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Monday, 17 February 2020

'वर्दी वाला गुंडा' के उपन्‍यासकार वेद प्रकाश शर्मा की आज पुण्‍यतिथि

10 जून 1955 को मेरठ (उत्तर प्रदेश) में जन्‍मे हिंदी के प्रसिद्ध और लोकप्रिय उपन्‍यासकार वेद प्रकाश शर्मा की आज पुण्‍यतिथि है।
वेद प्रकाश शर्मा की मृत्‍यु मेरठ में ही 17 फरवरी 2017 को हुई थी।
इन्होंने सस्ते और लोकप्रिय उपन्यासों की रचना की है। इनके 176 उपन्यास प्रकाशित हुए। इसके अतिरिक्त इन्होंने खिलाड़ी श्रृंखला की फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं।
वर्दी वाला गुंडा वेद प्रकाश शर्मा का सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की आजतक लगभग 8 करोड़ प्रतियाँ बिक चुकी हैं। भारत में जनसाधारण में लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में यह उपन्यास “क्लासिक” का दर्जा रखता है।
ऐसे आया वर्दी वाला गुंडा लिखने का विचार
आम बोलचाल की भाषा में लिखने वाले वेद प्रकाश शर्मा देश में सबसे ज्यादा बिकाऊ लेखक बन गए थे। वे कहते थे कि ‘मैं अखबारों और अपने इर्द-गिर्द की घटनाओं से विषय चुनता हूं’। एक बार वे मेरठ में बेगमपुल के पास घूम रहे थे, तभी एक दारोगा को कुछ लोगों पर ऐसे डंडे बरसाते देखा, मानो कोई गुंडा हो। इस तरह वर्दी वाला गुंडा का विचार पनपा। वेद प्रकाश हमेशा यही चाहते थे कि उन्हें ऐसे लेखक के तौर पर याद किया जाए जो लोगों को सामाजिक संदेश दें और साथ में मनोरंजन भी करें।
वेद प्रकाश शर्मा के पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलत: मुजफ्फरनगर जिले के बिहरा गांव के रहने वाले थे। वेद प्रकाश एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी प्राकृतिक-अप्राकृतिक मौत हो गई। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान भी टूट गया। फिर गैंगरीन की वजह से पिता की एक टांग काटनी पड़ी। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, सारी जिम्मेदारी मां पर आ गई।
जीवन और समाज को करीब से देखने वाले वेद प्रकाश की तीन बेटियां (करिश्मा, गरिमा तथा खुशबू) और उपन्यासकार बेटा शगुन शादीशुदा हैं।
तुलसी पॉकेट बुक्स नामक प्रकाशन संस्थान भी इन्होंने शुरू किया था।
दूसरों के नाम से लिखा करते थे
बताया जाता है कि काफी समय तक वेद प्रकाश दूसरों के नाम से लिखा करते थे. जब उनके लिखे उपन्‍यास पढ़े जाने लगे और वे जिनके नाम से लिखते थे, वो लोग चर्चित होने लगे उसके बाद उन्‍होंने पहली बार 1973 में ‘आग के बेटे’ में उपन्‍यास के पहले पृष्‍ठ पर अपना नाम छापा था। इसके बाद के उपन्‍यासों में उनके नाम के साथ फोटो भी छापे जानी लगी। ‘कैदी नंबर 100’ नॉवेल तो इतना लोकप्रिय हुआ था कि उसकी 2,50,000 प्रतियां छापी गई थीं।

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-02-2020) को    "नीम की छाँव"  (चर्चा अंक-3616)    पर भी होगी। 
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    विनम्र श्रद्धांजलि।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी

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  2. बेदप्रकाश शर्मा जी के बारे में बेहतरीन जानकारी दी आपने ,उनके लिखे उपन्यास तो मैं पढ़ी हूँ पर उनके बारे में आज जाना ,सादर नमन आपको

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    1. धन्यवाद काम‍िनी जी

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