Tuesday, 31 October 2023

लैटिन साहित्य के सबसे अच्छे दौर के व्यंग्यकार - सेनेका द यंगर


 सेनेका द यंगर रोमन दार्शनिक, राजनेता और नाटककार थे। लैटिन साहित्य के सबसे अच्छे दौर के व्यंग्यकार भी माने जाते हैं।

लूसियस एनायस सेनेका द यंगर जिसे आमतौर पर सेनेका के नाम से जाना जाता है, प्राचीन रोम के एक स्टोइक दार्शनिक , एक राजनेता थे, नाटककार , और एक काम में, व्यंग्यकार , लैटिन साहित्य के उत्तर-अगस्तन युग से।

सेनेका का जन्म हिस्पानिया के कोर्डुबा में हुआ था और उनका पालन -पोषण रोम में हुआ , जहां उन्हें अलंकार और दर्शनशास्त्र में प्रशिक्षित किया गया । उनके पिता सेनेका द एल्डर थे , उनके बड़े भाई लूसियस जुनियस गैलियो एनायनस थे , और उनके भतीजे कवि लुकान थे । 41 ई. में, सेनेका को सम्राट क्लॉडियस के अधीन कोर्सिका द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया था ,लेकिन 49 में उसे नीरो का शिक्षक बनने के लिए वापस लौटने की अनुमति दी गई थी । जब 54 में नीरो सम्राट बना, तो सेनेका उसका सलाहकार बन गया और प्रेटोरियन प्रीफेक्ट सेक्स्टस अफ़्रानियस बुरस के साथ मिलकर , नीरो के शासनकाल के पहले पांच वर्षों के लिए सक्षम सरकार प्रदान की। समय के साथ नीरो पर सेनेका का प्रभाव कम होता गया और 65 में सेनेका को नीरो की हत्या की पिसोनियन साजिश में कथित संलिप्तता के लिए अपनी जान लेने के लिए मजबूर होना पड़ा , जिसमें वह शायद निर्दोष था। 

उनकी शांत और शांत आत्महत्या कई चित्रों का विषय बन गई 

एक लेखक के रूप में, सेनेका को उनके दार्शनिक कार्यों और उनके नाटकों के लिए जाना जाता है , जो सभी त्रासदियाँ हैं । उनके गद्य कार्यों में नैतिक मुद्दों से संबंधित 12 निबंध और 124 पत्र शामिल हैं। ये लेख प्राचीन स्टोइज़्म के लिए प्राथमिक सामग्री के सबसे महत्वपूर्ण निकायों में से एक हैं । एक त्रासदीवादी के रूप में, उन्हें मेडिया , थिएस्टेस और फेदरा जैसे नाटकों के लिए जाना जाता है । सेनेका का बाद की पीढ़ियों पर बहुत प्रभाव पड़ा - पुनर्जागरण के दौरान वह "एक ऋषि थे, जिनकी नैतिकता के दैवज्ञ, यहाँ तक कि ईसाई शिक्षा के एक दैवज्ञ के रूप में प्रशंसा और सम्मान किया जाता था; साहित्यिक शैली के स्वामी और नाटकीय कला के एक मॉडल थे।"

जान‍िए उनके महावाक्य - 

1. जब परिस्थितियां बदलती हैं तो रणनीति बदलने में कोई बुराई नहीं है। 
2. या तो रास्ता तलाशिए... या खुद बनाइए। 
3. हम असलियत में कम, काल्पनिक तौर पर ज्यादा दुखी रहते हैं। 4. खूबसूरती से चकित नहीं होना चाहिए, उन छिपे हुए गुणों को तलाशना चाहिए जो हमेशा बने रहेंगे। 
5. सब आपके नियंत्रण में हैं। आप खुद ही चीजों को आसान बनाते हैं या मुश्किल या हास्यास्पद। 
6. विपत्तियां हमें बुद्धिमान बनाती हैं जबकि समृद्धि सही-गलत का फर्क खत्म कर देती है। 
7. दोस्ती हमेशा फायदा पहुंचाती है, जबकि प्यार कई दफा तकलीफ देता है। 
8. आपने किसी को कुछ दिया है तो शांत रहें, लेकिन किसी ने आपको कुछ दिया है तो जरूर जिक्र करें। 
9. जो डरते हुए पूछता उसे अक्सर इनकार सुनना पड़ता है।

