अयोध्या में मुमताजनगर गांव के निवासी अजीम शायर रफीक शादानी की यह रचना गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है।
अपने क्षेत्र में कबीर माने जाने वाले शायर रफीक शादानी ने रामलला के मेक शिफ्ट स्ट्रक्चर को वर्ष 2005 में बम से उड़ाने आए आतंकवादियों पर मंच से पढ़ा था-
नोट की गड्डी पाई गये तो तन डोला मन डोला/रामलला पर फैंके आए कुछ लोगै हथगोला। उन्हीं के हाथे मा दगिगा हुइगे उडनखटोला/ और.. बड़े बहादुर बनत हौ बेटा, आई के देखौ फैजाबाद!
9 फरवरी 2010 को बहराइच में हुई वाहन दुर्घटना में इंतकाल से पहले मुशायरों की शान हुआ करते थे। उनके गांव में आज भी हिंदू-मुस्लिम मिलकर रामलीला करते हैं।
ऐसा ही समां अयोध्या की सोंधी मिट्टी सदियों रोशन करती आ रही है। उर्दू अदब के महान शायर मीर अनीस, मीर गुलाम हसन, ख़्वाजा हैदर अली आतिश, नवाब सैयद मोहम्मद खां हिंद, मोहम्मद रफी सौदा, पं. बृज नारायण चकबस्त, मिर्जा हातिम अली बेग महर, मजाज रुदौलवी, मेराज फैजाबादी, सैयद शमीम अहमद शमीम को जिसने भी पढ़ा व सुना, उसे सांप्रदायिकता की हवा कभी छू नहीं सकती।
भगवत गीता का उर्दू में अनुवाद करने वाले अनवर जलालपुरी का पिछले साल ही इंतकाल हुआ, उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।
फैजाबाद के मोतीबाग में 9 सितंबर 1927 पैदा हुए समकालीन हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष कुंवर नारायण को तो अयोध्या 1992 : हे राम, जीवन एक कटु यथार्थ है।
और तुम एक महाकाव्य! तुम्हारे बस की नहीं।
उस अविवेक पर विजय/ जिसके दस बीस नहीं अब लाखों सर।
लाखों हाथ हैं, और विभीषण भी अब न जाने किसके साथ है।
कविता लिखने पर धमकी दी गई थी। उनका निधन 15 नवंबर 2017 को 90 वर्ष की उम्र में हुआ। उन्हें ज्ञानपीठ मिलने के बाद 2009 में पद्मभूषण अवॉर्ड दिया गया, साहित्य अकादमी पुरस्कार उनको 1995 में ही मिल चुका था।
समाजसेवी सूर्यकांत पांडेय कहते हैं कि आध्यात्मिक गुरु संत पं. रामकृष्ण पांडेय आमिल की रचना-हकीरों में फकीरों में जरा मिल बैठ कर देखो, पता चल जाएगा आमिल मुझे कुछ भी नहीं आता..। हमेशा सौहार्द का संदेश देती है।
शहर के कसाबबाड़ा मोहल्ले में रहने वाले अजीम शायर सैयद शमीम अहमद शमीम अब हमारे बीच नहीं है मगर उनकी रचनाएं आज भी एकता का अटूट संदेश देती हैं, उन्होंने लिखा है कि सभ्यताओं का इसे शीश महल कहते हैं/कुछ तो ऐसे हैं जो जन्नत का बदल कहते हैं।
कोई कहता है अवध और कोई फैजाबाद/हम जुनूं वाले इसे शहर-ए-गजल कहते हैं। कैंसर की बीमारी से 71 वर्ष की उम्र में 30 नवंबर 2013 को लखनऊ में अंतिम सांस लेने वाले सोहावल के कोला गांव निवासी अजीम शायर मेराज फैजाबादी आपसी एकता व सौहार्द के साथ इंसानियत के मिसाल थे, वे लिखते हैं कि-किसको फिक्र है कि कबीले का क्या हुआ, सब इस बार लड़ रहे हैं कि सरदार कौन है। अंबेडकरनगर के प्रो. मलिकजादा मंजूर व श्रीराम सिंह शलभ न रहते हुए भी अपनी रचनाओं से आज भी लोगों के सांसों की डोर बांधे हुए हैं।
साकेत पीजी कॉलेज में वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष डॉ. मिर्जा साहेब शाह कहते हैं कि बृज नारायण चकबस्त (1882-1926) का राठ हवेली मोहल्ला में जन्म हुआ था, बाद में लखनऊ के काश्मीरी मोहल्ला में बस गये। उनकी गजलें व नज्में सुबह-ए-वतन, खाक़े हिंद, रामायण का एक सीन कभी नहीं भूलतीं। वे लिखते हैं कि-गुल सम-ए-अंजुमन है, गो अंजुमन वही है, हुब्बे वतन नहीं है, खाके वतन वही है..।
डॉ. मिर्जा कहते हैं कि रफीक साहब निरक्षर थे मगर उनकी रचनाओं में गहराई बहुत थी। सब उनको फैजाबाद का कबीर कहते थे। शत्रुघ्न सिंह कहते हैं कि फोर्ब्स इंटर कालेज में रफीक साहेब मुशायरे का संचालन कर रहे थे, 1992 के पहले की बात है जब राममंदिर के लिए चंदे जुटाया जा रहा था।
इस प्रहार करते हुए वे बोले-का करिहैं चंदा मंगिहैं, जनता से छल-बल का करिहैं। जब राम का मंदिर बनि जाए, तब जोसी सिंघल का करिहैं।.. इसे सुन लोगों ने खड़े होकर मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं ने दाद दी।
जिले के रुदौली के रहने वाले लखनऊ विवि में प्रो. शारिब रूदौलवी आज भी एकता का राग मंचों पर साझा करते हैं। बीकापुर में रहने वाले भारत भूषण से सम्मानित कवि जमुना उपाध्याय कहते हैं कि-नदी के घाट पर गर सियासी लोग बस जाएं, प्यासे होठ एक-एक बूंद को तरस जाएं..।
हमें आने वाले वक्त में भी अयोध्या के माहौल पर सावधान रहना चाहिए। शहर के जफ्ती मोहल्ले में रहने वाले शायर सलाम जाफरी सुनाते हैं कि-जब भी इंसान ने इंसान से नफरत की है, प्यार हारा है, तबाही ने हुकूमत की है…। वे कहते हैं कि अभी अयोध्या पर फैसले का इंतजार हो रहा है, फैसला आने के बाद का माहौल शहर में अमनोअमन का भविष्य तय करेगा। यहां के लोग तो 1992 में भी प्यार से थे, मगर तबाही तो बाहर के लोगों ने मचाई।