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Tuesday 16 April 2013

रूठो ना सखा यूं...

चित्र : साभार-गूगल
रूठने की तरकीबें तुम्‍हें
खूब आती हैं सखा...
नहीं रखो तुम मान मेरा
ये कैसे मैं होने दूंगी

मत भूलो तुम, मेरे होते
रूठकर बैठ नहीं सकते
यूं ही तुम्‍हारी कोशिशें
परवान नहीं चढ़ने दूंगी

अम्‍बर की हर शै से जाकर
चुन कर लाऊंगी वो पल
मेरे और तुम्‍हारे धागे की
गिरह कभी नहीं बनने दूंगी

तुम्‍हारे सभी उलाहने मैंने
टांक दिए हैं उस तकिये में
जिस पर सपने बोये थे तुमने
हर सपने का जाल बनाकर
नये वादे मैं वहीं टांक दूंगी

चुप क्‍यों हो, बोलो हे सखा...
रूठने की हर कला की
अपनी सीमायें होती हैं
जाने भी दो,मत नापो इनको
तुम्‍हारी एक न चलने दूंगी

जब भी आओ मेरे पास तुम
भुलाकर आना अपना मान
छोड़ आना गुस्‍से के हिज्‍जे
तजकर आना अपना ज्ञान
वरना गोपी बनकर मैं भी
मान तुम्‍हारा चूर कर दूंगी
      -अलकनंदा सिंह

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