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Tuesday, 11 March 2014

वो आख़िरी कुछ भी न था


Paintings by Theresa Paden



















वो ओस की आखिरी बूंद थी
वो लम्‍हों का ठहराव भी आखिरी था
कि फूल की आखिरी पंखुड़ी ने झड़ते हुए
जो कहा वो भी सूफियाना था
पल पल का हिसाब बखूबी रखती है कायनात
वो जो आखिरी दामन होता है ना
वो जो आखिरी सांस में घुलता है
वो जो तंतूरे सा झनझनाता है मन को
वो जो भूख में भी हंस लेता है
वो जो दर्द को पी जाता है बेसाख्‍़ता
वो आखिरी कुछ भी तो नहीं है बस
होती है शुरुआत... वहीं से शफ़क को जाने की

- अलकनंदा सिंह

लम्‍हा लम्‍हा सरकी रात

थके थके कदम चांदनी के
लम्‍हा लम्‍हा सरकी रात
बिसर गई वो बात, कहां बची
अब रिश्‍तों की गर्म सौगात

चिंदी चिंदी हुये पंख, फिर भी
कोटर में बैठे बच्‍चों से
कहती चिड़िया ना घबराना
कितनी ही बड़ी हो जाये बात

पलकें भारी होती हैं जब
ख़ुदगर्जी़ से लद लदकर
बिखर क्‍यों नहीं जाते वो हिस्‍से
जिनमें बस्‍ती हो जाती ख़ाक

- अलकनंदा सिंह