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Monday, 10 July 2023

स्त्रियों के जीवन में रंग भरने वाला सबसे प्रिय ऋतु गीत- कजरी , आप भी सुनें


सबसे पहले आज सावन की शुरुआत पर आप भी सुनें ये ------- नीचे द‍िए गए ल‍िंक  पर क्ल‍िक करें 

https://www.youtube.com/watch?v=PBHHxbDNLE0

शुक्ला बहनों द्वारा गाई कजरी सुन‍िए 

#Kiran_Shukla #Prasann_Shukla (Shukla Sisters )are daughters of great #Indian_classical_music legend #Pandit_Shivkumar_Shukla.They performed all over India and abroad. Harmonium : #UstadFirozShah. Guitar : #ChintooSinghWasir. Tabla : #Mukaram. Video Creation : #FawaadRashid.


लोक संगीत में दो तरह के ऋतु गीत पाए जाते हैं। फागुन में फाग (होरी) और सावन में कजरी। होरी पुरुष प्रधान गीत है तो कजरी स्त्रियों के कंठ का शृंगार। इन दोनों ही ऋतुओं का मानव जीवन पर कितना गहरा और गाढ़ा प्रभाव है, वह सावन और फागुन में गाए जाने वाले गीतों से परिलक्षित होता है। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां जब शहनाई पर कजरी की धुन बजाते थे, तो संगीत के लोक में शास्त्र निखर जाता था। कजरी की धुनों पर जब वो दमकशी लगाते थे, तब उनकी शहनाई के सुरों की गजब की कसक होती थी।

यूं तो----

कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। कजरी की उत्पत्ति मिर्जापुर में मानी जाती है। मिर्जापुर पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे बसा जिला है। यह वर्षा ऋतु का लोकगीत है। इसे सावन के महीने में गाया जाता है। यह अर्ध-शास्त्रीय गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ है और इसके गायन में बनारस घराने की ख़ास दखल है।


कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन विरह-वर्णन तथा राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। कजरी की प्रकृति क्षुद्र है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। उत्तरप्रदेश एवं बनारस में कजरी गाने का प्रचार खूब पाया जाता है। ब्रज क्षेत्र के प्रमुख लोक गीत झूला, होरी रसिया हैं। झूला, सावन में व होरी, फाल्गुन में गाया जाता है|


प्राचीन काल से ही उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जनपद माँ विंध्यवासिनी के शक्तिपीठ के रूप में आस्था का केन्द्र रहा है। अधिसंख्य प्राचीन कजरियों में शक्तिस्वरूपा देवी का ही गुणगान मिलता है। आज कजरी के वर्ण्य-विषय काफ़ी विस्तृत हैं, परन्तु कजरी गायन का प्रारम्भ देवी गीत से ही होता है। कुछ लोगों का मानना है कि कान्तित के राजा की लड़की का नाम कजरी था। वो अपने पति से बेहद प्यार करती थी। जिसे उस समय उससे अलग कर दिया गया था। उनकी याद में जो वो प्यार के गीत गाती थी। उसे मिर्जापुर के लोग कजरी के नाम से याद करते हैं। वे उन्हीं की याद में कजरी महोत्सव मनाते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों में श्रावण मास का विशेष महत्त्व है।



कजरी के चार अखाड़े प.शिवदास मालिविय अखाड़ा, जहाँगीर अखाड़ा, बैरागी अखाड़ा व अक्खड़ अखाड़ा हैं। यह मुख्यतः बनारस, बलिया, चंदौली और जौनपुर जिले के क्षेत्रों में गाया जाता है।


