Tuesday, 17 June 2025

मुस्‍लिम उपन्यासकार ख़ालिद जावेद ने क्यों कहा, हिंदू धर्म में लचीलापन है


 हिंदू धर्म के चरित्रों को आधार बनाकर साहित्य लेखन में समय समय पर विभिन्न प्रयोग किए जाते रहे हैं और अब भी हो रहे हैं लेकिन इस्लाम धर्म में ऐसी कोई परंपरा नहीं पाए जाने की वजह पूछे जाने पर उर्दू के जाने माने उपन्यासकार ख़ालिद जावेद कहते हैं कि इस्लाम धर्म में कहानी कहने के लिए ज़मीन ही नहीं है।

2014 में लिखे गए अपने उपन्यास ‘नेमतखाना’ (द पैराडाइज आफ फूड) के लिए हाल ही में वर्ष 2022 के प्रतिष्ठित जेसीबी पुरस्कार से सम्मानित ख़ालिद जावेद ने ‘भाषा’ को दिए विशेष साक्षात्कार में यह बात कही।
अमीश त्रिपाठी, देवदत्त पटनायक जैसे लेखकों द्वारा हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत के चरित्रों को आधार बनाकर उपन्यासों की रचना की पृष्ठभूमि में ख़ालिद जावेद से जब यह सवाल किया गया कि इस प्रकार के प्रयोग इस्लाम धर्म के साथ क्यों नहीं किए गए तो उनका कहना था, ‘‘हिंदू धर्म, पूरा का पूरा धर्म होने के साथ ही जीवन शैली भी है। हिंदू धर्म आचार संहिता नहीं है बल्कि वह एक संस्कृति है। भारतीय दर्शन और उसके सभी छह स्कूल पूरी तत्व मीमांसा और ज्ञान मीमांसा की सांस्कृतिक मूल के साथ व्याख्या करते हैं। इसके चलते हिंदू धर्म में लचीलापन है। उसमें चीजों को ग्रहण करने की बहुत बड़ी शक्ति हमेशा से मौजूद रही है।’’ 
उन्होंने आगे कहा, ‘‘हिंदू धर्म उस तरह का धर्म नहीं है जो कानूनी एतबार से चले। इसके भीतर मानवीय मूल्य, सांस्कृतिक तत्वों के साथ मिलकर सामने आते हैं। ऐसी जगह पर कहानी कहने के लिए ज़मीन पहले से मौजूद होती है। ’’ 
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफेसर ख़ालिद जावेद कहते हैं, ‘‘इस्लाम में आचार संहिता बहुत ज्यादा है । कुछ नियम बनाए गए हैं । सांस्कृतिक तत्व बहुत कम नजर आते हैं। इस्लाम में मेले ठेले, अगर ईद को छोड़ दें तो सांस्कृतिक परिदृश्य बहुत कम नजर आएगा। एक खास तरह से कुछ नियमों के ऊपर आपको चलना है।’’
वह कहते हैं, ‘‘इस्लाम के अपने खास नियम हैं। उन्हें तोड़ना बहुत मुश्किल है। वहां कहानी कहने के लिए जमीन ही नहीं है। उसके चरित्र ही इस तरह के नहीं हैं जिसके भीतर एक किरदार बनने की संभावनाएं पाई जाती हों। इस्लाम के चरित्र इतने ठोस हैं कि उनमें इस तरह का कहानी का चरित्र बनने के लिए, कल्पनाशीलता के लिए गुंजाइश बहुत कम है।’’
‘एक खंजर पानी में’,‘आखिरी दावत’, ‘मौत की किताब’, और ‘नेमतखाना’ के लेखक ख़ालिद जावेद विभिन्न पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं और न केवल भारत बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में बड़े चाव से पढ़े जाते हैं ।
सोशल मीडिया के जमाने में साहित्य पर मंडराते खतरों के संबंध में ख़ालिद जावेद ने कहा, ‘‘लॉकडाउन में साहित्यिक वेबसाइटों में इजाफा हुआ, सब कुछ ऑनलाइन था तो साहित्य भी। लेकिन प्रिंट मीडिया की दीर्घकालिक संदीजगी ज्यादा होती है। ऑनलाइन में तथाकथित स्वतंत्रता के चलते गुणवत्ता प्रभावित होती है। ’’