Saturday, 21 October 2023

सुनने वालों का कलेजा चीर कर रख देते थे आम आदमी के कवि अदम गोंडवी


 जन-जन के कवि और शायर अदम गोंडवी का जन्मदिन कल है। 22 अक्टूबर 1947 को गोंडा (उत्तर प्रदेश) के अट्टा परसपुर गांव में पैदा हुए अदम गोंडवी की मृत्यु 18 दिसंबर 2011 को लखनऊ में हुई थी। घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मैला कुरता और गले में सफेद गमछा उनकी पहचान थी। अदम गोंडवी का वास्‍तविक नाम रामनाथ सिंह था। मंच पर मुशायरों के दौरान जब अदम गोंडवी ठेठ गंवई अंदाज़ में हुंकारते थे तो सुनने वालों का कलेजा चीर कर रख देते थे। जाहिर है कि जब शायरी में आम आवाम का दर्द बसता हो, शोषित-कमजोर लोगों को अपनी आवाज उसमें सुनाई देती हो तो ऐसी हुंकार कलेजा क्यों नहीं चीरेगी? अदम गोंडवी की पहचान जीवन भर आम आदमी के शायर के रूप में ही रही। उन्होंने हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में हिंदुस्तान के कोने-कोने में अपनी पहचान बनाई थी। 

परिचय
गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब अट्टा परसपुर गांव में देवी कलि सिंह और मांडवी सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर ‘अदम गोंडवी’ के नाम से विख्यात हुए। अदम गोंडवी कबीर परंपरा के कवि थे। दुष्यंत कुमार ने अपनी गजलों से शायरी की जिस नई राजनीति की शुरुआत की थी, अदम गोंडवी ने उसे मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की। उस मुकाम तक, जहां से एक-एक चीज बिना धुंधलके के पहचानी जा सके।
अदम गोंडवी कवि थे और उन्हें कविता में गंवई जिंदगी की बजबजाहट, लिजलिजाहट और शोषण के नग्न रूपों को उधेड़ने में महारत हासिल थी। वह अपने गांव के यथार्थ के बारे में कहा करते थे- "फटे कपड़ों में तन ढांके गुजरता है जहां कोई/समझ लेना वो पगडंडी ‘अदम’ के गांव जाती है।"
जन-जन के कवि
अदम गोंडवी जब मुशायरे के मंच से अपनी रचनाएं पढ़ते थे तो उसमें न सिर्फ व्यवस्था के प्रति तीक्ष्ण व्यंग्य होता था बल्कि वे सीधे-साधे लोगों के दिलों में बस जाती थीं। यही वजह है कि वे जन-जन के कवि बन गए। अदम गोंडवी की शायरी में आम आदमी की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद था। उनकी शायरी न हम वाह करने का अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है। सीधे-सीधे लफ्जों में बेतकल्लुफ विचार उसमें होते थे। निपट गंवई अंदाज़ में महानगरीय चकाचैंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदम गोंडवी की अदा सबसे जुदा और सबसे विलक्षण थी।
रचनाएं
अदम गोंडवी की रचनाएं हमेशा लोगों को प्रेरणा देती रहेंगी। उन्होंने अपनी बेबाक रचनाओं से राजनेताओं व अफसरों पर भी बहुत ही निडरता से कुछ इस तरह कटाक्ष करते हुए लिखा है-
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे, ये अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।
मुल्क जाए भाड़ में इससे उन्हें मतलब नहीं, एक ही ख्वाहिश है कि कुनबे में मुख्तारी रहे।
महज तनख्वाह से निबटेंगे क्या नखरे लुगाई के, हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के।
मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं, पिछली बाढ़ के तोहफे हैं ये कंगन कलाई के। 
अपनी जीवंत गजल व शायरी से आम जनमानस व समाज के दबे, कुचले लोगों के दर्द को समाज के पटल पर अपनी लेखनी से बयां करने वाले अजीम शायर अदम गोंडवी ने गोंडा जनपद को अपने साहित्य के माध्यम से जो पहचान दिलाई है, लोग आज भी उनके कायल हैं। 

जैसे- 

काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में,
उतरा है रामराज विधायक निवास में।
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत,
इतना असर है खादी के उजले लिबास में।
आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें,
संसद बदल गई हैं यहां की नखास में। 
जनता के पास एक ही चारा है बगावत,
यह बात कर रहा हूं मैं होशो-हवास में।


बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खे कब तलक नारों से दस्तरखान को।
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को। 

जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे

जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे
कमीशन दो तो हिंदुस्तान को नीलाम कर देंगे

सुरा व सुंदरी के शौक़ में डूबे हुए रहबर
दिल्ली को रंगीलेशाह का हम्माम कर देंगे

ये वंदेमातरम् का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगना दाम कर देंगे

सदन को घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे
अगली योजना में घूसख़ोरी आम कर देंगे

मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्णा थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें

बोला कृष्णा से बहन सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में

दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर

क्या कहें सरपंच भाई क्या ज़माना आ गया
कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया

कहती है सरकार कि आपस मिलजुल कर रहो
सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्णा है चमारो के यहाँ
पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ

जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है
हाथ न पुट्ठे पे रखने देती है मगरूर है

भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था

क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था
हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था

रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था
भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था

सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में
एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में

घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने -
"जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने"

निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर
एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर

गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया
सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"

"कैसी चोरी, माल कैसा" उसने जैसे ही कहा
एक लाठी फिर पड़ी बस होश फिर जाता रहा

होश खोकर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर
ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर -

"मेरा मुँह क्या देखते हो ! इसके मुँह में थूक दो
आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो"

और फिर प्रतिशोध की आंधी वहाँ चलने लगी
बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी

दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था
वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था

घर को जलते देखकर वे होश को खोने लगे
कुछ तो मन ही मन मगर कुछ जोर से रोने लगे

"कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं
हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं"
 
यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल से
आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से

फिर दहाड़े, "इनको डंडों से सुधारा जाएगा
ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा

इक सिपाही ने कहा, "साइकिल किधर को मोड़ दें
होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें"

बोला थानेदार, "मुर्गे की तरह मत बांग दो
होश में आया नहीं तो लाठियों पर टांग लो

ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है
ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है, जेल है"

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल
"कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्णा का हाल"
 
उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को
सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को

धर्म संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को
प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ- आएँ मेरे गाँव में
तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में

गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही
या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही

हैं तरसते कितने ही मंगल लंगोटी के लिए
बेचती है जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए!


पुरस्कार व सम्मान
‘धरती की सतह पर’ व ‘समय से मुठभेड़’ जैसे चर्चित ग़ज़ल संग्रहों ने अदम गोंडवी को हिंदी भाषी क्षेत्रों में काफी ख्याति और सम्मान दिलाया। वर्ष 1998 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार' से नवाजा था। 

- अलकनंदा स‍िंंह 

Thursday, 12 October 2023

सहज भाषा में गूढ़ से गूढ़ बात कह जाने वाले शायर हैं निदा फ़ाज़ली, पढ़‍िये उनकी ग़ज़लें और दोहे

आधुनिक उर्दू शायरी के लोकप्रिय शायर निदा फ़ाज़ली का आज जन्मदिन है। उनका जन्म 12 अक्तूबर 1938 को दिल्‍ली में हुआ था।  निदा फ़ाज़ली हिन्दी पढ़ने वालों के लिए भी उतने ही अजीज हैं, जितना उर्दू पाठकों के लिए। इनका पूरा नाम मुक़्तिदा हसन निदा फ़ाज़ली है, जो बाद में निदा फ़ाज़ली के रूप में प्रसिद्ध हुआ। 

निदा का अर्थ है स्वर/आवाज़/ Voice फ़ाज़िला कश्मीर के एक इलाके का नाम है जहाँ से निदा के पूर्वज आकर दिल्ली में बस गए थे, इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में फ़ाज़ली जोड़ा। निदा फ़ाज़ली की मृत्यु 8 फरवरी 2016 को मुम्बई में हुई।

जीवन परिचय
निदा फ़ाज़ली की स्कूली शिक्षा ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुई थी। उनके पिता एक शायर थे, जो भारत विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए। भारतीयता के पोषक निदा फ़ाज़ली भारत को छोड़कर पाकिस्तान नहीं गए। निदा फ़ाज़ली ने गज़लों के साथ दोहे भी बखूबी कहे, नज़्मों में भी उन्हें महारत हासिल थी। 1960 के दशक के दौरान अपने समकालीन शायरों कैफ़ी आज़मी, सरदार अली जाफ़री और साहिर लुधियानवी पर एक समीक्षात्मक किताब मुलाकातें भी निदा फ़ाज़ली ने लिखी। है। उनकी एक ही बेटी है, जिसका नाम तहरीर है। 
निदा फ़ाज़ली ने सन् 1946 में जीविका की खातिर मुम्बई का रुख़ किया। 'धर्मयुग' और 'ब्लिट्ज' में आलेख भी लिखे। मुशायरों में भी बेहद लोकप्रियता हासिल की। फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' के निर्माण के समय शायर जानिसार अख्तर के निधन के बाद फ़िल्म निर्माता कमाल अमरोही ने इन्हें गीत लिखने के लिए अवसर दिया। इनके लिखे गीत काफ़ी लोकप्रिय भी हुए। 