कुछ प्रस‍िद्ध कजरी/कजली



1. देखो सावन में हिंडोला झूलैंदेखो सावन में हिंडोला झूलैं मन्दिर में गोपाल।

राधा जी तहाँ पास बिराजैं ठाड़ी बृज की बाल।।


सोना रूपा बना हिंडोला, पलना लाल निहार।

जंगाली रंग, सजा हिंडोला, हरियाली गुलज़ार।।


भीड़ भई है भारी, दौड़े आवैं, नर और नार।

सीस महल का अजब हिंडोला, शोभा का नहीं पार ।।


फूल काँच मेहराब जु लागी पत्तन बांधी डार।

रसिक किशोरी कहै सब दरसन करते ख़ूब बहार।।

2. छैला छाय रहे मधुबन मेंछैला छाय रहे मधुबन में सावन सुरत बिसारे मोर।

मोर शोर बरजोर मचावै, देखि घटा घनघोर।।


कोकिल शुक सारिका पपीहा, दादुर धुनि चहुंओर।

झूलत ललिता लता तरु पर, पवन चलत झकझोर।।


ताखि निकुंज सुनो सुधि आवै श्याम संवलिया तोर।

विरह विकल बलदेव रैन दिन बिनु चितये चितचोर।।

3. आई सावन की बहारछाई घटा घनघोर बन में, बोलन लागे मोर।

रिमझिम पनियां बरसै जोर मोरे प्यारे बलमू।।


धानी चद्दर सिंआव, सारी सबज रंगाव।

वामें गोटवा टकाव, मोरे बारे बलमू।।


मैं तो जइहों कुंजधाम, सुनो कजरी ललाम।

जहाँ झूले राधे-श्याम, मोरे बारे बलमू।।


बलदेव क्यों उदास पुनि अइहौ तोरे पास।

मानो मोरा विसवास, मोरे बारे बलमू।।

4. हरि संग डारि-डारि गलबहियाँहरि संग डारि-डारि गल बहियाँ झूलत बरसाने की नारि।

प्रेमानन्द मगन मतवारी सुधि बुधि सकल बिसारि।।


करि आलिंग प्रेमरस भीजत अंचल अलक उघारि।

टूटे बोल हिंडोल उठावति रुकि-रुकि अंग संवारि।।


श्रीधर ललित जुगल छबि ऊपर डारत तन-मन वारि।

हरि संग डाल-डाल गलबहियाँ, झूलत बरसाने की नारि।।

5. हरि बिन जियरा मोरा तरसेहरि बिन जियरा मोरा तरसे, सावन बरसै घना घोर।

रूम झूम नभ बादर आए, चहुँ दिसी बोले मोर।

रैन अंधेरी रिमझिम बरसै, डरपै जियरा मोर।।


बैठ रैन बिहाय सोच में, तड़प तड़प हो भोर।

पावस बीत्यौ जात, श्याम अब आओ भवन बहोर।।


आओ श्याम उर सोच मिटाऔ, लागौं पैयां तोर।

हरिजन हरिहिं मनाय 'हरिचन्द' विनय करत कर जोर।।

6. झूला झूलन हम लागी हो रामाझूला झूलन हम लागी हो रामा, मिल गए साजनवा।


आज तलक हम किन्हीं न बतियाँ, साजन देखे घर की छतियाँ,

नैना से नैना मिलाए न रामा, मिल गए साजनवा।


एक सखि मोरे ढिंग आई, आँख दिखा मोहे बात सुनाई

ऎसी क्यूं रूठी साजन से, फिर गए साजनवा।


मैं बोली सखि लाज की मारी, गोरी हँसती दे-दे तारी,

कैसी करूँ अब जतन बताय सखि, मिल जायें साजनवा।

7. अजहू न आयल तोहार छोटी ननदीअजहू न आयल तोहार छोटी ननदी


बरसत सावन तरसत बीता, कजरी के आइन बहार । छोटी ननदी०।।

सब सखि झूला झूलन सावन मां गावत कजरी मलार । छोटी ननदी०।।

पी-पी रटत पपीहा नाचत, मोर किए किलकार । छोटी ननदी०।।

प्रिया प्रेमघन बिन एको छन लागैना जियरा हमार । छोटी ननदी०।।

8. तरसत जियरा हमार नैहर मेंतरसत जियरा हमार नैहर में ।

बाबा हठ कीनॊ, गवनवा न दीनो

बीत गइली बरखा बहार नैहर में ।


फट गई चुन्दरी, मसक गई अंगिया

टूट गइल मोतिया के हार, नैहर में ।


कहत छ्बीले पिया घर नाही

नाही भावत जिया सिंगार, नैहर में ।


2 comments:

  1. सावन की रूत में कजरी सुनने का अलग ही आनंद है, लोक गीतों की महक भी लुभा रही है

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    1. धन्यवाद अनीता जी

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