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Thursday, 9 November 2023

राग कान्हरो में सुन‍िए बाबा नंददास द्वारा रच‍ित पद गायन 'दीपदान दै हटरी बैठे'


 दीपावली आए और ब्रज में कान्हा का उत्सव ना हो ...भला ऐसा हो सकता है क्या ....  

पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के कव‍ियों ने अपनी अपनी राग रचनाओं से भगवान श्री कृष्ण को दुलारने की जो काव्य आराधना की, वह अनूठी है। आज हम ऐसी ही ऐ रचना का संदर्भ देते हुए बताने जा रह हैं अष्टछाप कवियों में से एक नंददास के बारे में 

पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक पदों के शिल्प-वैशिष्ट्य के कारण प्रसिद्ध नन्ददास (वि ० सं ० १५९० - ) ब्रजभाषा के एक सन्त कवि थे। वे वल्लभ संप्रदाय (पुष्टिमार्ग) के आठ कवियों (अष्टछाप कवि) में से एक प्रमुख कवि थे। ये गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे।

नन्ददास का जन्म सनाढ्य ब्राह्मण कुल में वि ० सं ० 1420 में (अष्टछाप और वल्लभ :डा ० दीनदयाल गुप्त :पृष्ठ २५६-२६१ ) अन्तर्वेदी राजापुर (वर्तमान श्यामपुर) में हुआ जो वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में है। ये संस्कृत और बृजभाषा के अच्छे विद्वान थे। भागवत की रासपंचाध्यायी का भाषानुवाद इस बात की पुष्टि करता है। वैषणवों की वार्ता से पता चलता है कि ये रसिक किन्तु दृढ़ संकल्प से युक्त थे।

एक बार ये द्वारका की यात्रा पर गए और वहाँ से लौटते समय ये एक क्षत्राणी के रूप पर मोहित हो गये। लोक निन्दा की तनिक भी परवाह न करके ये नित्य उसके दर्शनों के लिए जाते थे। एक दिन उसी क्षत्राणी के पीछे-पीछे आप गोकुल पहुँचे। इसी बीच वि० सं० १६१६ में आपने गोस्वामी विट्ठलनाथ दीक्षा ग्रहण की और तदुपरान्त वहीं रहने लगे। डॉ० दीनदयाल गुप्त के अनुसार इनका मृत्यु-संवत १६३९ है।

चौरासी वैष्णवन की वार्ता के अनुसार नन्ददास, गोस्वामी तुलसीदास के छोटे भाई थे। विद्वानों के अनुसार वार्ताएं बहुत बाद में लिखी गई हैं। ''हिन्दी साहित्य का इतिहास : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : पृष्ठ १७४'' के आधार पर सर्वसम्मत निर्णय नहीं हो सकता। पर इतना निश्चित है कि जिस समय वार्ताएं लिखी गई होंगी उस समय यह जनश्रुति रही होगी कि नन्ददास तुलसीदास भाई हैं, चाहे चचेरे हों, ऐसा '' हिन्दी साहित्य : डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी : पृष्ठ१८८''  तथा  गुरुभाई '' हिन्दी सा० का इति० : रामचंद्र शुक्ल :पृष्ठ १२४ ''  में कहा गया है। 


राग कान्हरो में सुन‍िए बाबा नंददास का ये पद - 

इस ल‍िंक पर क्ल‍िक करें -

दीपदान दै हटरी बैठे, नंद बाबा के साथ। 

नाना के मेवा आए, बांटत अपुने हाथ॥ 

सोभित सब सिंगार बिराजत, अरु चंदन दिए माथ। 

नंददास प्रभु सिगरन आगे गिरि गोबरधन नाथ॥  

अब इसी हटरी का रसात्मक भाव भी देख‍िए - 

श्री गोकुलनाथजी एवं श्री हरिरायचरण कृत भावभावना में 'हटरी' का रसात्मक भाव स्पष्ट किया गया है....तदनुसार हटरी रसोद्दीपन का भाव है...

हटरी लीला में जब व्रजभक्तिन सौदा लेने को आती हैं...तो वहाँ अनेक प्रकार से हास्यादिक, कटाक्षादिक आश्लेशादिक करके भाव उद्दीपन किया जाता है....इस उद्दीपनलीला का संकेत श्रीहरिरायचरण भी स्वरचित पद के माध्यम से देते हैं----

गृह-गृह ते गोपी सब आई, भीर भई तहाँ ठठरी।
तोल-तोल के देत सबनको भाव अटल कर राख्यो अटरी।।

'रसिक' प्रीतम के नयनन लागी,श्रीवृषभान कुँवरि की।।

'हटरी' शब्द का अर्थ बताते हुए श्रीहरीरायचरण आज्ञा करे है की....

"हटरी" = हट + री

अर्थात एक सखी दूसरी सखी को कह रही है कि....

तू हट री अब मोंकू प्रभु के लावण्यामृत को पान रसास्वादन करिबे दे ।

ऐसे थे रस‍िक बाबा नंददास , नन्ददास ग्रन्थावली :सं० ब्रजरत्नदास :पदावली ७९ में राधा के अतिरिक्त कृष्ण अपने सौन्दर्य और रसिकता के कारण गोपियों के भी प्रियतम बन जाते हैं। श्यामसुन्दर के सुन्दर मुख को देखकर वे मुग्ध हो जाती हैं और कभी-कभी सतत दर्शनों में बाधा -रूप अपनी पलकों को कोसती हैं। बाबा नंददास  काव्य की दृष्ट‍ि से अतुलनीय हैं । 
- अलकनंदा स‍िंंह 

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4 comments:

  1. A beacon of brilliance! Your post is both insightful and well-crafted. Thank you for sharing your valuable perspective.

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  2. बहुत उम्दा प्रस्तुति।

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  3. सुंदर सारगर्भित प्रस्तुति।

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