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘अदब (साहित्य) का गंभीर सौंदर्य शास्त्र होता है। आज के पाठक को अगर कोई लेखक या रचना समझ नहीं आती है तो इसकी वजह ये है कि पाठक की ग्रूमिंग ठीक से नहीं हो रही है। आवामी अदब (लोकप्रिय साहित्य), संजीदा अदब (गंभीर साहित्य) से अलग है। हमारे ज़माने में अदब का काम किसी पाठक की तरबीयत (प्रशिक्षण) करना था। ठीक है, आज पाठक अगर गुलशन नंदा पढ़ रहा है तो धीरे धीरे उसकी ऐसी ट्रेनिंग होती थी कि इन्हीं पाठकों ने आगे चलकर कुर्रतुल एन हैदर को पढ़ा, मंटो को पढ़ा, बेदी को पढ़ा, यशपाल को पढ़ा, मुक्तिबोध और निर्मल वर्मा को पढ़ा। अब ये प्रशिक्षण खत्म हो गया है। लोकप्रिय चीजें अंतरदृष्टि पैदा नहीं करती हैं, तात्कालिक खुशी देती हैं। गंभीर साहित्य आपको अंतरदृष्टि प्रदान करता है।’’
ख़ालिद जावेद ने आगे कहा, ‘‘इसीलिए गंभीर साहित्य को सबसे बड़ा खतरा पत्रकारिय लेखन से है। अदब के नाम पर, साहित्य के नाम पर रिपोर्टिंग कर दी जाती है, और फिर उस रिपोर्टिंग को उपन्यास बना दिया जाता है। सामाजिक यथार्थ को ठीक वैसे का वैसा ही पेश कर दिया जाता है। साहित्य की राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक चिंताएं होती हैं लेकिन इन्हें प्लेट में रखकर अखबार वालों की तरह पेश नहीं किया जाता। इसी से असल साहित्य को लगातार खतरा बना हुआ है। ये पिछले बीस पच्चीस साल से हो रहा है। उर्दू साहित्य का सूरते हाल भी यही है।”
उर्दू साहित्य में गंभीर लेखन संबंधी एक सवाल पर वह कहते हैं, ‘‘प्रेमचंद हिंदी और उर्दू अदब के बाबा आदम हैं। इसी ज़बान में मंटो हैं, किसी और ज़बान ने कोई दूसरा मंटो पैदा नहीं किया। राजेन्द्र बेदी हैं, कृष्ण चंदर हैं, इंतजार हुसैन हैं। ये उर्दू साहित्य की एक पूरी समृद्ध विरासत है। लेकिन आज पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर बुरा वक्त है। उर्दू साहित्य भी उससे अछूता नहीं है। ऐसा लिखा जा रहा है जो बहुत जल्दी से समझ में आ जाए। जो बहुत जल्द समझ में आ जाए, उसे इंसान को शक की नजर से देखना चाहिए।’’
अपने लेखन में इंसान की अस्तित्ववादी उलझनों से अधिक सरोकार रखने वाले जावेद अपने नए उपन्यास के बारे में पूछे जाने पर कहते हैं,‘‘अभी तो किसी विषय ने मुझे नहीं चुना है। एक उपन्यास अभी खत्म किया है, बड़ा उपन्यास है। साढ़े चार सौ पन्नों का- उसका शीर्षक है ‘अर्थलान और बैजाद’। यह स्वप्न, भ्रम, वास्तविकता के बीच की सरहदों को तोड़ता है। इतिहास, तारीख से बहस करता है। तारीख जो ख्वाब देखकर भूल गई है, ये उन सपनों तक पहुंचने की कोशिश है।’’
Compiled: Legend News

Monday, 2 June 2025

है जन्मभूमि पर खड़ा हुआ ध्वजदण्ड अभय, स्वर्णाभ शिखर पर सूर्य उतर कर आया है...


