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Thursday 6 January 2022

आज कुछ हटके पढ़ेंगे... भ्रमरगीत परम्परा में कृष्‍ण और ब्रज


 

हिन्दी काव्य में भ्रमरगीत का मूलस्रोत है श्रीमद्भागवत पुराण,  जिसके दशम स्कंध के ४६वें एवं ४७वें अध्याय में भ्रमरगीत प्रसंग है। श्रीकृष्ण गोपियों को छोङकर मथुरा चले गए और गोपियाँ विरह विकल हो गई। कृष्ण मथुरा में लोकहितकारी कार्यों में व्यस्त थे किन्तु उन्हें ब्रज की गोपियों की याद सताती रहती थी। उन्होंने अपने अभिन्न मित्र उद्धव को संदेशवाहक बनाकर गोकुल भेजा। वहां गोपियों के साथ उनका वार्तालाप हुआ तभी एक भ्रमर वहां उड़ता हुआ आ गया। गोपियों ने उस भ्रमर को प्रतीक बनाकर अन्योक्ति के माध्यम से उद्धव और कृष्ण पर जो व्यंग्य किए एवं उपालम्भ दिए उसी को ’भ्रमरगीत’ के नाम से जाना गया। भ्रमरगीत प्रसंग में निर्गुण का खण्डन, सगुण का मण्डन तथा ज्ञान एवं योग की तुलना में प्रेम और भक्ति को श्रेष्ठ ठहराया गया है।

भ्रमरगीत भारतीय काव्य की एक पृथक काव्य परम्परा है। हिन्दी में सूरदास, नंददास, परमानंददास, मैथिलीशरण गुप्त (द्वापर) और जगन्नाथदास रत्नाकर ने भ्रमरगीत की रचना की है। भारतीय साहित्य में 'भ्रमर' (भौंरा) रसलोलुप नायक का प्रतीक माना जाता है। वह व्यभिचारी है जो किसी एक फूल का रसपान करने तक सीमित नहीं रहता अपितु, विविध पुष्पों का रसास्वादन करता है।

ब्रजभाषा काव्य में भ्रमरगीत परम्परा के कई ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। विद्वान इस परम्परा का प्रारम्भ मैथिल कोकिल विद्यापति के पदों से मानते हैं किन्तु विधिवत रूप में भ्रमरगीत परम्परा सूरदास से ही प्रारम्भ हुई।

सूरदास का भ्रमरगीत

सूरसागर सूरदासजी का प्रधान एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त है, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग 'कृष्ण की बाल-लीला’ और 'भ्रमरगीत-प्रसंग' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इसके विषय में आचार्य शुक्ल ने कहा है, सूरसागर का सबसे मर्मस्पर्शी और वाग्वैदग्ध्यपूर्ण अंश भ्रमरगीत है। आचार्य शुक्ल ने लगभग 400 पदों को सूरसागर के भ्रमरगीत से छांटकर उनको 'भ्रमरगीत सार' के रूप में संग्रह किया था।

भ्रमरगीत में सूरदास ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें मथुरा से कृष्ण द्वारा उद्धव को ब्रज संदेस लेकर भेजते हैं। उद्धव योग और ब्रह्म के ज्ञाता हैं। उनका प्रेम से दूर-दूर का कोई सम्बन्ध नहीं है। जब गोपियाँ व्याकुल होकर उद्धव से कृष्ण के बारे में बात करती हैं और उनके बारे में जानने को उत्सुक होती हैं तो वे निराकार ब्रह्म और योग की बातें करने लगते हैं तो खीजी हुई गोपियाँ उन्हें 'काले भँवरे' की उपमा देती हैं। 

इन्हीं लगभग 100 पदों का समूह भ्रमरगीत या 'उद्धव-संदेश' कहलाता है।


भ्रमरगीत में गोपियों की वचनवक्रता अत्यंत मनोहारिणी है। ऐसा सुंदर उपालंभ काव्य और कहीं नहीं मिलता।


उधो ! तुम अपनी जतन करौ

हित की कहत कुहित की लागै,

किन बेकाज ररौ ?

जाय करौ उपचार आपनो,

हम जो कहति हैं जी की।

कछू कहत कछुवै कहि डारत,

धुन देखियत नहिं नीकी।


जगन्नाथदास रत्नाकर का भ्रमरगीत 

जगन्नाथदास रत्नाकर के 'उद्धव-शतक' की गणना भी भ्रमरगीत परम्परा में की जा सकती हैं। यहाँ उद्धव ही 'भ्रमर' हैं जिन्हें लक्ष्य कर गोपियाँ अपने मन की कटुता व्यक्त करतीं हैं।


करि के सुधि प्यारी तिहारी सदा

हिय घाव हरे के हरे ही रहे

छिनहू न सुहाय न भाय कछु

अंग अंग गरे के गरे ही रहे

कवि मजुल भाव वहै हित के 

उर आई अरै के अरै ही रहे 

झर बांधि झरै अँसुवा नित ही 

तउ नैन भरे के भरै ही रहै.


प्रस्तुत‍ि- अलकनंदा सिंह

17 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०७-०१ -२०२२ ) को
    'कह तो दे कि वो सुन रहा है'(चर्चा अंक-४३०२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. वाह बहुत सुंदर लेख भ्रमर गीत परंपरा पर आपका लेखन उत्तम है।

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    1. धन्‍यवाद अभिलाषा जी

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  3. करि के सुधि प्यारी तिहारी सदा

    हिय घाव हरे के हरे ही रहे

    छिनहू न सुहाय न भाय कछु

    अंग अंग गरे के गरे ही रहे

    कवि मजुल भाव वहै हित के

    उर आई अरै के अरै ही रहे

    झर बांधि झरै अँसुवा नित ही

    तउ नैन भरे के भरै ही रहै...वाह ! बहुत सुंदर सारमय और गेयता लिए हुए भ्रमरगीत । साझा करने के लिए बहुत बधाई अलकनंदा जी ।

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    1. धन्‍यवाद जिज्ञासा जी

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  4. दोनों ही गीत अति सुंदर हैं, भ्रमर गीत का प्रसंग बहुत मोहक़ है, विभिन्न कवियों द्वारा इस पर लिखा गया है, इस जानकरी हेतु आभार!

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    1. धन्‍यवाद अनीता जी

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  5. दोनों ही गीत बहुत ही बढ़िया है।

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    1. धन्‍यवाद ज्‍योति जी

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  6. आपकी खोजी कलम सदा कुछ नया चमत्कार करती है।
    भ्रमरगीत पर व्याख्यात्मक उद्गार मनोहारी है, दोनों गीतों में क्रमशः,उपालंभ और गोपियों की विरह पीड़ा मुखरित हुई है।
    सस्नेह साधुवाद।

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    1. धन्‍यवाद कुसुमजी

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  7. कमाल ...
    भ्रमर गीत और ब्रिज का भाव .. मन को छूता है ...

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  8. उधो ! तुम अपनी जतन करौ

    हित की कहत कुहित की लागै,

    किन बेकाज ररौ ?

    जाय करौ उपचार आपनो,

    हम जो कहति हैं जी की।

    कछू कहत कछुवै कहि डारत,

    धुन देखियत नहिं नीकी।,,,, बहुत सुंदर है दोनो गीत,

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  9. सुंदर है दोनो गीत

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