एक बार अयोध्या जाओ, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे।
चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार-बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे॥
कोटि बार काशी, केदारनाथ, रामेश्वर, गया-जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे।
होंगे प्रत्यक्ष जहाँ दर्शन श्याम-श्यामा के, वृन्दावन सा कहीं आनन्द नहीं पाओगे॥
प्रिया लाल राजे जहाँ, तहाँ वृन्दावन जान,
वृन्दावन तज एक पग, जाए ना रसिक सुजान ॥
जो सुख वृंदाविपिन में, अंत कहु सो नाय,
बैकुंठहु फीको पड्यो, ब्रज जुवती ललचाए ॥
वृंदावन रस भूमि में, रस सागर लहराए,
श्री हरिदासी लाड़ सो, बरसत रंग अघाय ॥
मोर जो बनाओ तो, बनाओ श्री वृंदावन को,
नाच नाच घूम घूम, तुम्ही को रिझाऊं मैं ।
बंदर बनाओ तो, बनाओ श्री निधिवन को,
कूद कूद फांद वृक्ष, जोरन दिखाऊं मैं ॥
भिक्षुक बनाओ तो, बनाओ ब्रज मंडल को,
टूक हरि भक्तन सों, मांग मांग खाउँ मैं ।
भृंगी जो करो तो करो, कालिन्दी के तीर मोहे,
आठों याम श्यामा श्याम, श्यामा श्याम गाउं मैं ॥
।।जय जय श्रीवृंदावन धाम॥
सुन्दर
ReplyDeleteअति सुंदर.. सच कहा आपने।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जय श्री राधे
ReplyDeleteजय बाँके बिहारी की
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