 

आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक विचारक और दार्शनिक हैंवे अपने विचारों और लेखन के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते हैं , आज उनकी एक कव‍िता तब प्रस्फुट‍ित हुई जब अयोध्या नगरी भगवान श्री राम के भव्य मंद‍िर को स्वर्ण श‍िखरों से सजा हुआ देख रही थी, इस पल साक्षी बन रही थी। 

आप भी पढ़‍िए इस कव‍िता को----- 

 

मण्डित शिखरों की सुस्मित स्वर्ण-रश्मियों में 

खण्डित  विश्वासों के पल-छिन मुस्काते हैं।

इतिहास उमड़ता आता है स्मृति के पथ पर

संघर्षों के नायक मन पर छा जाते हैं।

सरयू की लहरें साक्षी हैं उस गाथा की

जो लिखी गयी पर अब तक गायी नहीं गयी।

पायी है ऐसी विजय अयोध्या ने अपूर्व 

जो कहीं विश्व में अब तक पायी नहीं गयी।

धरती के अन्तस्तल में कहीं दबे हैं जो

वे खण्ड-खण्ड पाषाण आज फिर बोले हैं

जो म्लेच्छ-धूलि से मुँदे हुए थे इतने दिन

वे नयन दिशाओं ने प्रमुदित हो खोले हैं। 

है जन्मभूमि पर खड़ा हुआ ध्वजदण्ड अभय

स्वर्णाभ शिखर पर सूर्य उतर कर आया है।

अभिषेक धर्मविग्रह का करने को अकुण्ठ

तपसी पीढ़ी ने सञ्चित पुण्य लुटाया है।

सरयू के तट पर शोभित पुरी अष्टचक्रा

युग-युग से अपराजिता कहाती आयी है। 

उस सत्या को उसकी मर्यादा आज पुनः

प्रभु मर्यादापरुषोत्तम ने लौटाई है। 

वसुधा को माना है कुटुम्ब जिस संस्कृति ने

जो सत्यमेव जयते का गान सुनाती है।

देखे दुनिया उस भारत भू की सिद्धि, स्वतः

किस भाँति लौट उसके चरणों में आती है।

ये अम्बर तक अम्लान सौध शिखरों पर जो

कञ्चन की कान्ति चमत्कृत करती छाई है।

यह नहीं मात्र सोना, रविकुल के आँगन में

उतरी मानवता की स्वर्णिम परछाई है।

जो लिखते आये हैं इतिहास, कहो उनसे

जो पढ़ते हैं भूगोल उन्हें भी बतलाओ।

भारत का गौरव, इसकी महिमा का प्रमाण

प्रत्यक्ष अयोध्या की मिट्टी से ले जाओ।

यह पुनर्नवा संस्कृति का केन्द्र, सदानीरा

आस्थाओं के अविरल प्रवाह का तट पावन।

श्रीराम यहाँ मानवता के प्रतिमान अमर

नारीत्व विमल, जानकी-चरित है मनभावन।

जिनका वेदात्मक चरित आदिकवि वाल्मीकि

रामायण रचकर धरती पर ले आते हैं। 

मण्डित शिखरों की सुस्मित स्वर्ण-रश्मियों में 

उन रामभद्र के गुण-गण शोभा पाते हैं।

देखें वे जिनको दृष्टि मिली है ईश्वर से

वे सुनें कि जिनको सुनने की अभिलाषा है।

यह है हिन्दूजन का अभेद्य संकल्प फलित

यह भारत भू की चिरसंचित अभिलाषा है। 

आँधियाँ समय की आती हैं, देखीं हमने

विप्लव भी हमने सहे, कपट-छल देखा है।

हम जूझे हैं अपनी भी दुर्बलताओं से

हमने प्रतिपक्षी दल का भी बल देखा है।

पर रहा सदा विश्वास हमारा अचल कि हम

बस सत्यमेव जयते को जीते आये हैं।

जब मथा समुद्र अमृत की इच्छा से हमने 

शिव होकर तब हम विष भी पीते आये हैं।

है अमृत छलकता ही धरती के आँचल में

हम धरती की सन्तान हमें घबराना क्या।

है लुटा दिया सर्वस्व विश्व के हित हमने

तो फिर अपने हित हमको खोना-पाना क्या।

फिर बसती हुई अयोध्या का सच, रामायण 

में वाल्मीकि की लिखी हुई वह वाणी है।

जो शताब्दियों के पार महाकवि तुलसी की

चौपाई बनकर उमड़ी ध्वनि कल्याणी है।


- आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण

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