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Sunday 22 January 2017

व्यवहारिक संशोधनों का----- समय है ये

व्यवहारिक संशोधनों का----- समय है ये


बदलते इस समय में
रिश्तों की बुनियादें और उनमें प्रेम ,
ढूढ़ रहे हैं - गढ़ रहे हैं नित
नई परिभाषाएं अपनी ....

प्रेम में भी व्यवहार बदल रहे हैं
ये व्यवहारिक संशोधनों का-
समय है, समय है निज की ओर आते
स्वार्थों के प्रवाह को रोकने का ,
परंतु  ...... ? ?  ?  ?  ?

यह वह समय है जहां मन( दिल) से नहीं,
शरीर और दिमाग से जिया जाता है ....
जहां खुद को ही खुद से काट कर हंसा जाता है, 
और हंसते हुए रोया जाता है ....

ऐसे में .....
बूंद हो जाना होगा , सूक्ष्म हो जाना होगा ,
क्योंकि ....
जब एक प्यालाभर अहसास ही
पूरी की पूरी जिंदगी को
प्रेम में डुबोने के लिए- 
काफी है... 
फिर क्यों तमन्ना हो
कि मिले समंदर ... ही ....खरे सोने सा ... हमें ।

- अलकनंदा सिंह



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