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Wednesday, 5 March 2025

होरी रे रस‍िया.... वृन्दावन सा कहीं आनन्द नहीं पाओगे।


 एक बार अयोध्या जाओ, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे। 

चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार-बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे॥


कोटि बार काशी, केदारनाथ, रामेश्वर, गया-जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे। 

होंगे प्रत्यक्ष जहाँ दर्शन श्याम-श्यामा के, वृन्दावन सा कहीं आनन्द नहीं पाओगे॥ 


प्रिया लाल राजे जहाँ, तहाँ वृन्दावन जान,

वृन्दावन तज एक पग, जाए ना रसिक सुजान ॥

जो सुख वृंदाविपिन में, अंत कहु सो नाय,

बैकुंठहु फीको पड्यो, ब्रज जुवती ललचाए ॥


वृंदावन रस भूमि में, रस सागर लहराए,

श्री हरिदासी लाड़ सो, बरसत रंग अघाय ॥


मोर जो बनाओ तो, बनाओ श्री वृंदावन को,

नाच नाच घूम घूम, तुम्ही को रिझाऊं मैं ।

बंदर बनाओ तो, बनाओ श्री निधिवन को,

कूद कूद फांद वृक्ष, जोरन दिखाऊं मैं  ॥


भिक्षुक बनाओ तो, बनाओ ब्रज मंडल को,

टूक हरि भक्तन सों, मांग मांग खाउँ मैं । 


भृंगी जो करो तो करो, कालिन्दी के तीर मोहे,

आठों याम श्यामा श्याम, श्यामा श्याम गाउं मैं ॥

।।जय जय श्रीवृंदावन धाम॥

4 comments:

  1. अति सुंदर.. सच कहा आपने।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जय श्री राधे

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  3. जय बाँके बिहारी की

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