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वो दीवारें थीं मेरे घर की,
जिस पर छपे हुये थे पंजे
प्रेम और वियोग...के
स्वागत और विदाई... के
जन्म और बधाई... के
ये तो उन्हीं ईटों की दराजें हैं जिनमें
रहता था अम्मा के घर का राशन
तीन पुश्तों के मुकद्दमे की रद्दी
समाये हुये घर का इतिहास
पर आज सभी अपनों के-
संबंधों की चटकन से
चटक रही हैं यही ईटें और दीवारें,
क्योंकि....
उस खून के रंग के बीच
गर्व और अहंकार के बीच
अपने और पराये के बीच
छल और आडंबर के बीच
घर और चारदीवारी के बीच
दीवारों की रंगत
काल कोठरी से भी भयानक
नज़र आती है अब
-अलकनंदा सिंह
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