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Monday, 2 June 2025

है जन्मभूमि पर खड़ा हुआ ध्वजदण्ड अभय, स्वर्णाभ शिखर पर सूर्य उतर कर आया है...


 

आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक विचारक और दार्शनिक हैंवे अपने विचारों और लेखन के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते हैं , आज उनकी एक कव‍िता तब प्रस्फुट‍ित हुई जब अयोध्या नगरी भगवान श्री राम के भव्य मंद‍िर को स्वर्ण श‍िखरों से सजा हुआ देख रही थी, इस पल साक्षी बन रही थी। 

आप भी पढ़‍िए इस कव‍िता को----- 

 

मण्डित शिखरों की सुस्मित स्वर्ण-रश्मियों में 

खण्डित  विश्वासों के पल-छिन मुस्काते हैं।

इतिहास उमड़ता आता है स्मृति के पथ पर

संघर्षों के नायक मन पर छा जाते हैं।

सरयू की लहरें साक्षी हैं उस गाथा की

जो लिखी गयी पर अब तक गायी नहीं गयी।

पायी है ऐसी विजय अयोध्या ने अपूर्व 

जो कहीं विश्व में अब तक पायी नहीं गयी।

धरती के अन्तस्तल में कहीं दबे हैं जो

वे खण्ड-खण्ड पाषाण आज फिर बोले हैं

जो म्लेच्छ-धूलि से मुँदे हुए थे इतने दिन

वे नयन दिशाओं ने प्रमुदित हो खोले हैं। 

है जन्मभूमि पर खड़ा हुआ ध्वजदण्ड अभय

स्वर्णाभ शिखर पर सूर्य उतर कर आया है।

अभिषेक धर्मविग्रह का करने को अकुण्ठ

तपसी पीढ़ी ने सञ्चित पुण्य लुटाया है।

सरयू के तट पर शोभित पुरी अष्टचक्रा

युग-युग से अपराजिता कहाती आयी है। 

उस सत्या को उसकी मर्यादा आज पुनः

प्रभु मर्यादापरुषोत्तम ने लौटाई है। 

वसुधा को माना है कुटुम्ब जिस संस्कृति ने

जो सत्यमेव जयते का गान सुनाती है।

देखे दुनिया उस भारत भू की सिद्धि, स्वतः

किस भाँति लौट उसके चरणों में आती है।

ये अम्बर तक अम्लान सौध शिखरों पर जो

कञ्चन की कान्ति चमत्कृत करती छाई है।

यह नहीं मात्र सोना, रविकुल के आँगन में

उतरी मानवता की स्वर्णिम परछाई है।

जो लिखते आये हैं इतिहास, कहो उनसे

जो पढ़ते हैं भूगोल उन्हें भी बतलाओ।

भारत का गौरव, इसकी महिमा का प्रमाण

प्रत्यक्ष अयोध्या की मिट्टी से ले जाओ।

यह पुनर्नवा संस्कृति का केन्द्र, सदानीरा

आस्थाओं के अविरल प्रवाह का तट पावन।

श्रीराम यहाँ मानवता के प्रतिमान अमर

नारीत्व विमल, जानकी-चरित है मनभावन।

जिनका वेदात्मक चरित आदिकवि वाल्मीकि

रामायण रचकर धरती पर ले आते हैं। 

मण्डित शिखरों की सुस्मित स्वर्ण-रश्मियों में 

उन रामभद्र के गुण-गण शोभा पाते हैं।

देखें वे जिनको दृष्टि मिली है ईश्वर से

वे सुनें कि जिनको सुनने की अभिलाषा है।

यह है हिन्दूजन का अभेद्य संकल्प फलित

यह भारत भू की चिरसंचित अभिलाषा है। 

आँधियाँ समय की आती हैं, देखीं हमने

विप्लव भी हमने सहे, कपट-छल देखा है।

हम जूझे हैं अपनी भी दुर्बलताओं से

हमने प्रतिपक्षी दल का भी बल देखा है।

पर रहा सदा विश्वास हमारा अचल कि हम

बस सत्यमेव जयते को जीते आये हैं।

जब मथा समुद्र अमृत की इच्छा से हमने 

शिव होकर तब हम विष भी पीते आये हैं।

है अमृत छलकता ही धरती के आँचल में

हम धरती की सन्तान हमें घबराना क्या।

है लुटा दिया सर्वस्व विश्व के हित हमने

तो फिर अपने हित हमको खोना-पाना क्या।

फिर बसती हुई अयोध्या का सच, रामायण 

में वाल्मीकि की लिखी हुई वह वाणी है।

जो शताब्दियों के पार महाकवि तुलसी की

चौपाई बनकर उमड़ी ध्वनि कल्याणी है।


- आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण

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