भाषा शैली
निदा फ़ाज़ली की शायरी की भाषा आम आदमी को भी समझ में आ जाती है। यह कवि/शायर सहज भाषा में गूढ़ से गूढ़ बात कहने में माहिर है। निदा फ़ाज़ली एक सूफ़ी शायर हैं। रहीम, कबीर और मीरा से प्रभावित होते हैं तो मीर और ग़ालिब भी इनमें रच- बस जाते हैं। निदा फाज़ली की शायरी की जमीन विशुद्ध भारतीय है। वो छोटी उम्र से ही लिखने लगे थे। जब वह पढ़ते थे तो उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिससे वो एक अनजाना, अनबोला सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे लेकिन एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा- कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट हुआ और उनका देहान्त हो गया है। निदा बहुत दु:खी हुए और उन्होंने पाया कि उनका अभी तक का लिखा कुछ भी उनके इस दु:ख को व्यक्त नहीं कर पा रहा है, ना ही उनको लिखने का जो तरीक़ा आता था उसमें वो कुछ ऐसा लिख पा रहे थे जिससे उनके अंदर का दु:ख की गिरहें खुलें। एक दिन सुबह वह एक मंदिर के पास से गुजरे जहाँ पर उन्होंने किसी को सूरदास का भजन मधुबन तुम क्यौं रहत हरे, बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौं न जरे... गाते सुना, जिसमें कृष्ण के मथुरा से द्वारका चले जाने पर उनके वियोग में डूबी राधा और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लगा कि उनके अंदर दबे हुए दु:ख की गिरहें खुल रही हैं। फिर उन्होंने कबीरदास, तुलसीदास, बाबा फ़रीद इत्यादि कई अन्य कवियों को भी पढ़ा और उन्होंने पाया कि इन कवियों की सीधी-सादी, बिना लाग लपेट की, दो-टूक भाषा में लिखी रचनाएँ अधिक प्रभावकारी है जैसे सूरदास की ही 'ऊधो मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अराधै ते ईस॥ तब से वैसी ही सरल भाषा सदैव के लिए उनकी अपनी शैली बन गई। 

निदा फ़ाज़ली की 2 ग़ज़लें 

1- सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सम्हल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो

2- अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं 
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं 
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है 
अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं 
वक्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से 
किसको मालूम, कहाँ के हैं किधर के हम हैं 
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं 
कभी धरती के कभी चाँद नगर के हम हैं 
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब 
सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं 
गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम 
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं 


निदा फ़ाज़ली के दोहे
सबकी पूजा एक सी, अलग-अलग हर रीत। 
मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाए गीत॥ 
पूजा -घर में मूरती, मीरा के संग श्याम।
जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम॥ 
सीता-रावण, राम का, करें बिभाजन लोग।
एक ही तन में देखिए, तीनों का संजोग॥ 
माटी से माटी मिले, खो के सभी निशान।
किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान॥ 

----------
बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान 
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान 

घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव 
वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव 

नक़्शा ले कर हाथ में बच्चा है हैरान 
कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दोस्तान 

वो सूफ़ी का क़ौल हो या पंडित का ज्ञान 
जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान 

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार 
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार 

सम्मान और पुरस्कार
1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार - काव्य संग्रह खोया हुआ सा कुछ (1996)
2003 में स्टार स्क्रीन पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म 'सुर के लिए
2003 में बॉलीवुड मूवी पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म सुर के गीत 'आ भी जा' के लिए
मध्य प्रदेश सरकार का मीर तकी मीर पुरस्कार (आत्मकथा रूपी उपन्यास 'दीवारों के बीच' के लिए)
मध्य प्रदेश सरकार का खुसरो पुरस्कार- उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का श्रेष्ठतम कविता पुरस्कार- उर्दू साहित्य के लिए
बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार
उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का पुरस्कार
हिन्दी उर्दू संगम पुरस्कार (लखनऊ) 

