्दर पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  8. इंसान का आदमी में बदलते जान।
    वाह! बहुत गहरी पंक्तियाँ।

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...