भय लग रहा है-
मुट्ठी से खिसकती रेत से
विस्तृत होते झूठ व आडंबरों से
सुलगते संबंधों से
खोखले नीड़ों से
कांपता है मन- शरीर कि-
सच्चाइयों की तहें उधड़कर
नंगा कर रही हैं वे सारे झूठ
जो नैतिकता की आड़ में
घुटन बन गये
मात दे रहा है-
समय के धुंआई ग्राफ को
सभ्यता- आस्था का -
विच्छिन्न होता आकाश
तड़ तड़ झरता विश्वास
अपने ही मूल को-
निश्चिंत हो करना होगा-
बंधनों से मुक्त जीवन को
वरना प्रेम...विचार...भावना...भी
नाच उठेंगे काल-पिंजर से
आशाओं के द्वार चटकने से पूर्व-
लेना होगा उस ...पावन
ज्योतिपुंज का आश्रय
धधक रहा है जो मेरे और तुम्हारे बीच
बाट जोहता उस स्पर्श की..
जिसने 'मरा से राम' को पैदा कर ...
अस्पृश्य डाकू से बना दिया महर्षि।
- अलकनंदा सिंह
मुट्ठी से खिसकती रेत से
विस्तृत होते झूठ व आडंबरों से
सुलगते संबंधों से
खोखले नीड़ों से
कांपता है मन- शरीर कि-
सच्चाइयों की तहें उधड़कर
नंगा कर रही हैं वे सारे झूठ
जो नैतिकता की आड़ में
घुटन बन गये
मात दे रहा है-
समय के धुंआई ग्राफ को
सभ्यता- आस्था का -
विच्छिन्न होता आकाश
तड़ तड़ झरता विश्वास
अपने ही मूल को-
निश्चिंत हो करना होगा-
बंधनों से मुक्त जीवन को
वरना प्रेम...विचार...भावना...भी
नाच उठेंगे काल-पिंजर से
आशाओं के द्वार चटकने से पूर्व-
लेना होगा उस ...पावन
ज्योतिपुंज का आश्रय
धधक रहा है जो मेरे और तुम्हारे बीच
बाट जोहता उस स्पर्श की..
जिसने 'मरा से राम' को पैदा कर ...
अस्पृश्य डाकू से बना दिया महर्षि।
- अलकनंदा सिंह