बांग्ला के प्रसिद्ध कवि काजी नजरूल इस्लाम का जन्म 24 मई 1899 को हुआ था। निधन 29 अगस्त 1976 को हुआ। भगवान कृष्ण पर उनकी 5 प्रसिद्ध रचनाएं उनकी पुण्यतिथि पर आपके लिए…
अगर तुम राधा होते श्याम।
मेरी तरह बस आठों पहर तुम,
रटते श्याम का नाम।।
वन-फूल की माला निराली
वन जाति नागन काली
कृष्ण प्रेम की भीख मांगने
आते लाख जनम।
तुम, आते इस बृजधाम।।
चुपके चुपके तुमरे हिरदय में
बसता बंसीवाला;
और, धीरे धारे उसकी धुन से
बढ़ती मन की ज्वाला।
पनघट में नैन बिछाए तुम,
रहते आस लगाए
और, काले के संग प्रीत लगाकर
हो जाते बदनाम।।
सुनो मोहन नुपूर गूँजत है…
आज बन-उपवन में चंचल मेरे मन में
मोहन मुरलीधारी कुंज कुंज फिरे श्याम
सुनो मोहन नुपूर गूँजत है
बाजे मुरली बोले राधा नाम
कुंज कुंज फिरे श्याम
बोले बाँसुरी आओ श्याम-पियारी,
ढुँढ़त है श्याम-बिहारी,
बनमाला सब चंचल उड़ावे अंचल,
कोयल सखी गावे साथ गुणधाम कुंज कुंज श्याम
फूल कली भोले घुँघट खोले
पिया के मिलन कि प्रेम की बोली बोले,
पवन पिया लेके सुन्दर सौरभ,
हँसत यमुना सखी दिवस-याम कुंज कुंज फिरे श्याम
सुनाओ सुमधूर नुपूर गुंजन….
कृष्ण कन्हईया आयो मन में मोहन मुरली बजाओ।
कान्ति अनुपम नील पद्मसम सुन्दर रूप दिखाओ।
सुनाओ सुमधूर नुपूर गुंजन
“राधा, राधा” करि फिर फिर वन वन
प्रेम-कुंज में फूलसेज पर मोहन रास रचाओ;
मोहन मुरली बजाओ।
राधा नाम लिखे अंग अंग में,
वृन्दावन में फिरो गोपी-संग में,
पहरो गले वनफूल की माला प्रेम का गीत सुनाओ,
मोहन मुरली बजाओ।
श्रवण-आनन्द बिछुआ की छंद रुनझुन बोले…
चंचल सुन्दर नन्दकुमार गोपी चितचोर प्रेम मनोहर नवल किशोर।
बाजतही मन में बाणरि की झंकार, नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
श्रवण-आनन्द बिछुआ की छंद रुनझुन बोले
नन्द के अंगना में नन्दन चन्द्रमा गोपाल बन झूमत डोले
डगमग डोले, रंगा पाव बोले लघू होके बिराट धरती का भार।
नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
रूप नेहारने आए लख छिप देवता
कोइ गोप गोपी बना कोइ वृक्ष लता।
नदी हो बहे लागे आनन्द के आँसू यमुना जल सुँ
प्रणता प्रकृति निराला सजाए, पूजा करनेको फूल ले आए बनडार।
नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
तुम्हारी मुरली बाजे धीर…
तुम प्रेम के घनश्याम मै प्रेम की श्याम-प्यारी।
प्रेम का गान तुम्हारे दान मै हूँ प्रेम भीखारी।।
हृदय बीच में यमुना तीर-
तुम्हारी मुरली बाजे धीर
नयन नीर की बहत यमुना प्रेम से मतवारी।।
युग युग होये तुम्हारी लीला मेरे हृदय बन में,
तुम्हारे मोहन-मन्दिर पिया मेहत मेरे मन में।
प्रेम-नदी नीर नित बहती जाय,
तुम्हारे चरण को काँहू ना पाय,
रोये श्याम-प्यारी साथ बृजनारी आओ मुरलीधारी।।
प्रस्तुति- अलकनंदा सिंह
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-8-21) को "कान्हा आदर्शों की जिद हैं"'(चर्चा अंक- 4173) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
धन्यवाद कामिनी जी
Deleteभगवान कृष्ण पर महान कवि की सुंदर रचनाएँ, जन्माष्टमी पर इनका महत्व और भी बढ़ जाता है
ReplyDeleteधन्यवाद अनीता जी
ReplyDeleteबहुत खूब | कृष्णजन्माष्टमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteधन्यवाद सु-मन जी, आपको भी नंदोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनायें
Deleteवाह!बहुत सुंदर संकलन।
ReplyDeleteआभार दी सुंदर रचनाएँ पढ़वाने हेतु।
सादर
धन्यवाद अनीता जी, आपका संबोधन भावुक कर गया। इस सम्मान के लिए बहुत शुक्रिया
Deleteवाह! कृष्ण प्रेम के निराले रंग । हर रचना एक बांसुरी सी बजाती हुई । बहुत शुभकामनाएं अलकनंदा जी ।
ReplyDeleteधन्यवाद जिज्ञासा जी, नंदोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनायें
Deleteबहुत सुंदर ...। जन्माष्टमी की खूब बधाईयां
ReplyDeleteनंदोत्सव की बहुत बहुत शुभकामनायें संदीप जी
ReplyDeleteबहुत ही शिक्षाप्रद और सुंदर।
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