दफ्न हो गये सारे सपने
खुदमुख़्तारी से जीने के
होंठों पर उंगली रखने वाले
हमसाया ही निकलते हैं
जागने वाली शबों के रहगुज़र
दूर तक चले आये मेरे साथ
दीवानगी की इतनी बड़ी
कीमत चुकाई न हो किसी ने
साथ निभाने का वादा कब
बदला और दिल का सौदा हो गया
भंवर में पैर उतारा और
मंझधार का धोखा हो गया
- अलकनंदा सिंह
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