- अलकनंदा स‍िंंह 

Thursday, 5 October 2023

इस बार साहित्य का नोबेल पुरस्कार नॉर्वेजियन लेखक जॉन फॉसे को दिया गया


 साल 2023 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार नॉर्वेजियन लेखक जॉन फॉसे को दिया गया है। यह पुरस्कार उनके अभिनव नाटकों और गद्य के लिए दिया गया है जो अनकही भावनाओं को आवाज देते हैं। 

जॉन फॉसे की लेखनी में भावनाओं का जिक्र 
इस वर्ष के साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन फॉसे ने उपन्यासों को एक ऐसी शैली में लिखा है जिसे 'फॉसे मिनिमलिज्म' के नाम से जाना जाता है। इसे उनके दूसरे उपन्यास 'स्टेंग्ड गिटार' (1985) में देखा जा सकता है। फासे अपनी लेखनी में उन कष्टप्रद भावनाओं को शब्दों में जिक्र करते हैं, जिसे सामान्य तौर पर लिखना मुश्किल होता है। 

उनका पहला उपन्यास, राउड्ट, स्वार्ट (रेड, ब्लैक) 1983 में प्रकाशित हुआ था, हालांकि वह 1981 में एक स्टूडेंट न्यूजपेपर में प्रकाशित लघु कहानी हान (हे) को अपनी साहित्यिक शुरुआत मानते हैं. एक लेखक के रूप में उनकी सफलता 1989 के उपन्यास नॉस्टेट (बोटहाउस) से मिली.

स्टेंग्ड गिटार में उन्होंने लिखा कि एक नौजवान मां कूड़ा-कचरा नीचे फेंकने के लिए अपने फ्लैट से बाहर निकलती है, लेकिन खुद को बाहर बंद कर लेती है, जबकि उसका बच्चा अभी भी अंदर है। उसे जाकर मदद मांगनी है, लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ है क्योंकि वह अपने बच्चे को छोड़ नहीं सकती। जबकि वह खुद को, काफ्केस्क शब्दों में, 'कानून के सामने' पाती है। अंतर स्पष्ट है: फॉसे रोजमर्रा की ऐसी स्थितियों को प्रस्तुत करता है जिन्हें हमारे अपने जीवन से तुरंत पहचाना जा सकता है।


जॉन फॉसे की टार्जेई वेसास के साथ समानता
जॉन फॉसे और नॉर्वेजियन नाइनोर्स्क साहित्य के भीष्म पितामह कहे जाने वाले टार्जेई वेसास के साथ बहुत कुछ समानता है। फॉसे आधुनिकतावादी कलात्मक तकनीकों के साथ भाषाई और भौगोलिक दोनों तरह के मजबूत स्थानीय संबंधों को जोड़ते हैं। उन्होंने अपने वॉल्वरवांडशाफ्टन में सैमुअल बेकेट, थॉमस बर्नहार्ड और जॉर्ज ट्राकल जैसे नाम शामिल किए हैं। वहीं, वे अपने पूर्ववर्तियों के नकारात्मक दृष्टिकोण को साझा करते हैं, उनकी विशेष ज्ञानवादी दृष्टि को दुनिया की शून्यवादी अवमानना के परिणाम के रूप में नहीं कहा जा सकता है।
साल 2022 में यह पुरस्कार फ्रांसीसी लेखिका एनी एनॉक्स को दिया गया था। एनी ने अपनी लेखनी के जरिए साहसिक क्लिनिकल एक्यूटी (clinical acuity) पर कई लेख लिखे हैं। एनी एनॉक्स ने फ्रेंच, इंग्लिश में कई उपन्यास, लेख, नाटक और फिल्में भी लिखी हैं। साल 2021 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार उपन्यासकार अब्दुलराजक गुरनाह को दिया गया था। उन्हें अपनी लेखनी के जरिए उपनिवेशवाद के प्रभावों, संस्कृतियों को लेकर लिखने के लिए यह पुरस्कार दिया गया था। 2019 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार आस्ट्रियाई मूल के लेखक पीटर हैंडका को दिया गया था। उन्हें यह पुरस्कार इनोवेटिव लेखन और भाषा में नवीनतम प्रयोगों के लिए दिया गया था। 
Compiled: Legend News
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