नि:शब्द होना किसी का,
अशब्द होना तो नहीं होता
और अशब्द होते जाना,
प्रेमविहीन होते जाने से
बहुत अलग होता है।
मन की तरंगों पर डोलते
अनेक शब्द,
ढूढ़ते हैं किनारे...पर...!
कोई शब्द इन किनारों पर
अपना लंगर नहीं डालता
और प्रेम...स्वयं प्रेमविहीन सा
हर बार अकड़कर खड़ा होता जाता है,
उस किनारे तक पहुंचने के लिए
जहां मैं और तुम...
प्रेमविहीन, रंगहीन, स्वादहीन
होकर, विलीन हो जायें,
उस आग में... जहां सभी शब्द
जल जायें, भाप हो जायें, उड़ जायें
हमेशा हमेशा तक अशब्दिता पर
प्रेम बनकर जम जाने के लिए।
- अलकनंदा सिंह
अशब्द होना तो नहीं होता
और अशब्द होते जाना,
प्रेमविहीन होते जाने से
बहुत अलग होता है।
मन की तरंगों पर डोलते
अनेक शब्द,
ढूढ़ते हैं किनारे...पर...!
कोई शब्द इन किनारों पर
अपना लंगर नहीं डालता
और प्रेम...स्वयं प्रेमविहीन सा
हर बार अकड़कर खड़ा होता जाता है,
उस किनारे तक पहुंचने के लिए
जहां मैं और तुम...
प्रेमविहीन, रंगहीन, स्वादहीन
होकर, विलीन हो जायें,
उस आग में... जहां सभी शब्द
जल जायें, भाप हो जायें, उड़ जायें
हमेशा हमेशा तक अशब्दिता पर
प्रेम बनकर जम जाने के लिए।
- अलकनंदा सिंह
No comments:
Post a Comment